जिसने देश प्रेम के खातिर नासा की नौकरी छोड़ी, देश का भविष्य सुधारने में अपनी निजी जिंदगी दाव पे लगाई, ऐसे देशभक्त को ईनाम के रूप में मिला देशद्रोही होने का दाग. रॉकेट्री: द नंबी इफेक्ट एक ऐसी फिल्म है, जो आपके सामने समाज के दुमूहे रूप को सामने रखने का काम करती है. यह किसी से छुपा नहीं है कि आर माधवन एक बेहतरीन अभिनेता हैं, पर अब इन्होंने एक्टर के साथ साथ राइटर और डायरेक्टर की भूमिका भी बखूबी निभाई है.
फिल्म की शुरुआत होती है हंसते खेलते नंबी नारायणन (आर माधवन) के परिवार से, पर यह हंसता खेलता परिवार अगले ही पल ऐसी मुसीबत में फंसता है जहां से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है. नारायणन को पुलिस घसीटते हुए गिरफ्तार कर लेती है. अब फिल्म टर्न लेटी है, एंट्री होती है किंग खान यानी शाहरुख खान की, जो पूर्व इसरो वैज्ञानिक व एयरोस्पेस इंजीनियर नारायणन का इंटरव्यू ले रहे हैं. यहां से शुरू होती है नारायणन की एक ऐसी जर्नी जो आपकी निगाहों को स्क्रीन से हटने नहीं देगी. नारायणन हर हाल में ज्ञान लपेटना चाहते थे चाहे इसके लिए किसी के घर का कूड़ा करकट ही साफ क्यों न करना पड़े. उन्होंने अमेरिका में प्रोफेसर से एयरोस्पेस इंजन के बारे में अधिक जानने के लिए उनके घर के सारे काम किए और तीन साल की बजाय नौ महीने में ही ज्ञान हासिल कर देश वापस आ गए. इंडिया आने के बाद वे इसरो में काम करना शुरू करते हैं, इसी बीच उन्हें नासा में जॉब ऑफर होती है, पर देश प्रेम के खातिर लाखों की जॉब को ठुकरा देते हैं, जो उनकी पूरी जिंदगी बदल सकती थी. उनका मकसद बन जाता है, किसी भी हाल में इंडिया को स्पेस रॉकेट के मामले में सबसे ऊपर वाले पायदान पर लाना, पर यह सब इतना आसान नहीं था. इसके लिए उन्होंने कभी रूस तो कभी फ्रांस से तगड़ी डील की. यहां तक कि अपनी जान भी दाव पर लगाई. पर बदले में मिला देशद्रोही होने का दाग.
आर माधवन ने इस फिल्म की छोटी से छोटी बारीकियों पर काम किया है. जैसा कि उन्होंने अपने इंटरव्यूज में कहा था कि यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसे आप फिल्म देखने के बाद महसूस कर लेंगे. अब चाहे बात हो सिनेमेटोग्राफी की, डायलॉग्स की या फिर डायरेक्शन की या ऐक्टिंग की, हर जगह पर रॉकेट्री जादू बिखेरती है. फिल्म के कुछ कुछ सीन्स जैसे नारायणन का जेल का टॉर्चर, घर आने के बाद पत्नी का पागल हो जाना आपको ये सीन्स स्तब्ध कर देंगे.
बॉलीवुड की लगभग हर बायोपिक में देखने मिलता है कि हम पर्सन की पॉजिटिव साइड तो बखूबी दिखाते हैं, पर निगेटिव साइड दिखाने से हम अभी भी घबराते हैं. इसका पालन इस फिल्म में भी कुछ हद तक हुआ है. पर यह टिपिकल बॉलीवुड फिल्मों और टिपिकल बायोपिक से अलग है. आपको एंटरटेन करने के लिए फिल्म में कोई हीरोइन नहीं है न ही फिल्म में बेमतलब के गानों को ठूसा गया है. जरूरत के हिसाब से म्यूजिक परफेक्ट है.
रेटिंग्स: 4/5