अजीत जोगी का निधन: जानें उनका राजनीतिक सफर, कैसे IAS की नौकरी छोड़ बने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी (Ajit Jogi) का निधन हो गया. पिछले महीने उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद रायपुर के श्री नारायण अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जहां इलाज के दौरान वे कोमा में चले गए थे. जिसके बाद उन्हें उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. उनके सवास्थ में सुधार नहीं होने पर शुक्रवार को उनका निधन हो गया.
रायपुर: छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी (Ajit Jogi) का निधन हो गया. पिछले महीने उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद रायपुर के श्री नारायण अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. जहां इलाज के दौरान वे कोमा में चले गए थे. जिसके बाद उन्हें उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था. उनके सवास्थ में सुधार नहीं होने पर शुक्रवार को उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उनका निधन हो गया. उनके निधन की जानकारी खुद उनके बेटे लोगों को दी. उनके निधन के बाद उनके चाहने वाले लोगों के साथ ही पूरे छत्तीसगढ़ में शोक की लहर है. वहीं पूर्व सीएम अजीत जोगी के निधन की खबर को सुनकर राजनीति से जुड़े नेता उन्हें श्रधांजलि भी दे रहे है. अजीत जोगी के बारे में शायद लोगों कम ही मालूम होगा कि वे पूर्व पीएम राजीव गांधी के काफी करीबी थे और उन्होंने IAS की नौकरी छोड़कर राजनीति में राजीव गांधी के कहने पर कदम रखा था. जिसके बाद उन्होंने राजनीति में इस कदर उनकी तरक्की हुई कि वे राज्यसभा सांसद बनने के साथ ही देखते-देखते छत्तीसगढ़ के सीएम बन गए.
पूर्व सीएम अजीत जोगी राजनीति में आने से पहले और बाद में भी लगातार किसी न किसी से वजह से हमेशा विवादों में रहे जोगी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बहुत प्रभावित थे और पत्रकारों तथा अपने नजदीकी मित्रों के बीच अक्सर एक किस्सा दोहराते थे. उनकी इस पसंदीदा कहानी के मुताबिक अखिल भारतीयप्रशासनिक सेवा के प्रोबेशनर अधिकारी के तौर पर जब उनका बैच तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिला तो एक सवाल के जवाब में इंदिरा गांधी ने कहा, ‘‘भारत में वास्तविक सत्ता तो तीन ही लोगों के हाथ में है – डीएम, सीएम और पीएम.’’युवा जोगी ने तब से यह बात गांठ बांध रखी थी. जब वह मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए तो एक बार आपसी बातचीत में उन्होंने टिप्पणी की कि हमारे यहां (भारत में) ‘‘सीएम और पीएम तो कुछ लोग (एच डी देवेगौड़ा, पी वी नरसिंहराव, वी पी सिंह और उनके पहले मोरारजी देसाई) बन चुके हैं, पर डीएम और सीएम बनने का सौभाग्य केवल मुझे ही मिला है. यह भी पढ़े: Ajit Jogi Dies at 74: छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी का हुआ निधन, रायपुर के हॉस्पिटल में थे भर्ती
पूर्व पीएम राजीव गांधी के काफी थे करीबी:
हिंदी और अंग्रेजी पर समान अधिकार रखने वाले और अपने छात्र जीवन से ही मेधावी वक्ता रहे जोगी की राजनीतिक पढ़ाई मध्य प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले अर्जुन सिंह की पाठशाला में हुई थी.नौकरशाह के तौर पर सीधी जिले में पदस्थापना के दौरान वह अर्जुन सिंह के संपर्क में आए थे. सीधी अर्जुन सिंह का क्षेत्र था और युवा अधिकारी के तौर पर जोगी उन्हें प्रभावित करने में पूरी तरह सफल रहे थे. बाद में रायपुर में कलेक्टर रहते हुए वह तब इंडियन एअरलाइंस में पायलट राजीव गांधी के संपर्क में आए.
