मुम्बई, 22 मार्च बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार कहा कि महाराष्ट्र सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के हड़ताली कर्मचारियों का खुदकुशी कर लेना उनकी समस्याओं का समाधान नहीं है। अदालत ने हड़ताली कर्मचारियों को उनकी मांगों पर महाराष्ट्र सरकार द्वारा निर्णय लेना लंबित रहने के बीच काम पर लौट जाने की सलाह दी।
खंडपीठ ने चार महीने से अधिक समय से हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की मांगों पर गौर करने वाली तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट मंजूरी के लिए मंत्रिमंडल के सामने पेश के लिए सरकार को मिली समय-सीमा बढ़ा दी।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ ने सरकार को एक अप्रैल तक अपना हलफमाना दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई की अगली तारीख पांच अप्रैल तय की।
अदालत ने सरकार को क्षतिपूर्ति से संबंधित 350 आवेदनों पर तेजी से फैसला करने का भी निर्देश दिया। ये आवेदन निगम के उन कर्मचारियों के परिवारों ने दिये हैं जिनकी कोरोना वायरस के कारण मौत हो गयी। पीठ निगम की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें हड़ताल खत्म करने के अदालती आदेश के बाद भी आंदोलन करने पर कर्मचारियों के विरूद्ध अदालत की अवमानना की कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है।
एमएसआरटीसी के हजारों कर्मचारी इस मांग को लेकर नवंबर, 2021 से हड़ताल पर हैं कि उन्हें राज्य सरकार के कर्मचारियों के समतुल्य समझा जाए।
मंगलवार को सरकारी वकील एस सी नायडू ने कर्मचारियों की मांगों पर अंतिम निर्णय करने के लिए और 15 दिनों का समय मांगा। ये कर्मचारी घाटे में चल रही एमएसआरटीसी का राज्य सरकार में विलय की भी मांग कर रहे हैं।
नायडू ने कहा, ‘‘ हमने काफी प्रगति की है। मैं इस अदालत को आश्वासन देता हूं कि 15 दिनों में अंतिम फैसला/अनुमोदन कर लिया जाएगा। ’’
उसपर हड़ताल कर्मचारियों के वकील गुणरत्न सदावर्ते ने कहा कि अबतक 107 ऐसे कर्मचारियों ने आत्महत्या कर ली है तथा निगम के हजारों कर्मचारी अपनी मांग के समर्थन में दक्षिण मुम्बई के आजाद मैदान में प्रदर्शन कर रहे हैं।
तब पीठ ने कहा कि आत्महत्या करना किसी समस्या का समाधान नहीं है। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘ ऐसी स्थिति उत्पन्न करने, जहां कर्मचारी खुदकुशी के लिए बाध्य हो जाए, के बजाय आप (सदावर्ते) क्यों इन कर्मचारियों को राज्य से उनकी मांग लंबित रहने के बीच काम पर लौटने के लिए राजी नहीं करते हैं?’’
अदालत ने कहा कि सदावर्ते को कर्मचारियों को परामर्श देना चाहिए कि आत्महत्या करना उनकी समस्याओं का समाधान नहीं है।
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, ‘‘ आत्महत्या कोई हल नहीं है। काम पर लौटना हल है। मामला हमारे सामने है। हम समाधान ढूढने का प्रयास कर रहे हैं। हां, सरकार को अब निर्णय ले लेना चाहिए था। वे समय चाहते हैं। आप (कर्मचारी) इंतजार क्यों नहीं कर सकते? आपके सर पर कौन सा आसमान गिरने जा रहा है?’’
पीठ ने कहा कि कर्मचारियों को उन यात्रियों के बारे में भी सोचना चाहिए जो इस आंदोलन के कारण सरकारी बस सेवा से वंचित हैं।
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