अयोध्या में विवादित स्थल पर नमाज पढने की इजाजत मांगने से जुड़ी याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के ऊपर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया है. हाई कोर्ट ने कहा है कि याचिका 'पब्लिसिटी स्टंट' के लिए दायर की गई थी इससे कोर्ट का समय बर्बाद हुआ. अदालत ने कहा कि ऐसी याचिकाओं का मकसद सिर्फ समाज में नफरत फैलाना होता है. बता दें कि अल-रहमान नाम के संगठन ने अयोध्या में विवादित स्थल पर मुसलमानों को दी गई जगह पर नमाज पढ़ने की इजाजत मांगी थी.
संगठन ने दावा किया था कि विवादित स्थल पर स्थित राम मंदिर पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत है. ऐसे में मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी जानी चाहिए. इस याचिका में हाई कोर्ट के 2010 के उस आदेश का हवाला भी दिया गया था जिसमें कहा गया था कि विवादित भूमि पर मुसलमानों का भी एक तिहाई हिस्सा है. इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने एक पब्लिसिटी स्टंट बताया.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि विवाद (Ayodhya Babri Masjid Case) मामले को जनवरी 2019 में सुनवाई के लिए किसी उचित पीठ के लिए सूचीबद्ध करने की बात कही थी. उचित पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जनवरी 2019 में तारीख तय करेगी. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था, "हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं. मामला जनवरी, फरवरी या मार्च में कब आएगा, यह फैसला उचित पीठ को करना होगा." प्रधान न्यायाधीश ने यह टिप्पणी वकील द्वारा अदालत से उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की तारीख तय करने के आग्रह पर की थी.
बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों -रामलला, निर्मोही अखाड़ा व मुस्लिम पक्षकारों- में बांटा था.