उत्तरकाशी की त्रासदी नई चेतावनी; क्यों लगातार आपदाओं की चपेट में है उत्तराखंड?
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देहरादून: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में आई प्राकृतिक आपदा ने एक बार फिर राज्य की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया. मंगलवार को करीब 1:45 बजे खीर गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने की घटना ने देखते ही देखते भयावह तबाही मचा दी. तेज बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ ने धराली गांव और आसपास के इलाकों को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे 20-25 होटल और होमस्टे बह जाने की आशंका है. 100 से अधिक लोग लापता हैं और राहत-बचाव कार्य तेजी से जारी है.

क्या होता है 'बादल फटना'?

‘बादल फटना’ एक चरम मौसमी घटना होती है जिसमें बहुत कम समय में 100 मिमी से ज़्यादा बारिश हो जाती है. खासकर पहाड़ी इलाकों में इसका असर ज्यादा होता है क्योंकि वहां पानी के बहाव के रास्ते सीमित होते हैं. इस वजह से अचानक बाढ़, भूस्खलन और भारी जान-माल का नुकसान देखने को मिलता है.

उत्तराखंड: आपदाओं की जद में क्यों?

उत्तराखंड का भौगोलिक स्थान और बनावट इसे आपदा-प्रवण बनाता है. यह क्षेत्र हिमालय की गोद में स्थित है जो एक युवा पर्वत श्रंखला है और लगातार भूगर्भीय हलचलों (Tectonic Activity) का शिकार रहता है. यही कारण है कि यहां भूकंप, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं बार-बार होती हैं.

कुछ प्रमुख कारण:

  • तेजी से बढ़ता तापमान: ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं जिससे अचानक बाढ़ (GLOFs) की घटनाएं बढ़ी हैं.
  • मानसून की नमी: अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली नमी इन घाटियों में फंस जाती है, जिससे अचानक बारिश का खतरा होता है.
  • भूगर्भीय अस्थिरता: 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में सबसे अधिक अस्थिर क्षेत्र हैं जो भूस्खलन और भूकंप को बढ़ाते हैं.

इंसानी गतिविधियां और विकास का दुष्परिणाम

उत्तराखंड की प्राकृतिक अस्थिरता के साथ-साथ मानवीय गतिविधियां भी आपदाओं को बढ़ा रही हैं. पर्यटन और तीर्थयात्रा ने राज्य में बेतहाशा निर्माण को जन्म दिया है.

  • चारधाम यात्रा के लिए सड़कों का चौड़ीकरण: इससे पहाड़ों की कटाई और भूस्खलन में इज़ाफा हुआ है.
  • निर्माण गतिविधियां: होटलों, दुकानों और अन्य संरचनाओं को बिना वैज्ञानिक सोच के नाजुक ढलानों पर बनाया गया है.
  • वनों की कटाई: जंगल प्राकृतिक सुरक्षा कवच होते हैं, जो अब नष्ट हो रहे हैं.

आपदाओं का लंबा इतिहास

उत्तराखंड में आपदाएं कोई नई बात नहीं हैं. कुछ बड़ी घटनाएं जो आज भी लोगों की यादों में हैं:

  • 1991 उत्तरकाशी भूकंप: 768 लोगों की मौत.
  • 1998 मालपा भूस्खलन: पूरा गांव मिटा, 255 लोगों की मौत.
  • 2013 केदारनाथ बाढ़: 5,700 से अधिक की मौत, 3 लाख फंसे.
  • 2021 चमोली बाढ़: 200 से ज्यादा लोग मारे गए या लापता.
  • 2022 द्रौपदी का डांडा हिमस्खलन: 27 पर्वतारोही मारे गए.

क्या कहता है हालिया आंकड़ा?

  • 1988 से 2023 के बीच राज्य में 12,319 भूस्खलन दर्ज किए गए.
  • केवल 2023 में ही 1,100 से ज़्यादा भूस्खलन हुए.
  • 2024 के मानसून में अब तक 1,521 भूस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं.
  • बद्रीनाथ हाईवे पर 132 पुराने और 35 नए भूस्खलन-जोनों की पहचान की गई है.

क्या है समाधान की जरूरत?

अब समय आ गया है कि हम चेत जाएं और केवल आपदा के बाद राहत नहीं, बल्कि आपदा से पहले सुरक्षा पर ध्यान दें.

क्या किया जाना चाहिए?

  • संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान और निर्माण पर रोक.
  • पेड़ लगाना और हरियाली बढ़ाना.
  • भूस्खलन चेतावनी मानचित्र (LHZ Maps) का उपयोग.
  • स्थानीय निवासियों को जागरूक करना और प्रशिक्षण देना.
  • पर्यटन और निर्माण पर सख्त नियम लागू करना.

चेतावनी हर बार क्यों?

हर साल जब उत्तराखंड में आपदा आती है, तो सरकार और जनता कुछ दिन सजग रहती है, लेकिन फिर वही लापरवाही शुरू हो जाती है. उत्तरकाशी की घटना एक और चेतावनी है. इस बार हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अगर हमने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो आने वाला कल और भी भयावह हो सकता है.