Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी के 34 साल, जानें कैसे रातों-रात तबाह हो गई थीं हजारों जिंदगियां
भोपाल गैस त्रासदी (Photo Credits: Facebook)

Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) को 34 साल पूरे हो गए हैं. यह इतिहास (History) की वह भयावह दर्दनाक त्रासदी है जिसकी याद आज भी लोगों के जहन में ताजा है. आज भी लोग उस काली रात को याद कर दहल जाते हैं, जिसने रातों-रात हजारों जिंदगियों (Lives) को तबाह कर दिया था. 2-3 दिसंबर 1984 की रात मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की राजधानी भोपाल (Bhopal) में जो कुछ भी हुआ उसने सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को दहला कर रख दिया था. यह वो सर्द रात थी जब हर कोई अपनी-अपनी रजाई में सो रहा था और एकाएक यहां के यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट से जहरीली गैस का रिसाव शुरु हो गया, यह जहरीली गैस देखते ही देखते पूरे शहर की हवा में फैल गई और हजारों जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए मौत के आगोश में समा गईं. इस त्रादसी को इतिहास का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा माना जाता है, जिसका दंश यहां रहने वाले लोग आज भी झेल रहे हैं.

भले ही इस भयावह त्रासदी के 34 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन यहां की हवाओं में आज भी जहरीली गैसों का खतरा बरकरार है, क्योंकि उस त्रासदी का तकरीबन 346 टन जहरीले कचरे का निस्तारण अब भी यहां के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.

2-3 दिसंबर 1984 को हुआ था यह हादसा

अब से ठीक 34 साल पहले 2-3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी (union carbide corporation bhopal) से अचानक जहरीली गैस (Toxic Gas) का रिसाव होने लगा, जिसने देखते ही देखते भोपाल गैस त्रासदी का भयावह रूप अख्तियार कर लिया. सर्दियों की रात में हुआ यह हादसा पल भर में हजारों जिंदगियों को तबाह कर गया.

इस त्रासदी के तकरीबन 8000 लोगों ने दम तोड़ दिया तो वहीं 8000 से ज्यादा लोगों ने इस जहरीली गैस की चपेट में आने के कारण बीमार होकर दम तोड़ दिया. इस हादसे के उस भयावह मंजर को याद कर आज भी लोग दहल उठते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि इस त्रासदी के कारण आज भी भोपाल के आस पास अपंग बच्चे पैदा होते हैं.  यह भी पढ़ें: North Sentinel Island: भारत के इस द्वीप पर रहती है दुनिया की सबसे खतरनाक जनजाति, यहां जाना मतलब मौत को गले लगाना

जहरीली गैस ने छीन ली हजारों जिंदगियां

बताया जाता है कि यूनियन कार्बाइड कंपनी से मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसका इस्तेमाल कीटनाशक के लिए किया जाता था. इस कंपनी से इस जहरीली गैस का रिसाव होने के कारण जो भी इसके संपर्क में आया उसकी मौत भी कीड़े-मकोड़ों की तरह हो गई. इस जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जिंदगियां छीन ली थी और इस हादसे की भयावह तस्वीरें आज भी लोगों को झकझोंर कर रख देती हैं.

हालांकि इस हादसे में मरने वाले की संख्या अलग-अलग बताई गई थी. पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 बताई गई थी, फिर मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी. जबकि कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि 8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग गैस रिसाव से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे, लेकिन इससे प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या लाखों में होने का अनुमान जताया गया.

ऐसे हुई थी भोपाल गैस त्रासदी 

दरअसल, 2 दिसंबर 1984 की रात में भूमिगत टैंक का तापमान अचानक 200 डिग्री तक पहुंच गया, जबकि इसका तापमान 4-5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था. अचानक से तापमान बढ़ जाने के कारण टैंक में बनने वाली जहरीली गैस उससे जुड़ी पाइप लाइन में पहुंचने लगी और पाइप लाइन का वॉल्व ठीक तरह से बंद न होने के कारण उससे गैस का रिसाव होने लगा. यह भी पढ़ें: 26/11 Mumbai Terror Attack: जब आतंकियों ने झकझोरा था मायानगरी की रूह को, कसाब ने कहा था- अब जेहाद का समय आ गया है

हालांकि उस दौरान ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों ने वॉल्व बंद करने की कोशिश की, लेकिन खतरे का सायरन बजते ही उन्होंने वहां से बाहर निकलना ही बेहतर समझा, जिसके बाद पल भर में ही ये जहरीली गैस आस पास के इलाकों में फैल गई और इतिहास के पन्नों में भोपाल गैस त्रासदी बनकर दर्ज हो गई.