नई दिल्ली: चक्रवात बिपरजॉय ने भारत में बहुप्रतीक्षित दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए खतरा पैदा कर दिया है, क्योंकि बेहद भीषण तूफान ने बारिश के मौसम के आगमन को कम से कम एक सप्ताह आगे बढ़ा दिया है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, चक्रवात बिपरजॉय, जिसने 15 जून को गुजरात के तटीय क्षेत्रों में दस्तक दी थी, ने देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत को धीमा कर दिया था.
मानसून का मौसम आम तौर पर हर साल 1 जून तक शुरू हो जाता है और केरल में दस्तक देता है. हालांकि इस बार चक्रवात बिपरजॉय के कारण दक्षिण भारत में इसके आगमन में 10 दिन से अधिक की देरी हुई. Heavy Rain In Mumbai: दो लोगों की मौत, यातायात जाम, पेड़ गिरने, शॉर्ट सर्किट की कई घटनाएं सामने आईं
वास्तव में यह जून के तीसरे सप्ताह तक ही महाराष्ट्र और तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों तक पहुंचने में कामयाब रहा. राजस्थान में भी पिछले सात दिनों से भारी बारिश हो रही है.
आईएमडी के वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि अगले सप्ताह तक यह गति पकड़ लेगा और पूर्वी, मध्य और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों को कवर कर लेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि जून महीने में मानसूनी बारिश में 37 फीसदी की कमी होने का अनुमान है.
इसके कारण, 20 जून तक चावल की बुआई में 15 प्रतिशत की कमी देखी गई है, जबकि दालों की बुआई में 57 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है. आधिकारिक अनुमान के मुताबिक, तिलहन की बुआई में भी 14 फीसदी की गिरावट आई है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खाद्य पदार्थो की उपलब्धता में कमी से खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ेगी.
यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक ने जून के अपने नवीनतम बुलेटिन में कहा है कि बढ़ती खुदरा मुद्रास्फीति ने व्यक्तिगत उपभोग व्यय को धीमा कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप कॉपोर्रेट बिक्री में कमी आई है और क्षमता निर्माण की दिशा में निजी निवेश में कमी आई है.
अर्थव्यवस्था की स्थिति पर बुलेटिन के लेख में कहा गया है, मुद्रास्फीति को नीचे लाने और मुद्रास्फीति की उम्मीदों को स्थिर करने से उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी, कॉर्पोरेट राजस्व और लाभप्रदता में वृद्धि होगी, जो निजी पूंजीगत व्यय के लिए सबसे अच्छा प्रोत्साहन है.
आगे बढ़ते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि अल नीनो आने वाले दिनों में मानसून के मौसम पर भी प्रभाव छोड़ सकता है.
अल नीनो एक मौसमी घटना है जो दुनिया भर में समुद्री धाराओं, तापमान और मौसम की स्थिति में व्यवधान का कारण बनती है, जिससे वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलाव होता है और कुछ क्षेत्रों में लंबी, ठंडी सर्दियां होती हैं.
भारत में, इसके कारण मानसून के मौसम में सामान्य से कम वर्षा, सूखा और अपर्याप्त फसल उपज होती है. आईएमडी के मुताबिक, भारत में मॉनसून सीजन पर अल नीनो के असर पड़ने की 70 फीसदी संभावना है.
मौसम की स्थिति फसलों के लिए हानिकारक है, जिसके परिणामस्वरूप पैदावार को नुकसान होता है, जिससे खाद्य पदार्थो की कीमतें बढ़ती हैं. अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही साबित हुई तो इस सीजन में अल नीनो का असर कृषि क्षेत्र पर पड़ सकता है.