नई दिल्ली, 31 मई : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान से एक दिन पहले शुक्रवार को पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर बैंकिंग सेक्टर को "भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के दलदल" में बदलने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि 2014 के बाद मोदी सरकार के कार्यकाल में बैंकिंग क्षेत्र में सुधार हुआ है.
वित्त मंत्री ने एक्स पर एक लंबे पोस्ट में पहले यूपीए सरकार के दौरान बैंकिंग क्षेत्र की खामियां गिनाईं और इसके बाद मोदी सरकार की उपलब्धियों का जिक्र किया. उन्होंने लिखा कि हाल ही में देश के बैंकिंग क्षेत्र ने तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ दर्ज कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने कहा कि यह 2014 से पहले की स्थिति के बिल्कुल विपरीत है जब "कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र को खराब ऋणों, निहित स्वार्थों, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के दलदल में बदल दिया था". यह भी पढ़ें : Pan-Aadhaar Link Deadline: पैन को आधार से लिंक कराने का अंतिम दिन आज, चूकने पर देना पड़ सकता है ₹10,000 तक का जुर्माना!
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एनपीए संकट के ‘बीज’ यूपीए सरकार के दौरान ‘फोन बैंकिंग’ के ज़रिए बोए गए थे, जब यूपीए नेताओं और पार्टी पदाधिकारियों के दबाव में अयोग्य व्यवसायों को लोन बांटे गए थे. इससे एनपीए और संस्थागत भ्रष्टाचार में भारी वृद्धि हुई. कई बैंकों ने अपने खराब ऋणों को 'सदाबहार' या पुनर्गठन करके उन्हें छिपाया. इस समस्या ने देश को विकास के लिए ज़रूरी ऋण प्रवाह से वंचित कर दिया. बैंक नए उधारकर्ताओं, खासकर एमएसएमई को ऋण देने से कतराने लगे.
उन्होंने कहा, "हमारी सरकार और आरबीआई द्वारा परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) जैसे उपायों ने एनपीए के छिपे हुए पहाड़ों का खुलासा किया और उन्हें छिपाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लेखांकन प्रथाओं को समाप्त कर दिया." उन्होंने कहा कि बैंकों द्वारा 2014 से पहले दिए गए ऋणों के लिए अपने एनपीए का पारदर्शी रूप से खुलासा करने के बाद, वित्त वर्ष 2017-18 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 14.6 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंच गया.
निर्मला सीतारमण ने आरोप लगाया कि यूपीए ने लुटियंस दिल्ली में वंशवाद और दोस्तों का पक्ष लिया, जबकि आम लोगों की उपेक्षा की. जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली तो ये दोस्त अभियोजन के डर से भाग गए. जो लोग अब बैंकों के राष्ट्रीयकरण का श्रेय लेते हैं, उन्होंने देश के गरीब और मध्यम वर्ग को दशकों तक बैंकिंग से वंचित रखा, जबकि उनके नेता और सहयोगी भ्रष्टाचार की सीढ़ियां चढ़ते रहे.
वित्त मंत्री ने कहा, "प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के कारण बैंकिंग क्षेत्र में सुधार हुआ. हमारी सरकार ने व्यापक और दीर्घकालिक सुधारों के माध्यम से बैंकिंग क्षेत्र में यूपीए के पापों का प्रायश्चित किया. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ 2015 की 'ज्ञान संगम' बैठक ने इन महत्वपूर्ण सुधारों की शुरुआत की."
उन्होंने कहा कि सरकार ने एनपीए को पारदर्शी रूप से पहचानने, समाधान और वसूली, पीएसबी को पुनर्पूंजीकृत करने और सुधार की एक व्यापक चार-'आर' की रणनीति को लागू किया. बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप की जगह पेशेवर ईमानदारी और स्वतंत्रता को अपनाया. मिशन इंद्रधनुष के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 3.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी डाली गई. तेजी से वसूली के लिए इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) लाई गई.
सरफेसी अधिनियम में संशोधन किया गया. पिछले पांच वर्षों के दौरान, बैंकों ने सरफेसी के माध्यम से 1.51 लाख करोड़ रुपये की वसूली की है. निर्मला सीतारमण ने आरोप लगाया कि झूठ फैलाने की आदत रखने वाला "विपक्ष गलत दावा करता है कि उद्योगपतियों को दिए गए कर्ज को "माफ" किया गया है". उन्होंने कहा कि विपक्षी नेता अब भी ऋण को बट्टे खाते में डालने और ऋण माफ़ी के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं. आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुसार बट्टे खाते में डालने के बाद बैंक सक्रिय रूप से खराब ऋणों की वसूली करते हैं.
उन्होंने बताया कि 2014 से 2023 के बीच बैंकों ने खराब ऋणों से 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने लगभग 1,105 बैंक धोखाधड़ी मामलों की जांच की है, जिसके परिणामस्वरूप 64,920 करोड़ रुपये की अपराध आय जब्त की गई है. दिसंबर 2023 तक 15,183 करोड़ रुपये की संपत्ति सार्वजनिक बैंकों को वापस कर दी गई है.
उन्होंने दावा किया कि खराब ऋणों की वसूली में कोई ढील नहीं बरती गई है, विशेष रूप से बड़े डिफाल्टरों के मामलों में. वित्त मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार के उपायों से देश में बैंकों की स्थिति मजबूत हुई है. वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 1.41 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड शुद्ध लाभ दर्ज किया, जो वित्त वर्ष 2013-14 के 36,270 करोड़ रुपये से लगभग चार गुना अधिक है.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्त वर्ष 2023-24 में शेयरधारकों के लिए 27,830 करोड़ रुपये का लाभांश घोषित किया (भारत सरकार का हिस्सा 18,088 करोड़ रुपये). उनका शुद्ध एनपीए मार्च 2024 में घटकर 0.76 प्रतिशत रह गया जो मार्च 2015 में 3.92 प्रतिशत और मार्च 2018 में 7.97 प्रतिशत था. उनका सकल एनपीए अनुपात मार्च 2024 में घटकर 3.47 प्रतिशत रह गया जो 2015 में 4.97 प्रतिशत था और मार्च 2018 में 14.58 प्रतिशत था.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सुधारों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पूंजी (इक्विटी और बॉन्ड) जुटाने की क्षमता में सुधार हुआ है. वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2023-24 के बीच उन्होंने बाजार से 4.34 लाख करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई है. कृषि ऋण वित्त वर्ष 2014-15 के 8.45 लाख करोड़ रुपये से ढाई गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 21.55 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
उन्होंने कहा, "एक मजबूत बैंकिंग क्षेत्र एक ऐसा जहाज है जिस पर अर्थव्यवस्थाएं चलती हैं. हम अपनी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत और स्थिर बनाने के लिए निर्णायक कदम उठाते रहेंगे, ताकि 2047 तक विकसित भारत के विकास पथ पर बैंकों का समर्थन सुनिश्चित हो सके." वित्त मंत्री ने कहा, "हमारी सरकार ने अंत्योदय के सिद्धांत के अनुरूप ‘बैंक रहित लोगों को बैंकिंग’, ‘ वित्त रहित लोगों को वित्तपोषित’ किया है. हम वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने और वंचितों को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं."