Liz Truss Resigns as UK PM: ट्रस के चले जाने के साथ, यूके को एक और प्रधान मंत्री मिलने वाला है

ब्रिटिश राजनीति वर्तमान में एक अजीब समय से गुजर रही है. डॉ हू के शुरुआती एपिसोड के कुछ बुरे विशेष प्रभावों की तरह, लेकिन इस बार यह सब दुखद रूप से सच है. इस बार हालात चार तरह के समय के पहियों पर घूम रहे हैं पहला यह है कि बहुत कुछ होता है लेकिन कुछ बदलता नहीं है.

Liz Truss (Photo: Social Media)

मेलबर्न, 21 अक्टूबर : ब्रिटिश राजनीति वर्तमान में एक अजीब समय से गुजर रही है. डॉ हू के शुरुआती एपिसोड के कुछ बुरे विशेष प्रभावों की तरह, लेकिन इस बार यह सब दुखद रूप से सच है. इस बार हालात चार तरह के समय के पहियों पर घूम रहे हैं पहला यह है कि बहुत कुछ होता है लेकिन कुछ बदलता नहीं है. एक और प्रधान मंत्री चला गया, लेकिन वही पार्टी, विचारों से विहीन, अभी भी सत्ता में है, अपने हित के लिए सत्ता से चिपकी हुई. यह कंजर्वेटिव सांसदों के विश्वास में पतन का संकेत है क्योंकि उन्हें डर है कि संसद में मौजूदा 71 सीटों के लगभग अजेय बहुमत से निकलकर वह चुनावी गुमनामी में जा सकते हैं. होना तो यह चाहिए था कि इस अराजकता से निपटने के लिए, जो विपक्ष की एक शरारती चाल थी, सरकार के पास कोई मजबूत योजना होती. इसके बजाय, इसने प्रधान मंत्री के इस्तीफे के रूप में जवाब दिया. यह ऐसा है जैसे 2019 की चुनावी जीत को भुलाकर हम उस समय में वापस चले गए हैं जब कंजर्वेटिवों के पास मामूली बहुमत था.

दूसरा तथ्य यह है कि पार्टी में जिस तरह का घटनाक्रम है, वह पूरी पार्टी में सोच की कमी से संबंधित है. दरअसल बोरिस जॉनसन डाउनिंग स्ट्रीट पर लौटने के पसंदीदा दावेदारों में से एक हैं, यह बताता है कि पार्टी के जमीनी स्तर के सदस्य देश के बाकी हिस्सों के साथ कैसे संपर्क से बाहर हैं. तीसरा तथ्य यह है कि टोरी अब 1980 के दशक के ‘‘बावले वाम’’ की तरह लगते हैं. ब्याज दरों जैसी सुस्त लेकिन महत्वपूर्ण चीजों को सक्षम रूप से प्रबंधित करने से प्रेरित पार्टी होने के बजाय, यह एक वैचारिक लड़ाई मशीन में बदल गई है. चौथा और आखिरी तथ्य हमें एक ऐसे युग में लौटाता है, जब कंजर्वेटिव पार्टी जैसी कोई चीज थी. 19वीं शताब्दी के दौरान, जमींदार वर्गों और निर्माताओं के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों का एक समूह अंततः एक ऐसे संगठन में बदल गया जिसे हम एक राजनीतिक दल के रूप में देखने लगे. समय अब पीछे की ओर जा रहा है और सदियों की इस धीमी प्रक्रिया को बदल रहा है. यह भी पढ़ें : PAK General Bajwa: पाकिस्तान के आर्मी चीफ बाजवा 5 हफ्ते बाद होंगे रिटायर, नहीं बढ़ेगा कार्यकाल

ब्रिटिश राजनीति की अधिकांश समस्या वास्तव में कंजर्वेटिव पार्टी है. लेकिन यह पूछना सही होगा है कि क्या ऐसी कोई एक पार्टी बाकी बची है? कंजर्वेटिव पार्टी गुटों और भारी व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता से त्रस्त है. यह तमाम हालात नए नेता को चुनना असंभव बना देंगे. जॉनसन संभव है. वह एक महान प्रचारक हैं, लेकिन वह 2019 में ‘‘पार्टीगेट’’ से पहले था. ऋषि सनक ‘‘मैंने तुमसे कहा था’’ कहकर अपना दावा पेश कर सकते है, लेकिन वह एक बहु-करोड़पति है और उनका प्रधानमंत्री बनना जीवन यापन की राजनीति के वर्तमान संदर्भ में अच्छा नहीं होगा. पेनी मोरडॉंट ने ट्रस कार्यकाल के दौरान अपना दामन पाक-साफ रखा है, लेकिन उनमें अनुभव की कमी है. सुएला ब्रेवरमैन सबसे जोरदार वैचारिक योद्धा हैं और सांसदों या ब्रिटिश जनता के बीच लोकप्रिय नहीं हैं, इसलिए संभवतः जीतेंगे.

अंत में, समय के साथ-साथ चलते हुए, यूनाइटेड किंगडम ‘‘ब्रिटली’’ में बदल गया है: ब्रिटेन और इटली का एक डॉ मोरो जैसा हाइब्रिड जहां बांड बाजार प्रभारी हैं, विकास सुस्त है, और केवल एक पार्टी सरकार में है, हालांकि नेता लगातार बदलते प्रतीत होते हैं. यह सब विपक्षी लेबर पार्टी के लिए एक खुले लक्ष्य की तरह लग सकता है, जिसने 2019 में चुनाव हारने के बाद आगे के दशकों के लिए खुद को स्थायी विपक्ष मान लिया था. यह कुछ ऐसा है जिस पर अफसोस किया जा सकता है. अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के बाद, कंजरवेटिव पार्टी दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे सफल पार्टी है. दोनों पार्टियां ऐसे गुटों में बंट चुकी हैं, जो अपनी लड़ाई को अस्तित्वाद की वैचारिक लड़ाई मान रहे हैं. इसका खामियाजा दोनों देशों की जनता को भुगतना पड़ रहा है.

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