हैटफील्ड (ब्रिटेन), 9 जुलाई : पिछले कुछ वर्षों में वनस्पति आधारित आहार की लोकप्रियता बढ़ गयी है. नतीजन सॉसेज और बर्गर (Burger) जैसे मांस समेत पसंदीदा खाद्य पदार्थ के वनस्पति आधारित विकल्पों की मांग बढ़ी है. मांस के वनस्पति आधारित विकल्प देने वाले उद्योग में अगले कुछ वर्षों में काफी वृद्धि देखने को मिल सकती है लेकिन अब भी काफी कुछ है जो हम इन खाद्य उत्पादों के बारे में नहीं जानते जैसे कि ये स्वास्थ्य के लिए ठीक हैं या नहीं. बहरहाल इनमें से कई उत्पाद मुख्यत: वनस्पति से बने होने का दावा करते हैं लेकिन अन्य अति-प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों से अलग नहीं हैं. इनमें अकसर प्रोटीन आइसोलेट, इमल्सीफायर्स, खाद्य पदार्थों को मिश्रित करने वाले पदार्थ और खाद्य पदार्थ में बदलाव करने या उसे खराब होने से बचाने वाला पदार्थ मौजूद होते हैं तथा ये औद्योगिक प्रसंस्कृत तरीकों से बनाया जाता है इसलिए इन्हें अति-प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद माना जा सकता है.
अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ का संबंध मोटापा, टाइप 2 मधुमेह, कैंसर तथा अन्य बीमारियों से होने के कई साक्ष्य हैं. यह संभवत: खराब पोषणात्मक सामग्री के मिश्रण, सिंथेटिक पदार्थ और फाइबर की कमी के कारण हो सकता है. इस तरह का भोजन भी दीर्घकालीन बीमारियों से होने वाली मौत का सबसे प्रमुख कारण है क्योंकि यह तैयार मिलते हैं, उन्हें जरूरत से ज्यादा खाया जा सकता है, इनमें पोषक तत्वों की कमी होती है और अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया तथा कनाडा जैसे देशों में ये करीब आधी या उससे अधिक कैलोरी मुहैया कराते हैं. सोया प्रोटीन वनस्पति आधारित मांस विकल्पों में प्रोटीन का मुख्य स्रोत है लेकिन इनमें सूअर के मांस से बने उत्पादों के मुकाबले नाइट्रेट का स्तर अधिक होता है. इससे मलाशय का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. यह भी पढ़ें : COVID-19 Vaccine Update: 52 अफ्रीकी देशों को कोविड वैक्स की 7 करोड़ से अधिक खुराकें मिली
भोजन में नाइट्रेट की मात्रा अधिक होने से किडनी की बीमारी, टाइप 2 मधुमेह और श्वसन संबंधी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है. प्रसंस्कृत मांस में रंग और स्वाद बढ़ाने वाला हेमे भी एक सामग्री है. मांसाहार उत्पादों में हेमे नाइट्रेट के साथ मिलकर अधिक हानिकारक हो सकता है. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वनस्पति आधारित उत्पादों पर भी ऐसा ही असर होगा लेकिन हेमे और नाइट्रेट की मौजूदगी चिंता का कारण है. वनस्पति आधारित कई बर्गरों में स्टेबेलाइजर और इमल्सीफायर मिथाइलसेलुलोज होते हैं जो उन्हें मांस जैसे रंग देते हैं. मिथाइलसेलुलोज को चूहों में सूजन बढ़ाते देखा गया है जिससे मलाशय के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है हालांकि इसके मानव पर अध्ययन बहुत कम है. अगर आप वनस्पति आधारित अति-प्रसंस्कृत मांसाहार खाने के बारे में चिंतित हैं तो आप कुछ और चीजें भी कर सकते हैं.
अगर आप मांस खाते हैं लेकिन जो भोजन आप खाते हैं उसका पर्यावरणीय असर कम करना चाहते हैं तो और अधिक सतत मांस खाना आपकी मदद कर सकता है. अगर आप पूरी तरह से शाकाहारी हैं जो दाल, फलियों और चने के साथ भोजन पकाने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि आप एक उच्च प्रोटीन वाला भोजन लें जिसका पर्यावरण पर असर कम हो. जाहिर तौर पर बाजार में वनस्पति आधारित मांस के सभी विकल्प आपके लिए खराब नहीं हैं. वनस्पति आधारित फूड बाजार अभी उभर रहा है जिसका मतलब है कि कई नए उत्पाद अभी विकसित किए जा रहे हैं और अनुसंधान चल रहा है. लेकिन अगर आप इनमें से कोई उत्पाद खरीदने की सोच रहे हैं तो पहले सामग्री की सूची की जांच करिए.