विश्व की सबसे बड़ी पैरा मिलिट्री फोर्स बीएसएफ (BSF) शनिवार को अपना 54वां स्थापना दिवस (Border Security Force Raising Day) मना रही है. इस अवसर पर पूरा देश सैन्य बल को शुभकामनाएं दे रहा है. सीमा सुरक्षाबल अपने गौरवशाली इतिहास के 53 साल पूरे कर चुका है. बीएसएफ का गठन 1 दिसंबर 1965 में किया गया था. इसका उद्देश्य देश की रक्षा करना है जिसके तहत भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर निरंतर निगरानी रखना, सीमा की रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय अपराध को रोकना है. देश की रक्षा के लिए इस समय बीएसएफ में 188 बटालियन है और यह 6,385.36 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा करती है.
बीएसएफ की सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय सीमा से लेकर पहाड़ी क्षेत्रों, दुर्गम रेगिस्तानों, नदी-घाटियों और हिमाच्छादित प्रदेशों तक फैली है. सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों में सुरक्षा बोध को विकसित करने की जिम्मेदारी भी बीएसएफ को दी गई है. इसके अलावा सीमा पर होने वाले अपराधों जैसे तस्करी/घुसपैठ और अन्य अवैध गतिविधियों को रोकने की जवाबदेही भी इन पर है.
My best wishes to all personnel of Border Security Force on @BSF_India Raising Day. I join the nation in thanking India’s first line of defence for their service to the nation. I salute their courage, bravery, hard work and dedication. #BSFRaisingDay pic.twitter.com/U02oGi2YWL
— VicePresidentOfIndia (@VPSecretariat) December 1, 2018
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सीमा सुरक्षा बल को स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दी है. नायडू ने लिखा मैं सुरक्षा बल की बहादुरी, कठिन परिश्रम को सलाम करता हूं.
1965 में महसूस हुई जरुरत
सीमा सुरक्षा बल की जरुरत पाकिस्तान के साथ हुए 1965 के युद्ध के बाद हुई. इस जंग में जब पाकिस्तानी फौज ने गुजरात के कच्छ में सीमा से लगी चौकियों पर हमला कर दिया था, उसके बाद ही भारत सरकार ने 1 दिसंबर को सीमा सुरक्षा बल का गठन किया था. उसके पहले चीफ केएफ रुस्तमजी थे. तब से बीएसएफ पूर्वी सीमा पर बांग्लादेश बार्डर के साथ-साथ उत्तर-पूर्व राज्यों में काउंटर इमरजेंसी ऑपरेशन को बखूबी अंजाम दे रही है.
1962 भारत-चीन युद्ध के बाद भी नहीं बदले थे हालात
साल 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद भी पूरे देश की सीमा सुरक्षा के लिए फौज का गठन नहीं किया गया था उस समय तक भी देश की सुरक्षा को लेकर एक जैसी नीति नहीं थी. तब तक सूबों की पुलिस ही अपने-अपने राज्यों से लगते अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर की रखवाली करती थीं. जैसे पंजाब में पाकिस्तान सीमा का जिम्मा पंजाब पुलिस के कंधों पर था तो बंगाल, गुजरात या जम्मू-कश्मीर में वहां की पुलिस का.
चीन के साथ लड़ाई 20 अक्तूबर को शुरू हो चुकी थी. इसके पांचवें दिन 24 अक्तूबर को सीमा सुरक्षा के लिए पहली बड़ी पहल की गई थी. उसी दिन भारत-तिब्बत सीमा पुलिस गठित की गई. 21 नवंबर को इस लड़ाई का नतीजा हमें करारी शिकस्त के रूप में मिला था. चीन के बाद पाकिस्तान से लगती सीमा सबसे ज्यादा असुरक्षित थी. चीन-तिब्बत सीमा के लिए अलग बल गठित हो चुका था, लेकिन पाकिस्तान सीमा की सुरक्षा का जिम्मा राज्यों पर ही था.
भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद से दुश्मनों से लोहा ले रही BSF
पाकिस्तान ने 1965 में जंग छेड़ दी थी. तब गुजरात के कच्छ में जिस तरह पाकिस्तानी फौजें घुसीं, उससे सरहद की नाजुक हालत नजर आ गई. हम किसी तरह जंग तो जीत गए, वैसे दुनिया की कई ताकतें ऐसा नहीं भी मानती हैं, वे कहती हैं, जंग बराबरी पर छूटी. मगर इसका सबक भी मिला. इसके बाद ही 1 दिसंबर 1965 को सीमा सुरक्षा बल बनाया गया. अब सीमा सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्यों की पुलिस के पास नहीं, एक केंद्रीय बल के पास आ गई. यह सीधे केंद्रीय गृह मंत्रलय के अधीन है.
देश की सुरक्षा BSF के हाथ
बता दें कि सीमा सुरक्षा बल देश की सीमा ही नहीं बल्कि देश के भीतर भी देशवासियों की रक्षा करते हैं. देश के नक्सल प्रभावी क्षेत्रों में सीमा सुरक्षा बल ने बड़े पैमाने में जनता के मन नक्सलियों का डर कम किया है. छत्तीसगढ़ में साल 2009 में प्रदेश आंतरिक समस्या से जूझने के लिए सीमा सुरक्षा बल की एक टुकड़ी कांकेर जिले में तैनात की गई. तब से फोर्स नक्सलियों से लोहा लेते हुए दूरस्थ ग्राम और अंदरूनी इलाकों में सक्रिय है. वहां रहने वाले लोगों के बीच नक्सलियों के भय के वातावरण को समाप्त करके उनके दिल में सुरक्षा की भावना को मजबूत कर रही है.