मुंबई, 11 मई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार द्वारा अपनी आत्मकथा में उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से ‘बिना संघर्ष’ के इस्तीफा देने के फैसले के बारे में लिखे जाने के कुछ दिनों बाद, उच्चतम न्यायालय के फैसले ने पुष्टि की है कि यह वास्तव में एक बड़ी भूल थी।
शीर्ष अदालत ने जून 2022 में ठाकरे को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहने को लेकर महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल की खिंचाई करते हुए बृहस्पतिवार को यह भी कहा कि वह महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को बहाल नहीं कर सकती क्योंकि ठाकरे ने विश्वासमत का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया था।
कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने भी एकनाथ शिंदे और कई अन्य शिवसेना विधायकों की बगावत के बाद ठाकरे के इस्तीफे के फैसले को एक ‘‘बड़ी गलती’’ करार दिया।
जून के अंतिम सप्ताह में जब शिंदे समूह महाराष्ट्र के बाहर डेरा डाले हुए था और ठाकरे ने 'फेसबुक लाइव' के जरिये अपने इस्तीफे की घोषणा की, उस समय चव्हाण ने कहा था कि उन्हें इसके बजाय शक्ति परीक्षण का सामना करना चाहिए।
शरद पवार ने अपनी अद्यतन आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ में कहा है कि यह आशंका थी कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने लिखा है, ‘‘लेकिन हमें अंदाजा नहीं था कि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने से शिवसेना के भीतर तूफान आ जाएगा।’’
पवार ने किताब में लिखा है, ‘‘असंतोष को शांत करने में शिवसेना नेतृत्व विफल रहा...जैसे ही उद्धव ठाकरे ने बिना संघर्ष किए इस्तीफा दे दिया, सत्ता में एमवीए का कार्यकाल समाप्त हो गया।’’
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके चव्हाण ने कहा कि ऐसा कोई आभास नहीं था कि ठाकरे 29 जून, 2022 को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद इस्तीफा दे देंगे। उन्होंने बृहस्पतिवार को दोहराया, ‘‘यह एक बड़ी गलती थी। अगर राज्यपाल ने विश्वासमत की मांग की थी तो आपको विधानसभा में जाकर अपना पक्ष रखना चाहिए था। हमें अपना पक्ष रखने का मौका मिलता। उसके बाद जिसके पास बहुमत होता वह जीत जाता। अगर आप विश्वासमत हार जाते तो भी ठीक था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यह गलती थी।’’
राकांपा के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने भी यही विचार व्यक्त किया। शिवसेना में रह चुके भुजबल ने कहा, ‘‘पवार ने कहा कि ठाकरे ने इस्तीफा देने से पहले हमें भरोसे में नहीं लिया। उन्होंने हमें कुछ नहीं बताया। उन्हें तीनों दलों के साथ विचार-विमर्श करना चाहिए था।’’
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