नयी दिल्ली, नौ अगस्त कारतूस में सीसे के छर्रों के इस्तेमाल को कम करने का यूरोपीय संघ का प्रस्तावित नियम अगर निकट भविष्य में लागू किया जाता है तो भारतीय शॉटगन निशानेबाजों पर इसका वित्तीय रूप से बड़ा असर पड़ सकता है।
कारतूस में सीसे पर प्रतिबंध लगाने का एक बड़ा असर यह होगा कि निशानेबाजों को या तो अपनी बंदूकों की बैरल बदलनी होगी या पूरी तरह से नई बंदूकें खरीदनी होंगी, जो दोनों काफी खर्चीले होंगे।
प्रतिष्ठित यूरोपीय ब्रांड की ट्रैप या स्कीट बंदूक नौ लाख रुपये से अधिक की हो सकती है और शीर्ष अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज को कम से कम दो की जरूरत होती है जिससे कि प्रतियोगिता के दौरान एक के खराब होने की स्थिति में दूसरी का इस्तेमाल किया जा सके।
खेल की वैश्विक संचालन संस्था अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी खेल महासंघ (आईएसएसएफ) ने स्वीकार किया है कि पर्यावरण पर धातु के हानिकारक प्रभावों के कारण यूरोपीय संघ द्वारा सीसे के छर्रों पर प्रतिबंध लगाने का अभियान ‘महत्वपूर्ण स्थिति’ में है।
खबरों के अनुसार यह नया नियम 2024 पेरिस ओलंपिक के बाद लागू किया जा सकता है।
राष्ट्रमंडल खेलों के स्वर्ण पदक विजेता ट्रैप निशानेबाज मनशेर सिंह और एशियाई खेलों के डबल ट्रैप चैंपियन रंजन सोढ़ी ने स्वीकार किया कि सीसे के छर्रे के उपयोग के संबंध में यूरोपीय संघ में नवीनतम घटनाओं को भारतीय निशानेबाजों द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए और उन्हें लगता है कि भविष्य में स्टील के छर्रों का इस्तेमाल होगा जो पर्यावरण के अनुकूल हैं।
आईएसएसएफ ने 28 जुलाई को बयान में कहा था कि यूरोपीय संघ जल्द ही इस विवादास्पद मुद्दे पर मतदान कराएगा और उसने अपने यूरोपीय सदस्यों से आग्रह किया कि वे सुनिश्चित करें कि नया नियम लागू नहीं हो पाए।
आईएसएसएफ ने बयान में कहा, ‘‘यूरोप में शॉटगन रेंज और आउटडोर राइफल/पिस्टल रेंज में सीसे के छर्रों पर प्रतिबंध लगाने या सीसे के कारतूस के इस्तेमाल में काफी कमी लाने का अभियान एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। आईएसएसएफ ने यूरोपीय संघ आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की है और बेहतर समाधान पेश करने की कोशिश की है।’’
बयान के अनुसार, ‘‘जल्द ही यूरोपीय देश इस विवादास्पद मुद्दे पर मतदान करेंगे। अब हमें अपने यूरोपीय सदस्यों की जरूरत है कि वे अपने राजनेताओं और यूरोपीय आयोग के सदस्यों से संपर्क करें जिससे कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह यूरोपीय रासायनिक एजेंसी (ईसीएचए) प्रस्ताव अपनी वर्तमान स्थिति में पारित नहीं हो पाए।’’
इसमें कहा गया, ‘‘आईएसएसएफ एक जिम्मेदार तरीके से सीसे का प्रबंधन करने के समर्थन में है और हम सर्वश्रेष्ठ कार्यों और व्यावहारिक विकल्पों पर शोध करना जारी रखेंगे। हमें लगता है कि ईसीएचए का प्रस्ताव कई स्थानीय रेंज के लिए बड़ी आर्थिक कठिनाई पैदा करेगा और स्थानीय तथा क्षेत्रीय स्तर पर हमारे खेल को नुकसान पहुंचाएगा।’’
भारत के दो पूर्व दिग्गज निशानेबाजों ने पीटीआई से कहा कि कभी ना कभी यह बदलाव होना ही है क्योंकि यूरोपीय संघ अपने पर्यावरण को बचाने की कोशिश कर रहा है।
