जरुरी जानकारी | इस साल डॉलर के मुकाबले तीन प्रतिशत गिरा रुपया, येन की तुलना हुआ 8.7 प्रतिशत मजबूत

मुंबई, 29 दिसंबर इस साल यानी 2024 में अमेरिकी मुद्रा डॉलर के मुकाबले रुपया तीन प्रतिशत कमजोर हुआ है। अर्थव्यवस्था की रफ्तार में सुस्ती तथा वैश्विक बाजारों में डॉलर के मजबूत होने से रुपया प्रभावित हुआ है। हालांकि, दुनिया की अन्य मुद्राओं से तुलना करें, तो भारतीय रुपये में उतार-चढ़ाव कहीं कम रहा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि आगामी वर्ष में रुपये की स्थिति कुछ बेहतर रहेगी।

वर्ष 2024 के अंत में रुपया अपने नए सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया। डॉलर में सुधार का असर उभरते बाजारों की मुद्राओं पर पड़ा है।

घटनाक्रमों से भरपूर 2024 में प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले रुपये की विनिमय दर पर प्रभाव जारी रहा। रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया में संकट के साथ लाल सागर के जरिये व्यापार में अड़चनों के अलावा दुनिया के कई देशों में चुनावों ने रुपये की धारणा को प्रभावित किया।

दुनिया के प्रमुख केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाए गए कदमों और अन्य वैश्विक कारकों ने न केवल रुपये-डॉलर के स्तर को प्रभावित किया है, बल्कि इसने सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मुद्राओं की विनिमय दरों पर भी असर डॉला।

वास्तव में, डॉलर के मुकाबले अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये में गिरावट कम रही है। यूरो और जापानी येन की तुलना में रुपया लाभ में रहा है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के तत्कालीन गवर्नर शक्तिकान्त दास ने दिसंबर की द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा था कि उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये में कम अस्थिरता रही है।

हालांकि, इसके बावजूद केंद्रीय बैंक रुपये-डॉलर की दर को स्थिर करने के लिए अधिक सक्रिय प्रयास कर रहा है। कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता तथा बढ़ते व्यापार घाटे की वजह से अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ी है।

आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के निदेशक - जिंस एवं मुद्रा नवीन माथुर ने कहा, ‘‘आरबीआई ने रुपये में तेज गिरावट को रोकने के लिए सक्रिय रूप से हस्तक्षेप किया है।’’

इसका पता विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़ों से भी चलता है। विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर के आखिर के 704.89 अरब अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्चस्तर से घटकर 20 दिसंबर, 2024 तक 644.39 अरब डॉलर रह गया है, जो इसका लगभग छह माह का निचला स्तर है।

विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं की बढ़त या गिरावट का प्रभाव भी शामिल रहता है।

भारत की बाहरी चुनौतियां तेज हो गई हैं, क्योंकि चीन की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि धीमी होकर 4.8 प्रतिशत रह गई है, जिससे भारतीय निर्यात की मांग कम हो गई है। इसके अलावा पश्चिम एशिया में तनाव और लाल सागर संकट के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान ने भारत सहित कई देशों के व्यापार संतुलन को प्रभावित किया है।

प्रमुख मुद्राओं की तुलना में रुपये की दैनिक विनिमय दर के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल एक जनवरी के 83.19 प्रति डॉलर के स्तर की तुलना में 27 दिसंबर तक रुपया तीन प्रतिशत टूटा है। 27 दिसंबर को रुपया 85.59 प्रति डॉलर के निचले स्तर पर था। पिछले दो माह में डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में दो रुपये की रिकॉर्ड गिरावट आई है।

गत 10 अक्टूबर को रुपये ने 84 प्रति डॉलर के महत्वपूर्ण स्तर को पार किया। 19 दिसंबर को यह और कमजोर होकर 85 प्रतिशत डॉलर के निचले स्तर पर आ गया। 27 दिसंबर को दिन में कारोबार के दौरान रुपया 85.80 प्रति डॉलर के अपने सर्वकालिक निचले स्तर तक आया। उस दिन रुपये ने दो साल में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट देखी।

हालांकि, डॉलर को छोड़कर अन्य वैश्विक मुद्राओं से तुलना की जाए, तो येन के मुकाबले रुपया 8.7 प्रतिशत मजबूत हुआ है। यह एक जनवरी के 58.99 रुपये प्रति 100 येन से बढ़कर 27 दिसंबर को 54.26 रुपये प्रति 100 येन हो गया।

इसी तरह, रुपये में यूरो के मुकाबले 27 अगस्त के बाद पांच प्रतिशत का सुधार हुआ है। 27 अगस्त को यह 93.75 रुपये प्रति यूरो था, जो 27 दिसंबर को 89.11 रुपये प्रति यूरो रह गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में बेहतर वृहद आर्थिक कारकों के कारण डॉलर में अभूतपूर्व तेजी आई है। यही वजह है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कटौती को कम करने का संकेत दिया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आयात पर शुल्क बढ़ाने की मंशा जताई है। इस वजह से भी दुनियाभर के मुद्रा कारोबारियों के बीच डॉलर की मांग बढ़ी है।

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