नयी दिल्ली, 22 सितंबर : देश भर में पुलिस जांच के ‘निराशाजनक’ मानकों से निराश उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अब समय आ गया है कि जांचकर्ताओं के लिए अनिवार्य प्रक्रिया के साथ-साथ एक ‘सुसंगत और भरोसेमंद जांच संहिता’ तैयार की जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दोषी तकनीकी आधार पर नहीं छूट सके. शीर्ष न्यायालय ने एक फैसले में ये टिप्पणियां कीं, जिसमें उसने तीन लोगों की दोषसिद्धि को रद्द कर दिया. इनमें मध्य प्रदेश में 15 वर्षीय किशोर के अपहरण व हत्या के मामले में मौत की सजा का सामना करने वाले दो दोषी भी शामिल हैं.
न्यायालय ने कहा, ‘‘परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर बने मामले में तार्किक संदेह से परे सबूत के उच्चतर सिद्धांत को कायम रखना होगा और प्राथमिकता देनी होगी। शायद, अब समय आ गया है कि पुलिस के लिए, उसकी जांच के दौरान, एक अनिवार्य और विस्तृत प्रक्रिया के साथ एक सुसंगत और भरोसेमंद जांच संहिता तैयार की जाए, ताकि दोषी तकनीकी आधार पर छूट नहीं छूट सकें.’’ पीठ ने कहा, ‘‘हमारे देश में ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है. हमें और कुछ नहीं कहने की जरूरत है.’’ न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधाारित मामले में तीनों दोषियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन को घटनाओं की एक कड़ी बनानी चाहिए, जो बगैर त्रुटि के अभियुक्त के अपराध की ओर इशारा करती हो, किसी और की ओर नहीं.
अजीत पाल (15) नामक किशोर की जुलाई 2013 के अंतिम हफ्ते में उसके पड़ोसी ओम प्रकाश यादव और उसके भाई राजा यादव तथा बेटे राजेश ने बर्बरता से हत्या कर दी थी। किशोर का फिरौती के लिए अपहरण किया गया था. न्यायमूर्ति संजय कुमार ने 35 पन्नों का फैसला लिखते हुए कहा कि जब किसी मामले में केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर रहा जाता है तब कई कानूनी जरूरतों को पूरा करना होगा.
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