नयी दिल्ली, 24 दिसंबर फिल्म ‘प्यासा’ में गुरुदत्त के ऊपर फिल्माया गया दर्द भरा नगमा ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए...’ हो या मस्तमौला अंदाज में जॉनी वॉकर पर फिल्माया गया गाना ‘सर जो तेरा चकराए’... इन दोनों के बीच एक गहरा संबंध यह है कि दोनों को ही आवाज महान गायक मोहम्मद रफी ने दी है।
फिल्म ‘प्यासा’ में चिंतनशील कवि विजय बाबू और मिलनसार अब्दुल सत्तार जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण के कारण अलग-अलग व्यक्तित्व हैं, लेकिन गायक रफी की मखमली आवाज उन्हें एक साथ लाती है।
देश इस समय इस महान गायक की 100वीं जयंती मना रहा है।
कई पार्श्व गायकों ने एक ही फिल्म में अलग-अलग गानों में अलग-अलग मूड एवं अंदाज में आवाज दी है। लेकिन शायद किसी में भी उतनी गहराई और विविधता नहीं थी जितनी रफी में थी। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण प्यासा फिल्म के ये दो गाने हैं जो भावनात्मक और गायन शैलियों के दो छोर हैं लेकिन रफी ने अपनी आवाज के दम पर दोनों को अलग अलग भावनात्मक गहराई दी है।
निधन के चार दशक से भी अधिक समय बाद रफी आज भी लाखों संगीत प्रेमियों के दिलों में बसते हैं। हर मूड, हर मौसम और यहां तक कि जब कोई कारण न हो, तो भी उनके गीत सुनने वाले को एक मकसद देते हैं। आज भी रफी के लाखों ऐसे चाहने वाले हैं जिनकी सुबह रफी के साथ होती है तो शाम भी उन्हीं के साथ होती है।
रफी की आवाज में इतने रंग और सुर थे कि वह हर मूड, हर मौसम और हर कलाकार पर फबती थी। इसलिए, वे ‘‘तारीफ करूं क्या उसकी’’ में शम्मी कपूर की ज़िंदादिली, ‘‘अभी न जाओ छोड़ के’’ में रोमांटिक देव आनंद, ‘‘देखी जमाने की यारी’’ में अवसाद ग्रस्त गुरु दत्त या ‘‘आज पुरानी राहों से’’ में दिलीप कुमार की चाहत को बाखूबी ढाल देते थे।
‘याहू!’ की मादक ऊंचाइयों से लेकर ‘‘ओ दुनिया के रखवाले’’ की याचना- हर सुर को मोहम्मद रफी ने साधा हुआ था।
उन्होंने अपने चार दशक के करियर में 5,000 से अधिक गाने गाए। उनकी गायकी की दुनिया इतनी विशाल और गहरी है कि कोई पैमाना उनके हुनर की ताब नहीं ला सकता।
महान पार्श्व गायक की शुरुआती जिंदगी काफी साधारण थी।
रफी का जन्म 1924 में पंजाब के अमृतसर से कुछ किलोमीटर दूर कोटला सुल्तान सिंह में सीमित संसाधनों वाले एक परिवार में ‘फीको’ के रूप में हुआ। रफी ने आय के लिए 20 वर्ष की उम्र में नाई का काम करना शुरू किया।
इस बारे में एक कहानी बार-बार दोहराई जाती है कि कैसे उनकी संगीत प्रतिभा को पहचान मिली।
इस कहानी के तथ्य और फसाने में अंतर करना कठिन है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि एक फकीर अक्सर गांव में आया करता था। वह भिक्षा मांगने के लिए गीत गाता था और जिज्ञासु रफी उसके पीछे पीछे घूमता था। कच्ची उम्र में सुर ताल सीखना कोई मुश्किल काम न था और बाद में वह इन गानों को जोर जोर से गाकर गांववालों को सुनाता था।
रफी के बेटे शाहिद रफी ने ‘पीटीआई-’ को दिए एक साक्षात्कार में यह किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया, ‘‘एक दिन फकीर ने उनसे पूछा, ‘क्या तुम्हें मेरा गाना याद है?’ अब्बा ने कहा, ‘हां’. फ़कीर को उनकी आवाज पसंद आई और उन्होंने कहा, ‘एक दिन तुम बहुत बड़े आदमी बनोगे’।’’
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