नयी दिल्ली, नौ जून कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी तेलों के आयात के लिए शुल्क दर कोटा (टीआरक्यू) खाद्य तेलों की सुचारू आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर सकता है। उद्योग मंडल एसईए ने बृहस्पतिवार को मांग की कि सरकार टीआरक्यू प्रणाली को लागू करने के बजाय सितंबर तक इन दो प्रमुख खाना पकाने के तेलों पर आयात शुल्क घटाकर शून्य कर दे।
टीआरक्यू आयात की मात्रा के लिए एक ऐसा कोटा है जो निर्दिष्ट या शून्य शुल्क पर भारत में प्रवेश करेगा, लेकिन कोटा के पहुंचने के बाद, अतिरिक्त आयात पर सामान्य शुल्क लागू होता है।
सरकार ने 24 मई को वर्ष 2022-23 और वर्ष 2023-24 के लिए 20 लाख टन कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल के टीआरक्यू को अधिसूचित किया था।
मुंबई स्थित सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय को लिखे एक पत्र में कहा, ‘‘टीआरक्यू शुरू करने के पीछे सरकार की मंशा देश में खाद्य तेल आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों में नरमी लाने की है, लेकिन इससे आयात में कमी आ सकती है।’’
बाजार में टीआरक्यू का वास्तविक प्रभाव इसके लागू होने के 2-3 महीने बाद ही महसूस किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बीच की अवधि में, खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि की संभावना है क्योंकि भारत में त्योहारी सीजन जल्द शुरू होने वाला है और बारिश शुरू होते ही खपत भी बढ़ जाती है।
चतुर्वेदी ने यह भी कहा कि सरकार 40 लाख टन सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल का टीआरक्यू जारी करके खुद को बांध रही है। उन्होंने कहा, 'अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में गिरावट आती है, (जो एक संभावना है) तो हमें आयात शुल्क बढ़ाने में परेशानी होगी और इससे घरेलू तिलहन की कीमतें प्रभावित हो सकती हैं।'
इस पृष्ठभूमि में, एसईए अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि सरकार टीआरक्यू जारी करने के बजाय इन दोनों खाद्य तेलों पर आयात शुल्क को सितंबर तक के लिए शून्य कर सकती है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसका घरेलू खाद्य तेल कीमतों पर लाभकारी प्रभाव पड़ेगा। सरकार सितंबर में स्थिति की समीक्षा कर सकती है और खरीफ में तिलहन उत्पादन के लिए उपयुक्त फैसले ले सकती है।’’
उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक तेल की कीमतें दबाव में हैं और इंडोनेशिया को भी निर्यात लाइसेंस जारी करने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि उनके भंडारण टैंक भरे हुए हैं। अगर सरकार केवल सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल पर आयात शुल्क कम करती है तो यह सुनिश्चित करेगा कि पाम तेल की कीमतों गिरावट आये और इस गिरावट का असर सभी खाद्य तेलों पर दिखे।
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