क्या हमें टीकों पर संदेह करने वालों की कहानियां बतानी चाहिए जिनकी कोविड-19 से मौत हुई

जैसे-जैसे टीके लगवाना कम होने लगा है, ऐसे लोगों की कहानियां सामने आने लगी हैं, जिन्होंने टीका लगवाने से मना किया था और अंतत: उन्हें गहन देखभाल कक्ष (आईसीयू) में रखने की नौबत आ गई थी और उन्हें इस बात का अफसोस था कि उन्होंने टीका नहीं लगवाया और बाद में उनकी मौत हो गई.

कोरोना वैक्सीन (Photo Credits: Twitter)

कोवेंट्री (ब्रिटेन), 14 अगस्त: जैसे-जैसे टीके लगवाना कम होने लगा है, ऐसे लोगों की कहानियां सामने आने लगी हैं, जिन्होंने टीका लगवाने से मना किया था और अंतत: उन्हें गहन देखभाल कक्ष (आईसीयू) में रखने की नौबत आ गई थी और उन्हें इस बात का अफसोस था कि उन्होंने टीका नहीं लगवाया और बाद में उनकी मौत हो गई. चेतावनी देने वाले ये किस्से निश्चित तौर पर ध्यान खींचने वाले हैं लेकिन क्या इन्हें प्रकाशित या प्रसारित करना सही है? यदि मानव नैतिकता केवल लागतों और लाभों को टटोलने पर निर्भर करती है, तो हमारा नैतिक जीवन महज लेखांकन के साधारण मामलों तक सीमित हो जाएगा. साथ ही, अगर टीकों से लोगों की जान बच जाती है, तो संशयवादी लोगों को मनाने के लिए कोई भी चेतावनीपरक कहानी कहना अच्छी होना चाहिए. है ना? वहीं, इसका नकारात्मक पहलु देखें तो शायद सावधान करने वाली कहानियां हमेशा काम नहीं करती हैं. और शोकसंतप्त परिवारों पर पड़ने वाले प्रभावों का क्या होगा जिनके किसी प्रियजन को अपनी ही मूर्खता के शिकार के रूप में बेरहमी से चित्रित किया जाए?

एक दार्शनिक दृष्टिकोण, जिसे परिणामवाद कहा जाता है- जो प्रस्तावित करता है कि जो नैतिक रूप से सही है वही भविष्य में दुनिया को सर्वश्रेष्ठ बनाता है- के अनुसार हमें सर्वश्रेष्ठ का “अनुमान” लगाना चाहिए और यह जांच करनी चाहिए कि लाभ नुकसान से ज्यादा हो. परिणाम, चाहे अच्छे हों या बुरे, हमारे जटिल नैतिक मनोविज्ञान का केवल एक हिस्सा हैं, जैसा प्रयोगों के एक लंबे इतिहास, विशेष रूप से प्रसिद्ध ट्रॉली (रेल की पटरियों पर चलने वाली छोटी गाड़ी) समस्याओं द्वारा दिखाया गया है. एक अनियंत्रित ट्रॉली लोगों की भीड़ की तरफ रेलवे पटरी से नीचे गिरा रही है, जिन्हें निश्चित मौत का सामना करना पड़ेगा. एक स्विच है जिससे ट्रॉली दूसरी तरफ पटल जाएगी, भीड़ को बचा लेगी लेकिन किसी एक व्यक्ति को टक्कर मारकर उसकी जान ले लेगी. क्या आपको वह स्विच दबाना चाहिए और ट्रॉली का मार्ग परिवर्तित कर देना चाहिए? नुकसान और हानि की कहानी साफ है: उस स्विच को दबाने जैसी. लेकिन प्रयोगों में, कई लोग स्विच बदलने से इनकार करते हैं. कुछ नहीं करने का मतलब है पूरी भीड़ की मौत. लेकिन संभवत: कुछ न करना हत्या करना नहीं है, बस त्रासद घटनाओं को होने देना है.

