नयी दिल्ली, 19 फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने 2022 में कर्नाटक में आयोजित एक विरोध प्रदर्शन के संबंध में राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और अन्य के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर सोमवार को रोक लगा दी. न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति पी.के. मिश्रा की पीठ ने मामले में कर्नाटक सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया और सिद्धरमैया, कांग्रेस महासचिव व कर्नाटक प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला, राज्य के मंत्रियों एम.बी. पाटिल और रामलिंगा रेड्डी के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी.
न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस आदेश पर भी रोक लगा दी जिसमें उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था और उन्हें छह मार्च को विशेष अदालत के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गया. पीठ ने कहा, “नोटिस जारी करें. छह सप्ताह में जवाब दिया जाए. इस बीच, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही पर रोक लगायी जाती है.” सुनवाई की शुरुआत में सिद्धरमैया की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह एक “राजनीतिक” विरोध था और आपराधिक मामला संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत विरोध करने के अधिकार का उल्लंघन है.
वरिष्ठ वकील ने कहा कि लोकतंत्र में भाषण और विरोध की स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि है और संविधान के तहत इसकी गारंटी है और एकमात्र प्रतिबंध तब लागू होता है जब सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित होती है. सिंघवी ने कहा कि बिना किसी आपराधिक इरादे के शांतिपूर्वक किए गए राजनीतिक विरोध को दंडात्मक प्रावधानों का उपयोग करके दबाया नहीं जा सकता. सिद्धारमैया ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसने 2022 में उनके और अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी.
बेंगलुरु में तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के आवास का घेराव करने के लिए मार्च निकालने के बाद कांग्रेस नेताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. प्रदर्शनकारी प्रदेश के तत्कालीन ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री के. एस. ईश्वरप्पा के इस्तीफे की मांग कर रहे थे.
यह आंदोलन तब किया गया था जब एक ठेकेदार संतोष पाटिल ने ईश्वरप्पा पर अपने गांव में एक सार्वजनिक कार्य के लिए 40 प्रतिशत कमीशन मांगने का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी. पुलिस के मुताबिक, मामला सड़क जाम करने और इससे यात्रियों को परेशानी होने से जुड़ा था.
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