सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नेशनल कंपनी लॉ अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें बायजू (Byju's) की मूल कंपनी थिंक एंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ शुरू की गई दिवालिया (इन्सॉल्वेंसी) प्रक्रिया को बंद कर दिया गया था. यह फैसला अमेरिका की वित्तीय संस्था ग्लास ट्रस्ट की याचिका पर दिया गया, जिसने NCLAT के आदेश को चुनौती दी थी. यानी अब फिर से बायजू के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द किया NCLAT का फैसला?
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बायजू के पूर्व प्रबंधन द्वारा सीधे NCLAT में जाकर दिवाला प्रक्रिया बंद कराने का तरीका नियमों के विरुद्ध था. उन्होंने कहा कि,
- दिवाला प्रक्रिया वापस लेने के लिए उचित आवेदन नहीं किया गया था.
- यह आवेदन रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (IRP) के माध्यम से किया जाना चाहिए था, न कि बायजू के पूर्व निदेशक द्वारा.
- NCLAT ने अपने अधिकारों का गलत उपयोग किया और बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के समाधान को मंजूरी दे दी.
अदालत के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT के 2 अगस्त, 2024 के फैसले को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि 158 करोड़ रुपये जो एक अलग एस्क्रो खाते में रखे गए थे, अब कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) के खाते में जमा किए जाएं.
[BREAKING] Supreme Court sets aside NCLAT judgment that closed insolvency process against Byju's
report by @DebayonRoy #SupremeCourtOfIndia #byjus @BYJUS https://t.co/gLhF8KN6xx
— Bar and Bench (@barandbench) October 23, 2024
बायजू का मामला
जुलाई 2024 में बायजू के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू की गई थी, जब राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण (NCLT), बेंगलुरु ने बीसीसीआई (BCCI) द्वारा ₹158 करोड़ के भुगतान में चूक को लेकर दायर याचिका को स्वीकार कर लिया था.
इसके बाद NCLAT ने बीसीसीआई और बायजू के बीच हुए समझौते के आधार पर दिवाला प्रक्रिया को रोक दिया था. यह दावा किया गया था कि भुगतान बायजू रवींद्रन के भाई रिजू रवींद्रन की निजी राशि से किया जाएगा.
कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NCLT सिर्फ एक "डाकघर" की तरह नहीं है, जो बिना उचित प्रक्रिया के आवेदन पर मुहर लगा दे. साथ ही, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि CoC का गठन होने से पहले सभी पक्षों को सुने बिना दिवाला प्रक्रिया वापस नहीं ली जा सकती. अब बायजू की दिवाला प्रक्रिया दोबारा शुरू होगी, और यह केस भारत के कॉर्पोरेट और वित्तीय क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है.