आर्कटिक में वैज्ञानिक आइस मेमरी को संरक्षित करने में जुटे
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

वैज्ञानिक आर्कटिक क्षेत्र की सबसे पुरानी बर्फ को संरक्षित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. ऐसी चिंताएं हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ तेजी से पिघल सकती है.आर्कटिक क्षेत्र की बर्फीली परतों में हजारों साल पुराने पानी में हमारे ग्रह के बनने और यहां जीवन के जन्म के रहस्य दबे हुए हैं. हालांकि, अब वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जलवायु परिवर्तन इस बर्फ को पिघला सकता है.

इटली, फ्रांस और नार्वे के शोधकर्ता नॉर्वे के स्वालबार्ड क्षेत्र में अत्यंत प्राचीन बर्फ को संरक्षित करने के मिशन पर हैं. इसे संरक्षित करने के लिए आर्कटिक से अंटार्कटिक, दक्षिणी ध्रुव तक बर्फ पहुंचाने की योजना है. पृथ्वी पर पानी की कहानी इसी अति प्राचीन बर्फ से जुड़ी हुई है.

आइस मेमोरी फाउंडेशन के उपाध्यक्ष कार्लो बारबांते ने कहा, "आर्कटिक जैसे उच्च अक्षांश क्षेत्रों में ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघलने लगे हैं. इससे पहले कि जलवायु परिवर्तन इनमें मौजूद सभी अहम अर्काइव्स को मिटा दे हम इन अर्काइव्स को भविष्य के वैज्ञानिकों की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना चाहते हैं."

आठ विशेषज्ञों की टीम ने 1100 मीटर की ऊंचाई पर कैंप बनाया है. आइस मेमोरी के मुताबिक होल्टेडफुना आइसफील्ड में स्थापित इस कैंप से पिछले हफ्ते ड्रिलिंग शुरू की .

ये शोधकर्ता ट्यूब की मदद से धरती की सतह से 125 मीटर की गहराई से इस बर्फ को निकालेंगे. बर्फ के क्रिस्टल में मौजूद महत्वपूर्ण डेटा वैज्ञानिकों को पिछले जलवायु परिवर्तनों को समझने में मदद करते हैं. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पिघला हुआ पानी धीरे-धीरे धरती की गहराई तक पहुंच रहा है और इस तरह प्राचीन बर्फ गायब हो सकती है.

आइस मेमरी फाउंडेशन के अध्यक्ष जेरोम चैपल्स ने कहा, "वैज्ञानिक पृथ्वी की सतह से इस आदिम सामग्री को बर्फ से गायब होते हुए देख रहे हैं." उन्होंने कहा, "यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि यह सुरक्षित रहे."

मानव गतिविधियों के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि ने 19वीं शताब्दी के बाद से तापमान में औसतन एक डिग्री सेल्सियस के दसवें हिस्से की वृद्धि की है.

अध्ययनों के मुताबिक आर्कटिक क्षेत्र शेष विश्व की तुलना में दो से चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि नॉर्वे के इस दूर दराज क्षेत्र से बर्फ को समुद्र के रास्ते यूरोप लाया जाएगा और फिर दक्षिणी ध्रुव में फ्रांको-इतालवी अंटार्कटिक स्टेशन पर रखा जाएगा.

एए/सीके (एएफपी, एपी)