हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐसा केस रद्द किया जिसमें पत्नी ने पति पर क्रूरता और दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कोर्ट का मानना था कि इस मामले की जड़ में पति-पत्नी के बीच "यौन असंगति" (Sexual Incompatibility) थी, न कि दहेज की मांग या शारीरिक प्रताड़ना.
यह मामला [प्रांजल शुक्ला और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य] से जुड़ा था, जिसमें पत्नी ने अपने पति पर दहेज की मांग करने, उसे प्रताड़ित करने और अप्राकृतिक यौन गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगाए थे. हालांकि, कोर्ट ने एफआईआर की जांच के बाद यह पाया कि प्रताड़ना या मारपीट का कोई ठोस सबूत नहीं था, और मुख्य विवाद पति-पत्नी के बीच यौन असंतोष को लेकर था.
कोर्ट की टिप्पणी: यौन संतुष्टि और विवाह
न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने अपने फैसले में कहा, "यदि पति-पत्नी एक-दूसरे से यौन संतुष्टि की अपेक्षा नहीं करेंगे, तो वे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति कहां करेंगे?" कोर्ट ने आगे कहा कि यौन असंगति ही इस विवाद का मुख्य कारण था और इसी वजह से यह एफआईआर दर्ज की गई थी.
How will spouses satisfy sexual urges if not from each other? Allahabad High Court junks cruelty case
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— Bar and Bench (@barandbench) October 11, 2024
मामले का विवरण
पति और पत्नी की शादी 2015 में हुई थी. पत्नी का आरोप था कि शादी के बाद पति और उसके परिवार ने दहेज की मांग की. उसने यह भी आरोप लगाया कि पति शराब का आदी था और अप्राकृतिक यौन संबंध की मांग करता था. उसने यह भी दावा किया कि पति अश्लील फिल्में देखता था, नग्न होकर उसके सामने घूमता था और हस्तमैथुन करता था. जब उसने इन कृत्यों का विरोध किया, तो पति ने उसे गला घोंटने की कोशिश की.
पत्नी ने यह भी आरोप लगाया कि पति उसे अपने माता-पिता के साथ छोड़कर सिंगापुर चला गया और जब वह आठ महीने बाद सिंगापुर गई, तो वहां भी उसे प्रताड़ित किया गया.
इस आधार पर पति और उसके परिवार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 323, 504, 506, 509 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
कोर्ट का फैसला
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि पत्नी के आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे और उनके दावों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं था. कोर्ट ने कहा कि "किसी भी स्थिति में, पत्नी को कभी कोई शारीरिक चोट नहीं पहुंचाई गई. इस मामले के तथ्यों से यह कहना गलत होगा कि यह धारा 498-A के तहत क्रूरता का मामला है. दहेज की किसी विशिष्ट मांग का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है."
अंततः कोर्ट ने इस मामले को रद्द कर दिया. इस फैसले के बाद समाज में यौन संतुष्टि और विवाह के मुद्दे पर एक नई चर्चा शुरू हो गई है, जहां पति-पत्नी के यौन संबंधों को निजी जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है.