नयी दिल्ली, 21 सितंबर वरिष्ठ राजनयिक सैयद अकबरुद्दीन ने सोमवार को कहा कि पश्चिम एशिया की मौजूदा स्थिति "व्यवस्था को निर्धारित करने वाला पल" है और इस बात पर जोर दिया कि वहां मतभेद वाले बिंदु बदल गए हैं, जिसके न केवल क्षेत्र के लिए, बल्कि उससे परे भी "व्यापक परिणाम" होने वाले हैं।
एनडीटीवी विश्व सम्मेलन में आयोजित एक पैनल चर्चा में अकबरुद्दीन ने कहा कि यह "कुछ ऐसा है, जिस पर हम सभी को नजर रखने की जरूरत है", क्योंकि यह स्पष्ट रूप से वह समय है, "जिसमें दशकों में घटने वाली घटनाएं कुछ ही दिनों में घट जाती हैं।"
उन्होंने कहा, "पश्चिम एशिया की स्थिति मौजूदा व्यवस्था को निर्धारित करने वाला एक पल है। चूंकि, यह मुद्दा एक राज्येतर तत्व के राज्य तत्व पर हमला करने से उपजा है, इसलिए यह दिखाता है कि हमारे राज्य तत्वों पर ध्यान देने के दौरान राज्येतर तत्व मजबूत हुए हैं। राज्येतर तत्वों के पास राज्य तत्वों पर उस तरीके से हमला करने की क्षमता है, जिसकी हमने 21वीं सदी से पहले कभी कल्पना नहीं की थी।"
अकबरुद्दीन ने कहा, "यह इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह एक ऐसा मुद्दा है, जो 70 साल से अधिक समय से अनसुलझा हुआ है। और, आइए हम इसे स्वीकार करें।"
अकबरुद्दीन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में सेवाएं दी थीं। इससे पहले वह विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थे।
उन्होंने कहा, "आज अंतर यह है कि पश्चिम एशिया में मतभेद वाले बिंदु बदल गए हैं। हम सभी यह सोचते हुए बड़े हुए हैं कि अरबों और इजराइलियों के बीच फलस्तीन विवादित बिंदु था, लेकिन आज मतभेद वाला बिंदु बदल गया है, यह अब ईरान और इजराइल के बीच है। यह एक अलग विवादित बिंदु है, जिसके व्यापक परिणाम होने वाले हैं, न केवल क्षेत्र के लिए, बल्कि उससे परे भी। यह कुछ ऐसा है, जिस पर हम सभी को नजर रखने की जरूरत है।"
अकबरुद्दीन ने कहा, "वे कहते हैं कि कई बार दशकों तक कुछ नहीं होता, और फिर चंद दिनों में इतना कुछ घट जाता है, जो दशकों में होता है। यह पश्चिम एशिया और दुनिया के लिए स्पष्ट रूप से कुछ ऐसा ही समय है।"
पश्चिम एशिया में इजराइल-हमास युद्ध और इजराइल-हिज्बुल्ला संघर्ष तेज होता नजर आ रहा है।
भारत ने पश्चिम एशिया की मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता जताई है और क्षेत्र में तनाव कम करने के लिए बातचीत एवं कूटनीति के रास्ते पर लौटने का आह्वान किया है।
भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमन और ब्राजील के राजदूत केनेथ एच डा नोबरेगा भी 'भू-राजनीतिक व्यवधान : उभरती शक्तियां बनाम मौजूदा शक्तियां' सत्र का हिस्सा थे।
यह पूछे जाने पर कि क्या पुराने वैश्विक शक्ति समीकरणों के बदलने की जरूरत है, एकरमन ने 'हां' में जवाब दिया।
उन्होंने कहा, "यूरोप और जर्मनी खासतौर पर मानते हैं कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर आगे आने होगा। भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुख्य शक्तियों में शुमार होना होगा और यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भी प्रतिबिंबित होना चाहिए।"
एकरमन ने कहा कि जर्मनी, ब्राजील, भारत और जापान तथाकथित जी-4 है और "हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षित परिषद की स्थाई सदस्यता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "भारत वहां स्थाई सीट का किसी अन्य देश से ज्यादा हकदार है। और, हम यह भी आशा करते हैं कि इन अंतरराष्ट्रीय प्रारूपों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और संस्थानों में सुधार होने जा रहा है।"
वहीं, नोबरेगा ने कहा, "ग्लोबल साउथ के नेतृत्व को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण पर ब्राजील ग्लोबल साउथ और पश्चिम के बीच पुल बनाने में भारत का पारंपरिक भागीदार बनने के लिए हमेशा तैयार है।"
उन्होंने कहा, "भारत में यह नेतृत्व संभालने की सभी योग्यताएं हैं। यह वास्तविकता से गहराई से जुड़ा हुआ एक दृष्टिकोण है, इसमें आर्थिक शर्तें, तकनीकी शर्तें, सभ्यतागत शर्तें मौजूद हैं...।"
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