देश की खबरें | एल्गार मामला स्थानांतरण : उच्च न्यायालय ने एनआईए, केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब तलब किया

मुंबई, 23 जून बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एल्गार परिषद मामला पुणे पुलिस से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने के फैसले के खिलाफ दायर दो आरोपियों की याचिका पर जांच एजेंसी, केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब तलब किया है।

न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार, एनआईए और राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 14 जुलाई तक के लिए टाल दी।

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यह याचिका वकील सुरेंद्र गडलिंग और कार्यकर्ता सुधीर धावले ने दायर किया है जो इस समय नवी मुंबई के तलोजा जेल में बंद हैं।

वकील एसबी तालेकर के जरिये पिछले हफ्ते दायर याचिका में गडलिंग और धावले ने आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र में भाजपा के सत्ता से बाहर होने के बाद केंद्र सरकार ने मामले को स्थानांतरित किया और यह फैसला राजनीति से प्रेरित है।

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याचिका में कहा गया, ‘‘ मामले का स्थानांतरण मनमाना, भेदभावपूर्ण, अन्यायपूर्ण और मामले के आरोपियों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला है।’’

याचिका के मुताबिक, ‘‘ भाजपा नीत राज्य सरकार ने हिंदुत्व एजेंसी के साथ दिसंबर 2017 और जनवरी 2018 में पुणे के कोरेगांव भीमा में हुई हिंसा की घटना का इस्तेमाल दलित विचारकों को निशाना बनाने के लिए किया और एल्गार परिषद की बैठक को माओवादी आंदोलन का हिस्से के रूप में दिखाया।’’

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि एनएआई अधिनियम-2008 जांच पूरी होने और मामले की सुनवाई शुरू होने पर मामले को केंद्रीय एजेंसी को सौंपने की अनुमति नहीं देता खासतौर पर तब जब स्थानांतरण के लिए कोई विशेष परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई हो।

उल्लेखनीय है कि इस मामले में कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादियों से संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इस साल 24 जनवरी को मामले को पुणे पुलिस से लेकर एनआईए को सौंप दिया गया था।

गडलिंग और धावले को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और इस समय वे नवी मुंबई के तलोजा जेल में बंद हैं।

इनके अलावा पुलिस ने रोना विल्सन, आनंद तेलतुमबडे, गौतम नवलखा, शोमा सेन, वर्नोन गोंजाल्विस, वरवरा राव, अरुण फरेरा और सुधा भारद्वाज को भी मामले में गिरफ्तार किया है।

अभियोजन पक्ष के मुताबिक 31 दिसंबर 2017 को आयोजित एल्गार परिषद के सम्मेलन में भड़काऊ भाषण दिए गए जिसकी वजह से अगले दिन कोरेगांव भीमा में जातीय हिंसा हुई।

पुलिस को शक है कि इस सम्मेलन को माओवादियों ने समर्थन हासिल था।

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