देश की खबरें | दुर्भाग्यपूर्ण है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को एक-दूसरे पर विश्वास नहीं है: अदालत

मुंबई, नौ मार्च बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तथा राज्यपाल बी एस कोश्यारी के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेदों का उल्लेख करते हुए बुधवार को कहा कि यह ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ है कि राज्य के दो सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारियों को ‘‘एक-दूसरे पर विश्वास नहीं है।’’

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की एक पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के लिए एक साथ बैठना और मतभेदों को दूर करना उचित होगा।

अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह मौखिक टिप्पणी की। ये याचिकाएं अधिवक्ता महेश जेठमलानी और सुभाष झा के माध्यम से दाखिल कराई गईं हैं ।

अदालत ने काफी देर जिरह के बाद याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दी गई कानून के समक्ष नागरिकों के समानता की गारंटी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है।

इन याचिकाओं में से एक भारतीय जनता पार्टी के विधायक गिरीश महाजन ने दाखिल की थी। उनके वकील जेठमलानी ने अदालत से कहा कि वर्तमान प्रक्रिया, जिसे दिसंबर 2021 में एक संशोधन के माध्यम से लाया गया है, उसके जरिए अध्यक्ष के चयन के लिए राज्यपाल को सुझाव देने का अधिकार केवल मुख्यमंत्री को प्रदान किया गया है। यह असंवैधानिक है और राज्यपाल को केवल मुख्यमंत्री ही नहीं, बल्कि मंत्रिपरिषद द्वारा सुझाव दिया जाना चाहिए।

जेठमलानी ने तर्क दिया कि इस मुद्दे में हस्तक्षेप न करने से अदालत जनहित की रक्षा करने में विफल होगी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह साबित करने के लिए अधिक तर्क देने होंगे कि विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव से आम जनता कैसे प्रभावित हो रही है।

अदालत ने कहा, ‘‘ जनता को इस बात में सबसे कम दिलचस्पी है कि विधानसभा का अध्यक्ष कौन होगा। जाइए और जनता से पूछिए कि लोकसभा का अध्यक्ष कौन है? इस अदालत में मौजूद कितने लोग इसका जवाब जानते हैं?’’

पीठ ने कहा ‘‘ आपको यह साबित करना होगा कि यह मुद्दा जनहित से जुड़ा है। अध्यक्ष केवल विधायिका का एक सदस्य होता है। इसमें जनहित से जुड़ा क्या है?’’

महाराष्ट्र विधानसभा में अध्यक्ष का पद पिछले साल नाना पटोले के कांग्रेस की राज्य इकाई का अध्यक्ष बनने के बाद से खाली पड़ा है।

अदालत ने राज्य में विधान परिषद के 12 सदस्यों के नामांकन (राज्यपाल के आरक्षण के तहत) को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच हालिया गतिरोध का भी उल्लेख किया।

यह मुद्दा पिछले साल एक जनहित याचिका के जरिए अदालत के समक्ष उठाया गया था और अगस्त 2021 में मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ ने माना था कि राज्यपाल कोश्यारी का कर्तव्य था कि वह उचित समय में नामांकन पर अपने निर्णय की घोषणा करें।

अदालत ने तब कहा था कि राज्यपाल को मुख्यमंत्री से बात करनी चाहिए।

उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उनका आदेश करीब ‘‘ आठ महीने पहले’’ पारित हुआ था, उसके बावजूद अभी तक राज्यपाल ने नामंकन पर कोई फैसला नहीं किया है।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ तब यह तर्क दिया गया था कि लोकतंत्र ढह जाएगा, आदि।’’

पीठ ने कहा, ‘‘राज्यपाल ने अभी तक 12 पार्षद को नामित नहीं किया है, तो क्या लोकतंत्र ढह गया....हमारा लोकतंत्र इतना कमजोर नहीं है।’’

पीठ ने कहा कि अपीलीय अदालत के लिए सभी विधायी मामलों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है।

उसने कहा, ‘‘ हमें राज्यपाल के विवेक पर थोड़ा विश्वास रखना चाहिए। मुख्यमंत्री राज्य का मुखिया होता है। हम यहां दोनों में से किसी को भी गलत नहीं कह सकते। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य के दो सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारियों को एक-दूसरे पर विश्वास नहीं है। आप दोनों एकसाथ बैठक इस मुद्दे को हल करें।’’

इसके बाद, अदालत ने याचिकाओं को खारिज करते हुए यह भी पूछा कि इस तरह के संशोधन ने अन्य विधायकों को अध्यक्ष के चुनाव पर अपने सुझाव देने से कहां रोक दिया?

अदालत ने यह भी कहा कि सुनवाई की शुरुआत में महाजन द्वारा जमा किए गए 10 लाख रुपये और नागरिक जनक व्यास द्वारा जमा किए गए दो लाख रुपये यानी कुल 12 लाख रुपये की राशि को जब्त ही रखा जाए।

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