हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में जो मुकाम शंकर-जयकिशन (Shankar-Jaikishan) की जोड़ी ने अर्जित किया, उस मुकाम तक आज भी कोई संगीतकार नहीं पहुंच सका. हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग में शंकर जयकिशन की जोड़ी की तूती बोलती थी. उन्हें मुंहमांगी कीमत दी जाती थी. 50 के दशक में वह पहले संगीतकार थे, जो प्रति फिल्म एक लाख रूपये लेते थे. कहा तो यहां तक जाता है कि रामानंद सागर ने अपनी फिल्म 'आरजू' के लिए उन्हें उस दौर में दस लाख रूपये का भुगतान किया था. इस जोड़ी ने अपने 22 साल के करियर में 700 से ज्यादा फिल्मों के लिए अनगिनत हिट संगीत दिये. उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं 'बादल', 'नगीना', 'पूनम', 'शिकस्त', 'सीमा', 'बसंत बहार', 'चोरी-चोरी', 'नई दिल्ली', 'राजहठ', 'कठपुतली', 'यहूदी', 'अनाडी', 'छोटी बहन', 'कन्हैया', 'लव मैरिज', 'दिल अपना और प्रीत पराई', 'जिस देश में गंगा बहती है', 'जब प्यार किसी से होता है', 'जंगली', 'ससुराल', 'असली नकली', 'प्रोफसर', 'दिल एक मंदिर', 'हमराही', 'राजकुमार', 'आम्रपाली', 'सूरज', 'तीसरी कसम', 'ब्रह्मचारी', 'कन्यादान', 'शिकार', 'मेरा नाम जोकर', 'अंदाज' इत्यादि आज 12 सितंबर जयकिशन की पुण्य-तिथि पर प्रस्तुत है उनके जीवन के कुछ अनछुये लम्हें...
बंबई आये थे एक्टर बनने
जयकिशन का पूरा नाम जयकिशन दयाभाई पांचाल था. 4 नवंबर 1929 को गुजरात के वंसाडा में जन्में जयकिशन बचपन से ही हारमोनियम बजाने में निपुण थे. बाद में उन्होंने संगीत विशारद वाडीलाल जी से शास्त्रीय संगीत की तालीम ली. हांलाकि वे एक्टर बनना चाहते थे. इसी धुन में 19 वर्ष की आयु में उन्होंने बंबई की ओर रुख किया. पेट की भूख शांत करने के लिए उन्होंने बंबई की एक फैक्ट्री में टाइमकीपर की नौकरी भी की. फिल्मों में काम पाने के लिए वे अथक संघर्ष कर रहे थे, जब सांताक्रुज में एक निर्माता का इंतजार करते हुए उऩकी मुलाकात शंकरजी से हुई. उन दिनों शंकरजी पृथ्वी थियेटर में तबला बजाते थे, मौका मिलने पर छोटी-मोटी भूमिकाएं भी कर लेते थे. उन्होंने जयकिशन को भी पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम बजाने की नौकरी दिलवा दी.
ऐसे बनी जोड़ी शंकर-जयकिशन की
साल 1948 में राज कपूर ने अपनी पहली फिल्म 'आग' का निर्माण शुरु किया. इस फिल्म का संगीत राम गांगुली दे रहे थे. इसके बाद राज कपूर ने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'बरसात' के लिए भी राम गांगुली को फाइनल कर लिया था. लेकिन एक दिन राज कपूर ने देखा कि राम 'बरसात' के लिए तैयार धुन किसी और निर्माता की फिल्म में भी इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्होंने तुरंत राम गांगुली को बाहर का रास्ता दिखाया और 'बरसात' के लिए किसी युवा संगीतकार की तलाश करने लगे. तभी राज कपूर के मित्र विश्व मेहरा ने उऩ्हें शंकर जयकिशन की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये नयी जोड़ी अच्छा काम कर सकती है. राज कपूर को मित्र की बात भा गई. उन्होंने शंकर जयकिशन के सामने 'बरसात' का संगीत बनाने का प्रस्ताव रखा. शंकर जयकिशन के लिए इससे सुनहरा अवसर और क्या हो सकता था. इस जोड़ी ने 'बरसात' के लिए काफी मेहनत की. परिणाम स्वरूप 'बरसात' के संगीत ने हिंदी सिनेमा संगीत की दुनिया में धमाल मचा दिया. इसके हर गाने सुपरहिट हुए. इसे संयोग ही कहा जायेगा कि इसी 'बरसात' में पहली बार हसरत जयपुरी, शैलेंद्र, मुकेश, लता मंगेशकर और नरगिस भी जुड़े. इसके बाद इस टीम ने लंबे समय तक एक साथ काम करते हुए तमाम हिट फिल्में दी. 'बरसात' से बतौर संगीतकार सफर शुरु करने के बाद शंकर जयकिशन को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. साल 1971 तक इस जोड़ी ने सैकड़ों सुपरहिट गाने दिये. 12 सितंबर को जयकिशन की असमय मौत के साथ ही यह जोड़ी हमेशा के लिए टूट गयी. मगर शंकर जी ने इसके बाद भी अपने नाम के साथ जयकिशन का नाम नहीं हटा सके. दोनों की जोड़ी ने लगभग 170 से भी ज्यादा फिल्मों में संगीत दिया. इस जोड़ी ने 9 बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था, जो आज भी एक रिकॉर्ड है.
