पुण्यतिथि विशेष: मधुबाला-दिलीप कुमार की अधूरी प्रेम कहानी!

इससे विचित्र संयोग या त्रासदी क्या हो सकती है कि जिस मधुबाला (Madhubala) का जन्म वैलेनटाइन डे के दिन हुआ, वही मधुबाला ताउम्र अपने ‘प्रेम’ को लेकर संघर्षरत रहीं और किसी बुरे सपने की तरह उनकी प्रेम-कहानी बीच में ही दम तोड़ गयी.

मधुबाला और दिलीप कुमार की अधूरी प्रेम कहानी (Photo Credits: Twitter)

इससे विचित्र संयोग या त्रासदी क्या हो सकती है कि जिस मधुबाला (Madhubala) का जन्म वैलेनटाइन डे के दिन हुआ, वही मधुबाला ताउम्र अपने ‘प्रेम’ को लेकर संघर्षरत रहीं और किसी बुरे सपने की तरह उनकी प्रेम-कहानी बीच में ही दम तोड़ गयी. एक बड़े परिवार की जिम्मेदारियां अपने नाजुक कंधों पर लेकर चलने वाली मधुबाला ने जब ग्लैमर की दुनिया में कदम रखा, उनके दिलो-दिमाग में बहुत सारे सपने तैर रहे थे, करियर.. प्यार.. विवाह.. और फिर एक खुशहाल जिंदगी... यहां करियर को अपवाद मान लें तो हिंदी सिनेमा की इस सबसे खूबसूरत नायिका को न प्यार मिला, न मनमाफिक जीवनसाथी और ना ही एक खुशहाल जिंदगी... मधुबाला ने दिलीप कुमार (Dilip Kumar) से बेपनाह मोहब्बत किया, लेकिन इस मोहब्बत को शादी का मंडप हासिल नहीं हो सका. उनकी प्रेम कहानी का क्लाईमेक्स इतना त्रासदीपूर्ण होगा, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. आखिर दिलीप कुमार और मधुबाला की इस अधूरी प्रेम कहानी का पूरा सच क्या था....

प्रारंभिक जीवन

मधुबाला का परिवार मूलतः पाकिस्तान के खैबर पखतुनख्वा से था. पिता अताउल्लाह खान (माता आयशा बेगम) पेशावर में एक तंबाकू की फैक्टरी में काम करते थे. लेकिन किसी वजह से नौकरी छूटने के बाद अताउल्लाह खान दिल्ली आ गये. यहीं पर 14 फरवरी 1933 के दिन अताउल्ला खान की पांचवी संतान के रूप में मुमताज जहां देहलवी ने जन्म लिया. कहा जाता है कि एक ज्योतिषि ने जब मुमताज को देखा तो भविष्यवाणी करते हुए अताउल्ला खान से कहा कि भविष्य में यह लड़की खूब नाम दाम कमायेगी, लेकिन इसके जीवन में कभी भी सुख नसीब नहीं होगा. अताउल्ला खान मुमताज के करियर को संवारने के इरादे से सपरिवार बंबई (मुंबई) शिफ्ट हो गये. उन्होंने मुमताज को लेकर मुंबई के एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो का चक्कर काटना शुरु किया.

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सफर मुमताज से मधुबाला तक का

थोड़ी कोशिशों के बाद 1942 में मुमताज को बाम्बे टाकीज की एक फिल्म ‘बसंत’ में एक बाल कलाकार की भूमिका मिली. बाम्बे टाकीज की देविका रानी मुमताज के अभिनय से बहुत प्रभावित हुईं. उन्होंने मुमताज का नाम मधुबाला रख दिया. बतौर नायिका केदार शर्मा ने मधुबाला को राज कपूर के अपोजिट फिल्म ‘नील कमल’ (1947) में मौका दिया. यह फिल्म सुपर हिट हुई. साथ ही मधुबाला को ‘वीनस ऑफ स्क्रीन’ की भी उपाधि मिली. 2 साल बाद उनकी रिलीज फिल्म महल सुपर हिट साबित हुई.  इसके बाद मधुबाला ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. लेकिन 50 के दशक में जब उनकी कई फिल्में एक के बाद एक फ्लॉप हुईं तो कहा जाने लगा कि वे खूबसूरत तो हैं मगर टैलेंटेड नहीं. लेकिन इंडस्ट्री के कुछ निर्माताओं ने दबी जुबान में कहा कि मधुबाला प्रतिभाशाली तो हैं, मगर उनके पिता पैसे कमाने के चक्कर में हर ऐरी-गैरी फिल्म स्वीकार कर लेते हैं. तब मधुबाला ने अपनी फिल्मों का चुनाव स्वयं करना शुरु किया. 1958 में उनकी चार फिल्में‘फ़ागुन’, ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘काला पानी’ और ‘चलती का नाम गाड़ी’ रिलीज हुई और सभी सुपरहिट हुईं.

