नयी दिल्ली, 10 जनवरी : रेलवे पटरियों के नजदीक रहने वाले लोगों की पुरानी तस्वीर और वीडियो का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर यह दावा करने के लिए किया जा रहा है कि यह उत्तराखंड के हल्द्वानी में किये गए अतिक्रमण से जुड़ा है. हालांकि, ‘पीटीआई फैक्ट चेक’ (PTI Fact Check) में पाया गया कि ये तस्वीर और वीडियो हल्द्वानी से जुड़े नहीं हैं. रेलवे पटरियों के नजदीक रह रहे लोगों की यह तस्वीर कोलकाता की है, जिसे वर्ष 2013 में प्रकाशित किया गया था. इसी प्रकार पटरियों के नजदीक झुग्गी बस्ती को दिखाने वाला वीडियो कोलकाता का है, जो वर्ष 2017 का है. पीटीआई फैक्ट चेक डेस्क ने तस्वीर की सच्चाई पता लगाने के लिए गूगल रिवर्स इमेज सर्च का सहारा लिया. छह जनवरी को ट्विटर पर साझा की गई तस्वीर, जिसे करीब एक हजार उपयोगकर्ताओं ने देखा था, उसके कैप्शन में लिखा है, ‘‘यह वह स्थान है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने वैधता प्रदान की है और हमारी सरकार कायर बन गई है. कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, फर्जी एचएमओ#हल्द्वानीअतिक्रमण.’’ सर्च के दौरान मेजर सुरेंद्र पुनिया का एक और ट्वीट दिखा, जिसमें इसी तस्वीर को हैशटैग # हल्द्वानी अतिक्रमण के साथ पांच जनवरी को साझा किया गया था और करीब 7.5 लाख उपयोगकर्ता इसे देख चुके थे और 6,500 से अधिक उपयोगकर्ता इसे साझा कर चुके थे.
मेजर सुरेंद्र पुनिया नामक उपयोगकर्ता ने तस्वीर के साथ ट्वीट किया था, ‘‘ प्रिय मित्रों, कहीं जमीन मत खरीदो, केवल बड़ी संख्या में अपने समुदाय के लोगों को एकत्र करो और सरकारी/रक्षा/रेलवे की जमीन पर कब्जा कर लो. मी लार्ड उसे वैधता प्रदान कर देंगे और अगर आप इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं तो आप देश की धर्मनिरपेक्षता को खतरे में डालते हैं.#हल्द्वानीअतिक्रमण.’’ पीटीआई फैक्ट चेक डेस्क द्वारा और सर्च करने पर ट्विटर पर वीडियो मिला, जिसमें लोग रेल पटरी के नजदीक रहते दिख रहे हैं और दावा किया गया कि यह वीडियो हल्द्वानी के कथित जमीन अतिक्रमण का है. इस वीडियो के साथ ट्वीट किया गया, ‘‘यह हल्द्वानी के नजदीक रोहिंग्या द्वारा किए गए अतिक्रमण की झलकी है और अब वे शाहीन बाग की तरह महिलाओं और बच्चों को सामने कर पीड़ित होने का दांव खेल रहे हैं. यहां तक रेलवे के पास मानचित्र है, जिनपर ये गैर कानूनी घर बने हैं.’’ इस वीडियो को पांच जनवरी को साझा किया गया था और 22 हजार से अधिक उपयोगकर्ताओं ने देखा था और 200 से अधिक बार रीट्वीट किया गया था. सर्च के नतीजे वाले पन्ने पर फैक्ट चेक टीम ने पाया कि उसी तस्वीर को गेट्टी इमेज ने अपनी वेबसाइट पर 12 दिसंबर 2013 को प्रकाशित किया था. यह भी पढ़ें : गोवा में पेंट फैक्टरी में आग, धुएं के कारण आस-पास के इलाकों में रहने वाले 200 लोगों ने घर छोड़ा
गेट्टी इमेज की साइट को खंगालने पर डेस्क ने पाया कि उक्त तस्वीर को खींचने वाले समीर हुसैन हैं और तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा था कि यह कोलकाता में रेलवे पटरी के नजदीक खींची गई तस्वीर है. फोटो के विवरण में लिखा था, ‘‘भारत के कोलकाता में 12 दिसंबर 2013 को एक यात्री ट्रेन के गुजरने के बाद पटरियों के पास रहने वाले लोग अपनी जिंदगी में लौट आए. कोलकाता की करीब एक तिहाई आबादी झुग्गियों में रहती है और 70 हजार अन्य लोग बेघर हैं.’’ इसी प्रकार डेस्क ने प्रसारित ट्वीट में साझा किए गए वीडियो को लिया और उसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए इनविड टूल का इस्तेमाल किया. गूगल रिवर्स इमेज सर्च ने वीडियो से ली गई एक तस्वीर का पता लगाया, जिससे वीडियो संस्करण की जानकारी मिली और यह ज्ञात हुआ कि उक्त वीडियो को 12 जनवरी 2017 को यूट्यूब पर साझा किया गया था.
वीडियो के विवरण में लिखा था, ‘‘कोलकाता की रेल पटरियों पर गरीब लोगों ने कब्जा कर लिया है. ये रेल पटरियां लोगों का स्नानागार, रसोईघर, छत, क्लब और मैदान आदि हैं.’’ वीडियो को देखने के दौरान संज्ञान में आया कि कोलकाता की झुग्गी के यूट्यूब वीडियो को हाल में हल्द्वानी को लेकर किए गए ट्वीट के साथ साझा किया गया है. तस्वीरों और वीडियो की जांच से साबित हुआ कि सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने स्रोत को सत्यापित किए बिना कोलकाता की पुरानी तस्वीरों और वीडियो को हल्द्वानी रेल भूमि अतिक्रमण मामले के साथ जोड़कर साझा कर दिया. पाठक अगर सोशल मीडिया पर साझा किसी पोस्ट की सत्यता जानने के लिए ‘फैक्ट चेक’ चाहते हैं, तो संबंधित दावा साझा करने के लिए व्हाट्सऐप नंबर +91-8130503759 के माध्यम से ‘पीटीआई फैक्ट चेक’ से संपर्क कर सकते हैं.