लखनऊ, 1 मार्च : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सात में से पांच चरणों के मतदान के दौरान डाले गए वोटों का प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के लगभग बराबर ही है. ऐसे में राजनीतिक पार्टियां और प्रेक्षक इस पसोपेश में हैं कि इसे सत्ता के पक्ष में मतदान माना जाए या सत्ता विरोधी लहर का असर. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हुए मतदान के प्रतिशत पर भी नजर डालें तो कोई खास फर्क नहीं दिखाई देता. जहां मतदान का प्रतिशत नहीं बढ़ने के पीछे कोविड-19 महामारी को एक प्रमुख वजह के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मतदाताओं ने चुनाव में अब तक सभी पार्टियों को आजमा लिया है लिहाजा उनमें अब मतदान के प्रति वह जोशोखरोश नहीं रहा. प्रदेश में सात में से पांच चरणों का विधानसभा चुनाव हो चुका है. बाकी दो चरणों का मतदान आगामी तीन और सात मार्च को होगा.
पहले चरण के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 विधानसभा सीटों पर पिछली 10 फरवरी को औसतन 62.43% मतदान हुआ था जो वर्ष 2017 के 63.47% के मुकाबले एक फीसद से ज्यादा कम था. वहीं, 14 फरवरी को हुए दूसरे चरण के मतदान में 64.42 फीसद मतदान हुआ और यह भी पिछली बार के मुकाबले 1.11 प्रतिशत कम रहा. तीसरे चरण में 62.28% मतदान हुआ जो पिछली बार के मुकाबले 0.07 प्रतिशत ज्यादा था. चौथे चरण में 23 फरवरी को राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश की 59 सीटों पर औसतन करीब 61.52% मतदान हुआ जो वर्ष 2017 में हुए 62.55 फीसद मतदान से 1.03% कम रहा. पांचवें चरण में अयोध्या, प्रयागराज, अमेठी और रायबरेली समेत विभिन्न जिलों की 61 विधानसभा सीटों पर औसतन 57.32% मतदान हुआ. यह भी वर्ष 2017 के मुकाबले लगभग एक फीसद कम रहा. यह भी पढ़ें : तनाव और अवसाद का कारण बन सकती हैं प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां: रिपोर्ट
प्रदेश विधानसभा के छठे चरण का चुनाव आगामी तीन मार्च को होगा. इस चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उम्मीदवारी वाली गोरखपुर नगर की हाई प्रोफाइल सीट के लिए भी वोट पड़ेंगे. वर्ष 2017 में इस चरण की सीटों पर 56.52% मतदान हुआ था. सातवें चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी की सीटों समेत कुल 54 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा. वर्ष 2017 में इस चरण की सीटों पर 59.56% मतदान हुआ था. मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी नहीं होने के बारे में देश के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने 'पीटीआई-' को बताया, "मुझे ताज्जुब है कि आखिर इस बार मत प्रतिशत में बढ़ोतरी क्यों नहीं हुई. हो सकता है कि इस बार मतदाताओं को जागरूक करने के प्रयासों में कुछ कमी रह गई हो.