नयी दिल्ली, चार अक्टूबर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति ने कहा है कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पश्चिमी घाटों में पंपयुक्त जल भंडारण परियोजनाओं (पीएसपी) को पर्यावरणीय मंजूरी देने से पहले स्थल का समग्र दौरा किया जाना चाहिए।
मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) की 27 सितंबर को हुई बैठक के दौरान सदस्य सचिव ने कहा कि मंत्रालय ने पश्चिमी घाट में लगभग 15 परियोजनाओं को संदर्भ की शर्तें (टीओआर) प्रदान की हैं - जो पर्यावरण संबंधी उन अध्ययनों की रूपरेखा प्रस्तुत करती हैं, जिन्हें किसी परियोजना को मंजूरी के लिए आवेदन करने से पहले पूरा करना होता है।
बैठक के बारे में बृहस्पतिवार को प्रकाशित जानकारी में कहा गया, ‘‘ईएसी ने पश्चिमी घाट में प्रस्तावित पीएसपी के लिए अनुशंसित संदर्भ शर्तों की समीक्षा की... क्षेत्र की उच्च पर्यावरणीय संवेदनशीलता को देखते हुए ईएसी ने पिछली बैठकों में कई पंपयुक्त जल भंडारण परियोजनाओं के लिए उप-समिति के सदस्यों द्वारा स्थल का दौरा किए जाने की सिफारिश की थी।’’
इसके कहा गया, ‘‘ये परियोजनाएं पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पश्चिमी घाट में स्थित हैं और एक विशाल वन क्षेत्र भी इसमें शामिल है। ईएसी ने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरणीय मंजूरी देने या कोई भी सिफारिश करने से पहले पश्चिमी घाट में उन सभी पंपयुक्त जल परियोजनाओं के स्थल का दौरा किया जाना चाहिए जिन्हें मंत्रालय द्वारा संदर्भ शर्तें प्रदान की गई हैं।’’
हिमालय की तरह पश्चिमी घाट भी देश के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से हैं और यहां अवैध खनन, अनियमित निर्माण और अनियंत्रित व्यावसायिक गतिविधियों का खतरा बना रहता है।
पंपयुक्त जल भंडारण परियोजना में दो जलाशय शामिल होते हैं, एक पहाड़ी के ऊपर और दूसरा नीचे। पंप की मदद से पानी को ऊपरी जलाशय में पहुंचाने के लिए अतिरिक्त बिजली का उपयोग किया जाता है। जब बिजली की मांग बढ़ जाती है, तो पानी को टरबाइन के माध्यम से निचले जलाशय में छोड़ा जाता है, जिससे बिजली पैदा होती है। सौर और पवन ऊर्जा की अप्रत्याशित प्रकृति को देखते हुए यह प्रणाली विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
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