नयी दिल्ली, 12 दिसंबर सत्तारूढ़ भाजपा ने बृहस्पतिवार को ‘एक देश, एक चुनाव’ के अपने प्रमुख मुद्दे को लागू करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अवधारणा के क्रियान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
मंत्रिमंडल ने दो मसौदा कानूनों को मंजूरी दी है, जिसमें से एक संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से संबंधित है, जबकि दूसरा विधेयक विधानसभाओं वाले तीन केंद्र शासित प्रदेशों के एक साथ चुनाव से जुड़ा है। संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत, जबकि दूसरे विधेयक के लिए सदन में सामान्य बहुमत की आवश्यकता होगी।
हालांकि, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली एक उच्चस्तरीय समिति ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ-साथ चरणबद्ध तरीके से नगर निकाय और पंचायत चुनाव कराने का भी प्रस्ताव दिया था, लेकिन मंत्रिमंडल ने ‘‘फिलहाल’’ स्थानीय निकाय चुनावों के मुद्दे से दूरी रखने का निर्णय किया है।
इस संबंध में एक सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री ने विकास पहलों तथा समग्र विकास को और बढ़ावा देने के लिए एक साथ चुनाव कराए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
सूत्र ने कहा कि दिसंबर 2016 में पहली बार इस अवधारणा के लिए जोरदार वकालत करने के बाद से वह देश में एक साथ चुनाव कराने की जरूरत के बारे में अकसर बात करते रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में इस विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल तेलुगू देशम पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) जैसे भाजपा के सहयोगी दल इस अवधारणा का समर्थन कर रहे हैं।
लोजपा नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने संवाददाताओं से कहा कि एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है, जिसे मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि यह देश के विकास के हित में है।
उन्होंने कहा कि बार-बार होने वाला मतदान विकास कार्यों में बाधक है।
केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अश्विनी वैष्णव ने एक मीडिया कार्यक्रम में कहा कि यह एक ‘‘बहुत सकारात्मक विचार’’ है और देश के लिए बहुत अच्छा है। हालाँकि, उन्होंने विधेयक को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने का कोई जिक्र नहीं किया।
सूत्रों ने कहा कि फिलहाल मंत्रिमंडल ने केवल लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए मसौदा कानून को अपनी मंजूरी दी है।
कोविन्द समिति द्वारा प्रस्तावित संवैधानिक विधेयक का उद्देश्य एक नया अनुच्छेद 324ए जोड़कर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ-साथ नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव भी एक साथ कराने का प्रावधान करने का था।
नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने के लिए 50 प्रतिशत राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन की आवश्यकता होगी, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फिलहाल स्थानीय निकाय चुनावों के मुद्दे को बाहर रखा है।
सरकार विधेयकों पर व्यापक विचार-विमर्श करने की इच्छुक है जिन्हें संसदीय समिति को भेजे जाने की संभावना है।
सूत्रों ने कहा कि सरकार समिति के माध्यम से विभिन्न राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों से भी परामर्श करने की इच्छुक है।
उन्होंने कहा कि सरकार अगले सप्ताह की शुरुआत में लोकसभा में विधेयक पेश कर सकती है और संविधान संशोधन के लिए मसौदा कानून को ‘‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक’’ नाम दिया जा सकता है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान विधेयक पर बात की, जो सूचीबद्ध एजेंडे का हिस्सा नहीं था।
चूंकि निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के लिए एक ही मतदाता सूची का उपयोग किया जाता है, इसलिए प्रस्तावित विधेयक में साझा मतदाता सूची का जिक्र नहीं है।
भाजपा के सहयोगी जदयू ने स्थानीय निकाय चुनावों को एक साथ कराए जाने वाले चुनावों में शामिल नहीं करने की मांग की थी।
सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ योजना पर आगे बढ़ते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव चरणबद्ध तरीके से एक साथ कराने के वास्ते उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को सितंबर में स्वीकार कर लिया था।
आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मार्च में सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में समिति ने ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रणाली को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की थी।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दल एक साथ चुनाव कराने पर जोर दे रहे हैं, वहीं कई विपक्षी दलों ने इस विचार का विरोध किया है।
सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से दीर्घकालिक रूप से खर्च में कमी आएगी और देश के विभिन्न हिस्से विभिन्न चुनावों के कारण पूरे साल आदर्श आचार संहिता के दायरे में नहीं रहेंगे।
देश में 1951 और 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे। एक साथ चुनाव की अवधारणा 1983 के बाद से कई रिपोर्ट और अध्ययनों में सामने आई है, जिसका अनिवार्य रूप से एक साथ चुनाव कराने की पिछली प्रथा की वापसी है।
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