जब लताजी जयकिशन को स्पॉट ब्वॉय समझ बैठीं
उन दिनों लताजी ताड़देव में रहती थी, एक दिन उनके इसी आवास पर एक खूबसूरत-सा युवक आया. उसने उन्हें बताया कि राजकपूर जी ने उन्हें चैंबूर स्थित पृथ्वी थियेटर में रिकॉर्डिंग के लिए बुलाया है. लताजी ने उस खूबसूरत से युवक को देखकर सोचा, आरके बैनर में राजकपूर से लेकर स्पॉट बॉय तक सभी खूबसूरत होते हैं. अगले दिन लताजी टैक्सी करके स्टूडियो पहुंची, तो राज कपूर ने उसी युवक की ओर इशारा करते हुए बताया कि ये मेरे नये संगीतकार शंकर जयकिशन के जयकिशन जी हैं. यह सुनते ही लताजी अवॉक रह गयीं. थोड़ी देर बाद अपनी शर्मिंदगी को छिपाते हुए उन्होंने राजजी को बताया कि कैसे उन्होंने उस युवक को स्पॉट बॉय समझा था. अपनी सफाई देते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि 'आर.के' का हर स्टाफ स्मार्ट और खूबसूरत होते हैं. बहुत जल्दी लताजी और जयकिशन के बीच अच्छी दोस्ती हो गयी. क्योंकि अपनी पहली ही फिल्म बरसात के सारे सुपरहिट करवा कर हिंदी सिनेमा संगीत की दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था.
मुड़ मुड़ के न देख और जयकिशन
एक बार हसरत जयपुरी से इंटरव्यू करते समय उन्होंने जयकिशन पर बहुत रोचक बात बताई थी. उन्होंने बताया, - जयकिशन बेहद रंगीले मिजाज वाले थे. फुरसत के पलों में राज कपूर अकसर मुझे, शैलेंद्र, मुकेश, शंकर, जयकिशन को लेकर चर्चगेट स्टेशन के करीब स्थित एक रेस्तरां में बैठते थे, और केसी कॉलेज जाने वाली लड़कियों पर कटाक्ष करते हुए खूब मस्ती करते थे. एक दिन रेस्तरां से गुजरती एक लड़की पर हमारी ही टीम से किसी ने कुछ फिकरा कसा, इस पर लड़की ने गुस्से में पलट कर देखा. तभी जयकिशन ने कहा -मुड़ मुड़ के न देख पीछे... राज कपूर को यह लाइन भा गई. उन दिनों वे फिल्म '420' बना रहे थे. उन्होंने शैलेंद्र से कहा कि मुझे इस लाइन पर एक गीत चाहिए. हसरत जयपुरी ने आगे बताया था कि उसी रात ढाई बजे राज कपूर का फोन हमारी पूरी टीम के पास आया कि हम सभी उनके आरके स्टूडियो पहुंचें. राजकपूर द्वारा इस तरह बुलाने के पीछे हमेशा कुछ खास मकसद होता था. हम सभी वहां पहुंचे तो वहां हमें एक अच्छी खासी पार्टी की व्यवस्था देखने को मिली. पार्टी के बीच उसी रात इस गाने को धुन के साथ मुकम्मल कर लिया गया. गाने के बोल यूं बनें, मुड़ मुड़ के ना देख पीछे मुड़ मुड़ के जिंदगानी के सफर में हम भी कोई कम नहीं हैं...
जब जोड़ी टूटते-टूटते बची!
50 और 60 के दशक में शंकर जयकिशन का सितारा बुलंदियों पर था. निर्माता-निर्देशक उन्हें मुंहमांगी कीमत पर साइन करते थे. किसी भी फिल्म में इस जोड़ी का होना फिल्म की सफलता की गारंटी मानी जाती थी. शंकर जयकिशन के बीच बहुत खूबसूरत केमिस्ट्री थी. लेकिन एक दिन दोनों के बीच मनमुटाव हो ही गया. दरअसल शंकर जयकिशन के बीच इस बात पर सहमति बनी थी कि वह किसी तीसरे को यह नहीं बताएंगे कि फलां धुन किसने बनाई है. लेकिन एक दिन जयकिशन ने फिल्मफेयर पत्रिका के एक इंटरव्यू में बता दिया कि फिल्म 'संगम' का 'ये मेरा प्रेम पत्र.. की धुन उन्होंने बनाई है. जब शंकरजी ने फिल्मफेयर में वह लेख पढ़ा तो जयकिशन पर भड़क उठे. इस मुद्दे पर दोनों के बीच काफी बहसबाजी हुई. ऐसा लगा कि अब यह जोड़ी साथ काम नहीं कर सकेगी. हफ्तों तक दोनों के बीच बात नहीं हुई. अततः मो. रफी ने अथक प्रयास कर दोनों के बीच गहराती खाई को खत्म किया.