देश की खबरें | व्यक्ति जब किसी दूसरे पर कुछ करने के लिए दबाव बनाता है तो उकसावे की पुष्टि होती है: न्यायालय

नयी दिल्ली, 14 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उकसावा उस स्थिति में साबित होता है जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे पर कुछ करने के लिए दबाव बनाता है और ऐसे हालात बन जाते हैं कि दूसरे व्यक्ति के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता।

न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले को दरकिनार करते हुए उक्त टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एक व्यक्ति को सुनाए गए तीन साल सश्रम कारावास की सजा को बरकरार रखा था।

उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली वेल्लादुरई की अर्जी पर सुनवाई कर रहा था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पच्चीस साल से विवाहित आरोपी और उसकी पत्नी के बीच झगड़ा हुआ और दोनों ने कीटनाशक पी लिया। घटना में पत्नी की मौत हो गयी जबकि पति को बचा लिया गया। दंपत्ति के तीन बच्चे भी हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘किसी व्यक्ति द्वारा उकसावा वह कहलाता है जब एक व्यक्ति किसी दूसरे पर कोई काम करने के लिए दबाव बनाए। उकसावा तब कहा जाता है जब आरोपी ने अपने कामकाज, तरीकों और गतिविधियों से ऐसी स्थिति पैदा कर दी होती, जहां महिला (मृतका) के पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा होता।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मुकदमे में अपील करने वाले के खिलाफ आरोप है कि घटना के दिन झगड़ा हुआ था। इसके अलावा और कोई दस्तावेज या रिकॉर्ड नहीं है जो उकसावे को साबित कर सके।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)