कोलकाता, 25 अप्रैल: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोगटुई गांव में 21 मार्च, 2022 को हुए नरसंहार में पीड़ित परिवारों के सदस्यों को सरकारी नौकरी सहित मुआवजे की पेशकश करने के प्रदेश सरकार के फैसले को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में सोमवार सुबह एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है. इस हत्याकांड में नौ लोगों की मौत हो गई थी. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक टीम मामले की जांच कर रही है. Birbhum violence: बीरभूम हिंसा मामले में CBI की बड़ी कार्रवाई, 21 नामजद आरोपियों पर FIR दर्ज
कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ के समक्ष दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि मुआवजा और रोजगार पत्र सही प्रक्रिया का पालन किए बिना दिए गए हैं और यह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं. याचिका में जांच को प्रभावित करने की दलील देते हुए फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई है.
खंडपीठ ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें रोजगार पत्र सहित मुआवजा प्रदान करने की प्रक्रियाओं का विवरण दिया गया हो. मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई 2022 को निर्धारित की गई है.
बता दें कि बोगटुई नरसंहार के बाद, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीड़ितों के परिवारों को मुआवजे और रोजगार देने की घोषणा की थी. उन्होंने प्रत्येक परिवार को एकमुश्त 5,00,000 रुपये के अलावा नरसंहार में जले हुए घरों के पुनर्निर्माण के लिए 1,00,000 रुपये के मुआवजे की घोषणा की थी. इसके अलावा उन्होंने नरसंहार में घायल हुए प्रत्येक बच्चे के लिए 50,000 रुपये और देने की घोषणा की.
4 अप्रैल, 2022 को मुख्यमंत्री ने दस व्यक्तियों, पीड़ित परिवारों के सभी सदस्यों को अनुकंपा के आधार पर रोजगार पत्र सौंपे थे. रोजगार पत्र ग्रुप डी पदों के लिए थे. पहले वर्ष के लिए रोजगार संविदात्मक यानी कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर होगा और प्रत्येक व्यक्ति को 10,000 रुपये मासिक धनराशि मिलेगी, जबकि एक साल बाद उन्हें स्थायी कर दिया जाएगा.