नोटबंदी के 5 साल, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा, भ्रष्टाचार पर अंकुश
पैसे (Photo Credits-Pixabay)

काले धन पर प्रहार करने के लिए 5 साल पहले केंद्र सरकार ने नोटबंदी की फैसला किया था. इस फैसले का मुख्य मकसद देश में डिजिटल उद्देश्य को बढ़ाने के साथ ही काले धन पर रोक लगाना था. आइए जानते हैं कि नोटबंदी के बाद इन पांच साल में कितना बदलाव आया. 7th Pay Commission: इन पेंशनर्स के लिए बड़ी खुशखबरी, अब बढ़कर मिलेगी फैमिली पेंशन

भ्रष्टाचार पर लगा अंकुश

नोटबंदी के दौर में 5,00 और 1,000 के पुराने नोट बंद होने से उन भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगा जो काला धन अपने पास जमा किए हुए थे. इस प्रकार सरकार के इस कदम से देश में भ्रष्टाचार पर तो अंकुश लगा ही साथ ही लोगों को कैशलेस पेमेंट का विकल्प भी मिला। अब एक सब्जी का ठेला लगाने वाला भी बड़ी आसानी से कैशलैस लेनदेन कर लेता है. देश में कैशलैस पेमेंट को व्यापक स्तर तक ले जाने में सरकार का महत्वपूर्ण योगदान रहा. इसके लिए सरकार ने डिजिटल पेमेंट करने के लिए लोगों को जागरूक करने का कार्य भी किया.

आतंकवाद पर चोट

देश में नोटबंदी के कदम ने आतंकवाद की कमर तोड़ कर रख दी थी क्योंकि जिन नकली नोटों के जरिए आंतकवाद का प्रसार सीमा पर से हो रहा था, उसपर सख्त लगाम लगी. एक तरह से देखा जाए तो नोटबंदी ने देश के सुरक्षा फ्रंट को मजबूत करने का काम किया. नोटबंदी के कारण नक्सलियों ने हिंसा छोड़ आत्मसमर्पण का रास्ता चुना और देश की मुख्यधारा के साथ चलना पसंद किया.

डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा

यह बात सही है कि पहले के मुकाबले अब नकदी पर लोगों की निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है. यानि अब लोग डिजिटल लेनदेन को तरजीह देते हैं. खासकर खुदरा उपभोक्ता और बड़ी संख्या में लोग डिजिटल माध्यम के जरिए अधिक भुगतान कर रहे हैं. कोरोना वायरस ने भी काफी हद तक डिजिटल लेनदेने के मॉडल को आकार दिया. कोरोना काल में लोग कैश भुगतान की जगह डिजिटल माध्यमों का उपयोग पहले के मुकाबले ज्यादा करते हुए नजर आए. इस दौरान बैंकों में जमा रकम बढ़ने से पता चला कि पहले की तुलना में अब आर्थिक अनिश्चितता कम हो गई है और लोगों का मनोबल पहले से बढ़ गया है.