एक अन्य चतुर संस्करण में स्विच को बदलना बहुत कम लोकप्रिय हो जाता है जहां अनियंत्रित ट्रॉली को केवल एक मासूम और भारी-भरकम राहगीर को धक्का देकर रोका जा सकता है, जो आने वाली ट्रॉली के रास्ते में, एक पुल पर खड़ा होता है, (कल्पना करें कि आप बहुत दुबले हैं खुद पटरी पर कूद कर ट्रॉली को रोक नहीं सकते). कुछ लोग एक निर्दोष व्यक्ति को अपनी मौत के लिए धकेलना चाहते हैं, भले ही यह कई लोगों को बचाता हो. और निश्चित तौर पर जो इसे नैतिक रूप से सही मानते हैं वे भी इसे विवादित और अनिश्चित मानते हैं. इसलिए टीका संशयवादियों की मौतों की खबर देने के बारे में हमारी नैतिक बेचैनी केवल यह दिखाने से दूर नहीं होगी कि परिणाम अच्छे होंगे. लेकिन वास्तव में वह कौन सा नैतिक घटक है जो हमें इतना असहज करता है?

नैतिकता दो ताकतों पर निर्भर होती है. एक धीमी, तर्कसंगत प्रक्रिया है जो नुकसान और लाभों को बढ़ा देती है. दूसरी एक तेज़ भावनात्मक प्रक्रिया है जो मुख्य रूप से नैतिक नियमों का पालन करने से जुड़ी होती है (हत्या करना गलत है). चीजों को इस तरह से देखने का यह तरीका यह आभास देता है कि यह तर्कसंगत प्रणाली है जिसे हमें सुनना चाहिए. यह भी पढ़े :COVID-19 Update: देश में कोविड-19 के के 38,667 नए मामले, 478 और संक्रमितों की मृत्यु

लेकिन नैतिकता में एक तीसरी दार्शनिक परंपरा है जिस पर मनोवैज्ञानिकों ने हाल ही में विचार करना शुरू किया है. यह मामलों को बहुत अलग तरीके से देखता है और हमें नैतिक दुविधाओं को एक नए, लेकिन व्यावहारिक तरीके से समझने में मदद करती है. नैतिकता के अनुबंध-आधारित दृष्टिकोण के अनुसार, लोग न केवल परिणामों और नियमों की परवाह करते हैं, बल्कि समझौते की भी परवाह करते हैं. मोटे तौर पर, नैतिक रूप से कुछ ठीक है अगर लोग इससे सहमत होते हैं - या उसके लिए सहमत होंगे अगर हमारे पास उनसे पूछने का समय हो तो. कुछ रिपोर्ट किए गए मामलों में, मौत की दहलीज पर खड़े लोगों या उनके परिवारों ने दूसरों को चेतावनी देने के लिए अपनी कहानियों को प्रसारित करने के लिए कहा. ये मामले नैतिक रूप से ठीक लगते हैं, जैसा कि अनुबंध-आधारित दृष्टिकोण से पता चलता है. अन्य मामलों में, हालांकि, ऐसी अनुमति न तो मांगी गई है और न ही दी गई है. यहां, हमारी बेचैनी सबसे बड़ी होती है, खासकर जहां लोगों को मूर्खतापूर्ण रूप से अपने स्वयं के जीवन को खतरे में डालते हुए चित्रित किया जाता है. इस तरह से कही कहानी को छापने के लिए कोई भी सहमत नहीं होगा.

और एक और तत्व है. हमारा नैतिक मनोविज्ञान इस बात की भी परवाह करता है कि लोग - और विशेष रूप से हम खुद - नेक हैं या नहीं. इसके बावजूद दूसरों के दुर्भाग्य में खुश होना बुरी आदत है,इससे बेहतर दयालु एवं कृपालु होना है. इसलिए टीका संशयवादियों की दुखद मौतों को प्रचारित करना, और उत्साहित होना हमें इस बुराई में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता है, और हम ऐसा करने में नैतिक रूप से असहज महसूस करते हैं. तो रिपोर्टिंग कब जायज है और कब नहीं? नैतिक मनोविज्ञान हमें केवल यह समझने में मदद कर सकता है कि लोगों की राय अलग-अलग क्यों है और हममें से कई लोग विवादित क्यों महसूस करते हैं. इन संघर्षों को हल करना मनोविज्ञान का काम नहीं है. यह लोकतांत्रिक समाजों और प्रत्येक व्यक्ति के विवेक का काम है.

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