Memory of Pankaj Udhas: यारा तेरी गलियों में यादें हुई आवारा...
Pankaj Udhas | X

अभी आवाज की दुनिया के जादूगर अमीन सयानी को खोने का गम भुला भी न सके थे, कि सुरीली आवाज के एक और जादूगर पंकज उधास ने इस शाश्वत दुनिया को अलविदा कह दिया. सशरीर पंकज उधास आज हमारे बीच भले ना हों, लेकिन उनकी अमर और मखमली आवाजों से सजी ‘चिट्ठी आई है...’ ना कजरे की धार... चांदी जैसा रंग है तेरा, मत कर इतना गुरूर, ऐ गम ऐ जिंदगी कुछ तो दे मशवरा... हुई महंगी बहुत ही शराब... आप जिनके करीब होते हैं, बड़े खुशनसीब...इंकार किया जब साकी ने पैमाने टूट गये.. उन्हें हमारे दिलों में जिंदा रखेंगे.आइये उनके जीवन के कुछ यादगार पहलू शेयर करते हैं आपके साथ...

लता जी, रेडियो और उधास

एक मुलाकात में पंकज जी ने बताया था, उनके घर में संगीत का माहौल नहीं था, एक रेडियो था, जो बजता रहता था, कुछ गाने जब मुझे आकर्षित करते, मैं उसे ध्यान से सुनता, और कंठस्थ कर लेता. इसमें ज्यादातर लता जी के गाने होते थे, एक बार लताजी का ‘ऐ मेरे वतन के लोगों...’ मैंने सुना, तो बिना हिले सुनता रहा. वह 1962 का दौर था. चीन-भारत युद्ध के कारण यह गाना खूब सुना जा था. एक दिन स्कूल के एक कार्यक्रम में मुझे कुछ भी परफॉर्म करने के लिए कहा गया तो मैंने ऐ मेरे वतन के... गाया. गाना खत्म होने पर खूब तालियां बजी. उस समय 10-11 साल की उम्र रही होगी. इसके बाद राजकोट में एक दांडिया डांस में हजारों की भीड़ में पुनः मुझे गाने के लिए कहा, मैंने यही गाना गा दिया. सार्वजनिक मंच पर यह मेरा पहला परफॉर्मेंस था,

‘और भला क्या मांगू...’

यह पंक्ति उनके सुपरहिट गजल की है, लेकिन उनकी प्रेम-कहानी के साथ इसका गहरा ताल्लुक है. बात 70 के दशक की है, पंकज के जीवन में संयोगवश फरीदा ने कदम रखा. पहली ही मुलाकात में वे अपना दिल खो बैठे. वे पारिवारिक रजामंदी से अपने रिश्ते को शादी का रूप देना चाहते थे. पंकज का परिवार इस रिश्ते को स्वीकृति दे चुका था, लेकिन फरीदा का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. पंकज के परिजनों ने किसी और को जीवन-साथी बनाने का सुझाव दिया. पंकज ने कहा और भला क्या और क्यों? दोनों ने संयम और धैर्य से उचित समय का इंतजार किया अंततः फरीदा के घर वाले भी तैयार हो गये और इस तरह फरीदा उनकी जिंदगी में आई.

ना कजरे की धार... मुकेश की जगह पंकज

पंकज उधास की इस गजल ने सुनील शेट्टी के करियर को एक नई उड़ान दी., लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह गाना जब रिकॉर्ड हुआ, तब सुनील शेट्टी पैदा भी नहीं हुए थे. यह गाना 1960 में किसी अन्य फिल्म के लिए इंदीवर ने लिखा और कल्याणजी आनंदजी ने मुकेश की आवाज में रिकॉर्ड करवाया, लेकिन नये संगीतकार होने के कारण गाना रिकॉर्ड होकर भी बाजार में नहीं आया. लेकिन 30 साल बाद जब मोहरा बनी, तब कल्याणजी के बेटे विजू शाह ने इस गाने में मुकेश की जगह नये-नये आये पंकज उधास की आवाज में रिकॉर्ड करवाया. इस गाने ने जो धूम मचाई, उसके बारे में क्या कहा जा सकता है.

चिट्ठी आई है

एक इंटरव्यू में पंकजजी ने माना था कि, ‘चिट्ठी आई है...’ उनका सबसे इमोशनल गीत है, वे जहां भी शो करते, श्रोता यह गाना सुनने की फरमाइश जरूर करते थे. शायद ही कोई ऐसा शो होगा. जहां श्रोता यह गाना सुनकर रोये ना हों, लेकिन मैं एक प्रोफेशनल गायक था. सहजता से गाता था. लेकिन जिन दिनों यह गाना अंडर प्रोडक्शन था, राज कपूर साहब से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि ‘तुम्हारा चिट्ठी आई है...’ गाना हर किसी को रुलाएगा. मैं भी रोया. मैं हैरान था कि राज साहब को यह गाना कहां मिल गया? फिल्म (नाम) तो रिलीज भी नहीं हुई है. मैंने उनसे पूछा, सर आपने गाना कहां देखा? उन्होंने बताया कि राजेंद्र कुमार ने डिंपल थियेटर (राजेंद्र कुमार का होम स्टूडियो) में इस गाने का रॉ मैटेरियल दिखाया था. मैंने महेश जी (डायरेक्टर महेश भट्ट) को कुछ टिप्स भी दिया था. राज साहब और राजेंद्र कुमार गहरे मित्र थे.