नयी दिल्ली, 18 नवंबर वित्त मंत्रालय ने सोमवार को केंद्रीय लोक उपक्रमों (सीपीएसई) के पूंजी पुनर्गठन के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किये। इसके तहत शुद्ध लाभ का न्यूनतम 30 प्रतिशत या निवल मूल्य का चार प्रतिशत, इसमें जो भी अधिक हो, सालाना लाभांश के रूप में भुगतान करना अनिवार्य किया गया है।
निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की तरफ से जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, एनबीएफसी जैसे वित्तीय क्षेत्र के केंद्रीय उद्यम किसी भी मौजूदा कानूनी प्रावधान के तहत शुद्ध लाभ का 30 प्रतिशत न्यूनतम वार्षिक लाभांश का भुगतान कर सकते हैं। यह कानून के तहत अगर कोई सीमा है तो उसके अधीन होगा।
इससे पहले, 2016 में जारी पहले दिशानिर्देश के तहत कर पश्चात लाभ (पीएटी) यानी शुद्ध लाभ का 30 प्रतिशत या नेटवर्थ का पांच प्रतिशत, जो भी अधिक हो, लाभांश भुगतान करने की जरूरत थी। इसके अलावा, वित्तीय क्षेत्र के सीपीएसई का कोई अलग उल्लेख नहीं था।
संशोधित दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि जिन केंद्रीय उपक्रमों के शेयर का बाजार मूल्य पिछले छह महीनों से लगातार ‘बुक वैल्यू’ से कम है और नेटवर्थ कम-से-कम 3,000 करोड़ रुपये है और नकदी और बैंकों में जमा 1,500 करोड़ रुपये से अधिक है, वे शेयर पुनर्खरीद पर विचार कर सकते हैं।
दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक सीपीएसई बोनस शेयर जारी करने पर विचार कर सकता है। बशर्ते उसका ‘रिजर्व’ और अधिशेष उसकी चुकता इक्विटी शेयर पूंजी के 20 गुना के बराबर या उससे अधिक हो।
कोई भी सूचीबद्ध केंद्रीय उपक्रम जिसका बाजार मूल्य पिछले छह महीनों से लगातार उसके अंकित मूल्य से 150 गुना से अधिक है, अपने शेयरों को विभाजित करने पर विचार कर सकता है।
इसके अलावा, दो बार लगातार शेयर विभाजन के बीच कम से कम तीन साल का अंतराल होना चाहिए।
ये दिशानिर्देश केंद्रीय उपक्रमों की उन अनुषंगी कंपनियों पर भी लागू होंगे, जहां मूल केंद्रीय उद्यम की 51 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है।
दिशानिर्देशों में कहा गया है कि केंद्रीय उपक्रमों के पूंजी प्रबंधन या पुनर्गठन से संबंधित सभी मुद्दों पर दीपम सचिव की अध्यक्षता वाले अंतर-मंत्रालयी मंच यानी सीपीएसई द्वारा पूंजी प्रबंधन और लाभांश की निगरानी के लिए समिति (सीएमसीडीसी) में चर्चा की जाएगी।
ये दिशानिर्देश सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों पर लागू नहीं होंगे। यह उन कॉरपोरेट निकायों पर भी लागू नहीं होगा जिन्हें कंपनी अधिनियम की धारा आठ के तहत स्थापित कंपनियों की तरह अपने सदस्यों को लाभ वितरित करने से निषेध किया गया है।
ये दिशानिर्देश चालू वित्त वर्ष 2024-25 से लागू होंगे।
संशोधित दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि ये केंद्रीय उपक्रम तिमाही नतीजों के बाद हर तिमाही या साल में कम से कम दो बार अंतरिम लाभांश देने पर विचार कर सकते हैं।
इसके तहत सभी सूचीबद्ध केंद्रीय उपक्रमों को अनुमानित वार्षिक लाभांश का कम-से-कम 90 प्रतिशत अंतरिम लाभांश के रूप में एक या अधिक किस्तों में भुगतान करने की व्यवस्था की गयी है। प्रत्येक वर्ष सितंबर में सालाना आम बैठक समाप्त होने के तुरंत बाद पिछले वित्त वर्ष के अंतिम लाभांश का भुगतान किया जा सकता है।
दिशानिर्देशों में कहा गया है, ‘‘गैर-सूचीबद्ध केंद्रीय उपक्रम पिछले साल की ऑडिट वाली वित्तीय स्थिति के आधार पर अंतिम लाभांश के रूप में साल में एक बार लाभांश का भुगतान कर सकते हैं।’’
दीपम ने कहा कि संशोधित दिशानिर्देशों से केंद्रीय उपक्रमों के मूल्य और शेयरधारकों के लिए कुल रिटर्न में वृद्धि होगी। साथ ही उन्हें परिचालन तथा दक्षता में सुधार के साथ परिचालन और वित्तीय स्तर पर मजबूती मिलेगी।
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