नयी दिल्ली, 20 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में ‘शिवलिंग’ की मौजूदगी पर कथित आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया है।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने डॉ. रतन लाल की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए और 295ए के तहत मई 2022 में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता ने समाज के सद्भाव में अशांति पैदा की और बड़े पैमाने पर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से पोस्ट किया गया था।
न्यायाधीश ने 17 दिसंबर को दिये फैसले में ‘शिवलिंग’ से जुड़ी व्युत्पत्ति और आस्था पर ध्यान देते हुए इस बात पर जोर दिया कि किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह प्रोफेसर हो या बुद्धिजीवी, ‘‘इस तरह की टिप्पणी, ट्वीट या पोस्ट’’ करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा किया गया कृत्य और टिप्पणियां ‘भगवान शिव/शिवलिंग’ के उपासकों द्वारा अपनाई जाने वाली मान्यताओं और रीति-रिवाजों के विपरीत हैं।
न्यायालय ने आदेश दिया, ‘‘तदनुसार, यह याचिका खारिज की जाती है।’’
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