IAS की नौकरी छोड़ राजनीति में रखा कदम:
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब जोगी इंदौर में जिलाधिकारी के तौर पर पदस्थ थे और सबसे लंबे समय तक डीएम बने रहने का रिकार्ड उनके नाम हो चुका था.जून 1986 में उन्हें पदोन्नति के आदेश जारी हो चुके थे और जोगी इंदौर जिले में उनकी विदाई के लिए हो रहे आयोजनों में व्यस्त थे जब प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें फोन कर नौकरी से इस्तीफा देने और राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने को कहा गया.अपने एक संस्मरण में जोगी ने लिखा है कि वह बहुत धर्मसंकट में थे और अंत में पत्नी रेणु जोगी व मित्र दिग्विजय सिंह की सलाह मानते हुए उन्होंने नामांकन दाखिल करने का फैसला किया.
जोगी ने लिखा है कि दिग्विजय सिंह ने उन्हें समझाते हुए न केवल राज्यसभा का प्रस्ताव स्वीकार करने की सलाह दी थी बल्कि यह भविष्यवाणी भी की थी कि राजनीति में उनका भविष्य बहुत उज्ज्वल है. जोगी के अनुसार, दिग्विजय ने कहा था, ‘‘भविष्य में कभी प्रदेश में किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाने की बात आई तो उसका गौरव भी मुझे ही हासिल होगा. ’ यह संयोग ही था कि जब छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अजीत जोगी के नाम पर मुहर लगाई तो राज्य के नेताओं व विधायकों के बीच सहमति बनाने की जिम्मेदारी उन्होंने उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को ही सौंपी.
कांग्रेस में आगे बढ़ने में जोगी को उनकी आदिवासी पृष्ठभूमि और नेतृत्व (गांधी परिवार) से नजदीकी का भरपूर फायदा मिला. लंबे समय तक वह गांधी परिवार के विश्वस्त नेताओं में रहे। एक समय कांग्रेस के भविष्य के नेताओं में उनकी गिनती होने लगी थी. मुख्यमंत्री बनने के पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर उनका कार्यकाल आज भी याद किया जाता है। पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस के प्रवक्ताओं के तौर पर जो प्रमुख नेता पत्रकारों के बीच लोकप्रिय रहे उनमें महाराष्ट्र से पार्टी के प्रमुख नेता वी एन गाडगिल और उनके बाद जोगी ही थे.
नौकरशाह के तौर पर मिले प्रशिक्षण ने जोगी की वरिष्ठ नेताओं के बीच पहुंच आसान बनाने में काफी सहायता की और इसका पूरा फायदा उन्होंने जानकारियां हासिल करने और उन्हें सुविधानुसार मीडिया तक पहुंचाने में उठाया. प्रवक्ता के तौर पर उनकी जो राष्ट्रीय छवि बनी उसने उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने में काफी मदद की।जोगी जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने तब उनके सामने तीन बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके श्यामा चरण शुक्ल, उनके भाई विद्या चरण शुक्ल और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा जैसे दिग्गज थे.
लेकिन इन सबका दावा खारिज कर सोनिया गांधी ने जोगी को प्राथमिकता दी. जोगी का सबसे बड़ा तर्क होता था कि ‘‘ये लोग कैसे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बन सकते हैं, इनमें से कोई भी स्थानीय छत्तीसगढ़ी में बात नहीं कर सकता.’ यह सही भी था. शुक्ल बंधु मूलत: उत्तर प्रदेश से थे और वोरा राजस्थान से। लेकिन, जोगी को प्राथमिकता मिलने का कारण छत्तीसगढ़ी बोलने और समझने की उनकी योग्यता नहीं बल्कि उनका गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान होना था. कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी की ओर से की गई यह पहली महत्वपूर्ण नियुक्ति थी (इनपुट भाषा )