कर्नाटक, 2 दिसंबर: मालपे के थरानाथ कुंदर (Kundar) के स्वामित्व वाली 'मथुरा' नाव पर सवार 7 मछुआरों की जान उस समय बाल बाल बची जब ये नाव महाराष्ट्र (Maharashtra) के समुद्री तट के पास डूब गई. ये हादसा 26 नवंबर को हुआ था और इसमें विनोद हरिकांत (Vinod Harikant), महेश (Mahesh), लोकेश (Lokesh), शेखर (Shekhar), गंगाधर जटगा मोगेरा (Gangadhar Jatga Mogera), नागप्पा नारायण हरिकांत (Nagappa Narayan Harikant) और अनिल गताबेरा हरिकांत (Anil Gataabera Harikant) सवार थे, जो बाल बाल बच गए. नाव क्षतिग्रस्त होने के बाद डूबने लगी तो मछुआरे चिल्लाने लगे और उन्होंने मदद की गुहार लगाई. किस्मत से पास ही बीएसएनएल-स्काईलो (BSNL-cyclo) 2-वे (2-way) संचार उपकरण से लैस एक नाव 'माहुर' थी, जिसने उनकी पुकार सुन ली.
अपने उपग्रह आधारित बीएसएनएल-स्काईलो 2-वे संचार तकनीक का उपयोग करते हुए, 'माहुर' ने 'मथुरा' नाव के मालिक और महाराष्ट्र कोस्टल सेक्युरिटी से संपर्क साधा और उन्हें तत्काल सूचना पहुंचाई. दो-तरफा संचार प्रणाली का उपयोग करते हुए, इस तकनीक ने डूबते हुए नाव की सही जगह की पहचान बताई और सातों मछुआरों को बचाने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
'मथुरा' नाव के मालिक थरनाथ कुंदर ने कहा कि सात मछुआरों की सुरक्षित वापसी से राहत मिली है. उन्होंने कहा, "यह किस्मत की बात है कि दूसरी नाव आधुनिक संचार से लैस थी और मेरे चालक दल की चीखें उनको सुनाई दे गई. उनका हार्दिक आभार. उन्होंने न केवल मछुआरों कि जिंदगी बचाई, बल्कि उनके परिवार को भी तबाही से बचा लिया. उन्होंने कहा कि इस तरह के आधुनिक संचार उपकरण जल्द ही सभी नावों पर उपलब्ध होंगे ताकि मछुआरों को समय पर मदद मिल सके."
इस घटना की पुष्टि करते हुए कर्नाटक (Karnataka) सरकार के मत्स्य विभाग के गणेश के. (Ganesh k.) ने कहा, "यह ईश्वर की कृपा है कि मछुआरे सुरक्षित बच गए और अपने परिवारों के पास लौट आए. यह वास्तव में अद्भुत है कि तकनीक उनकी सहायता के लिए आई. प्रभावी संचार तकनीक की कमी के कारण हम कई जीवन खो चुके हैं. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम ऐसी आधुनिक तकनीकों को अपनाएं जो हमारे मछुआरों को न केवल जीवन बचाने में मदद कर सके, बल्कि उनकी उत्पादकता में सुधार कर सके."
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उपग्रह आधारित नेविगेशन सिस्टम जैसी आधुनिक कनेक्टिविटी प्रौद्योगिकियों की अनुपलब्धता के चलते हर साल सैकड़ों मछुआरों का जीवन समुद्र में खो जाता है. ये तकनीक भारतीय मछुआरों को समय पर अलर्ट भेजने में मदद करती है. इससे उनके समुद्र में बेहतर तरीके से मछलियों को पकड़ने में भी मदद मिलती है.
नेक्सट जेनरेशन डिजिटल और उपग्रह संचार प्रौद्योगिकियों को अपनाने से ना केवल मछली पकड़ने की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्धा पैदा होगी, और समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती का भी सामना किया जा सकेगा. नई उपग्रह तकनीक के साथ आज भारत के पास ऐसी सेवाओं की पहुंच है, जिससे मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और तूफान, चक्रवात या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी संचार स्थापित करने में मदद मिलेगी.