भारत ने दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ शॉटगन निशानेबाज तैयार किए हैं जिनमें ओलंपिक रजत पदक विजेता डबल ट्रैप निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़, विश्व चैंपियन मानवजीत सिंह, मनशेर, रंजन, अंकुर मित्तल और मेराज अहमद खान जैसे नाम शामिल हैं जबकि मौजूदा निशानेबाज भी अच्छा कर रहे हैं।
लेकिन कारतूस की जरूरत के अनुसार बंदूकें या बैरल बदलने का भारी वित्तीय बोझ खेल के विकास में एक बड़ी बाधा बन सकता है।
विश्व कप के दो बार के स्वर्ण पदक विजेता रंजन ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि बैरल क्षतिग्रस्त हो जाएगा (अगर सीसे की जगह स्टील के छर्रों का इस्तेमाल होगा)। आपको नए बैरल की आवश्यकता होगी जो स्टील छर्रों के साथ अच्छे हों। अधिकांश बंदूकें यूरोप में बनाई जाती हैं इसलिए हर किसी को नई बंदूक या नई बैरल की जरूतर होगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह (स्टील के छर्रों का इस्तेमाल) पर्यावरण के लिए अच्छा होगा लेकिन बंदूकें काफी महंगी हैं। इसलिए निश्चित तौर पर खर्चा काफी अधिक है। एक शॉटगन, ट्रैप हो या स्कीट, लगभग नौ लाख रुपये की आती है और शीर्ष निशानेबाजों को कम से कम दो की जरूरत होती है।’’
इस दिग्गज निशानेबाज ने कहा, ‘‘भारतीय दृष्टिकोण से, यदि यूरोपीय संघ के मानदंडों को लागू किया जाता है तो कारतूस की आपूर्ति कम हो जाएगी। आपको यह कारतूस भारत में (तुरंत नहीं) मिलेंगे। कोविड महामारी ने पहले ही यूरोप से बंदूकें खरीदना मुश्किल बना दिया है और एक साल की प्रतीक्षा अवधि है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि नए मानदंड 2024 पेरिस ओलंपिक के बाद लागू होंगे।’’
रंजन ने कहा, ‘‘यूरोप में कई रेंज सीसे के छर्रों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा रही हैं क्योंकि वे पानी और खेतों को प्रदूषित करते हैं। सीसा जहरीला है... बेशक अगर बारिश होती है तो सीसा भूजल में मिल जाता है। अंततः यह (सीसे की जगह स्टील का इस्तेमाल) होने ही वाला है।’’
शॉटगन का एक कारतूस जब फटता है तो इससे 100 से अधिक सीसे के छर्रे निकलते हैं जो प्रतियोगिता स्थल पर कई एकड़ में फैल जाते हैं। प्रतियोगिता और ट्रेनिंग के दौरान हजारों कारतूस का इस्तेमाल होता है। पर्यावरण पर इसका असर अधिकतम होता है जब निशानेबाजी रेंज जल या वन्य जीवन से भरे वन क्षेत्र के करीब स्थित होती है।
मनशेर ने स्वीकार किया कि स्टील के छर्रों से बैरल को नुकसान पहुंचता है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि यूरोपीय संघ निशानेबाजों तथा बंदूकों और कारतूस निर्माताओं को अधिक पर्यावरण अनुकूल स्टील के छर्रों के बदलाव के लिए अधिक समय देगा।
मनशेर ने कहा, ‘‘वे अंतत: सीसे के छर्रों को बदल देंगे और मुद्दा हितधारकों (निशानेबाजों, कारतूस और बंदूक निर्माताओं) को पर्याप्त समय देना है जिससे कि वे खेल को खतरे में डाले बिना पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का निर्माण कर सकें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसका तत्काल प्रभाव नहीं होना चाहिए जो निशानेबाजी खेल पर प्रतिकूल असर डाले।’’
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