पहली नजर में दिल दे बैठीं ‘ट्रेजिडी किंग’ को

कहते हैं कि 1944 में फिल्म ‘ज्वार भाटा’ के सेट पर पहली बार दिलीप कुमार को देखते ही मधुबाला दिल दे बैठी थीं. इस समय वे करीब 11 वर्ष की थीं. यह प्यार धीरे-धीरे कली से फूल बनता रहा लेकिन दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका उन्हें 7 साल बाद फिल्म ‘तराना’ (1951) में मिला. ‘तराना’ की शूटिंग के दरम्यान दोनों के बीच उऩका प्यार खूब पल्ल्वित हुआ. ‘तराना’ के पश्चात उऩ्होंने ‘संगदिल’, ‘अमर’एवं ‘मुगल-ए-आजम’ में साथ में काम किया.

यूं किया प्रेम का इजहार स्वयं मधुबाला ने

दोनों के प्रेम प्रसंगों की खबर ज्यादा दिनों तक छुपी नहीं रह सकी. दिलीप कुमार के दिलो-दिमाग में मधुबाला इस कदर छा गयी थीं कि मधुबाला जहां भी शूटिंग करतीं, वे पहुंच जाते. दिलीप कुमार मधुबाला से प्यार तो करते थे मगर इजहार करने का साहस नहीं जुटा पाते थे. तब एक दिन मधुबाला ने एक खत के साथ गुलाब का फूल दिलीप कुमार के मेकअप रूम में भेजा. खत का मजमून था, अगर आप भी मुझसे प्यार करते हैं तो इस गुलाब को स्वीकार कीजिये. दिलीप कुमार ने बिना समय गवाएं स्वीकारा कि हां, वे भी उनसे उतनी ही शिद्दत से प्यार करते हैं.

मोहब्बत की राह में रुसवाइयां

कुछ प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि दोनों के प्यार की राह में सबसे बड़े दुश्मन अताउल्ला खान और उनके करीबी रिश्तेदार थे. वे नहीं चाहते थे कि सोने के अंडे देने वाली मुर्गी शादी करके उनसे दूर हो जाए. हालांकि इस संदर्भ में कोई प्रमाण नहीं है. लेकिन यह सच है कि अताउल्ला खान मधुबाला के साथ उनकी हर फिल्म के सेट पर साये की तरह मंडराते रहते थे. उनके हर फैसले वही लेते थे. दिलीप कुमार को अताउल्ला खान का यह हस्तक्षेप पसंद नहीं था. दिलीप कुमार ने मधुबाला के सामने शर्त रखी कि वह मधुबाला से तभी विवाह करेंगे जब वे अपने पिता का साथ और अभिनय को हमेशा के लिए छोड़ देंगी. मधुबाला को यह बात पसंद नहीं आई. क्योंकि उनके पिता ने उनके लिए बहुत संघर्ष किया था.

यूं रची स्क्रिप्ट ट्रेजिडी किंग और ट्रेजिडी क्वीन के अलगाव की

इससे पहले कि मधुबाला दिलीप कुमार को अपने फैसले से अवगत करातीं, उसी समय एक ऐसी बात हो गयी जो अताउल्ला खान के लिए बिल्ली का छींका टूटने जैसी कहावत साबित हो गयी. वस्तुतः उन्हीं दिनों 1956 में बीआर चोपड़ा ने दिलीप कुमार और मधुबाला को अपनी फिल्म ‘नया दौर’ के लिए साइन किया था. वे इस फिल्म की 40 दिन की शूटिंग भोपाल में करना चाहते थे, लेकिन अताउल्ला खान ने आउटडोर शूटिंग के लिए स्पष्ट मना कर दिया. इस पर बीआर चोपड़ा ने मधुबाला के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. कहते हैं कि कोर्ट ने जब इस विषय पर दिलीप कुमार का मत जानना चाहा, तो उन्होंने बीआर चोपड़ा का पक्ष लिया. बस यहीं से मधुबाला दिलीप कुमार के बीच तलवार खिंच गयी. यद्यपि अदालत में दिलीप कुमार ने एक प्रश्न के जवाब में स्वीकारा था कि वे आज भी मधुबाला से बेपनाह मोहब्बत करते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मधुबाला ने दिलीप कुमार से सारे संबंध तोड़ लिये. इस तरह सालों से चली आ रही प्रेम कहानी अधूरी ही रह गयी.

दिलीप कुमार से संबंध टूटने के बाद मधुबाला ने किशोर कुमार से विवाह तो रचाया, लेकिन तब तक वे मानसिक और शारीरिक रूप से इस कदर टूट चुकी थीं कि उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि ‘वीनस ऑफस्क्रीन’ कही जानेवाली मधुबाला ने जीवन के अंतिम नौ साल बिस्तर पर गुजारने के पश्चात 23 फरवरी 1969 को अंतिम सांस ली.

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