देश की खबरें | प्रज्जवल रेवन्ना को अन्य पीड़िताओं के डिजिटल साक्ष्य तक पहुंच देने से इनकार

बेंगलुरु, 16 जनवरी कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को फैसला सुनाया कि यौन उत्पीड़न के कई आरोपों का सामना कर रहे पूर्व सांसद प्रज्जवल रेवन्ना मौजूदा मामले में सिर्फ शिकायतकर्ता से जुड़े डिजिटल साक्ष्यों तक पहुंच हासिल कर सकते हैं।

अदालत ने रेवन्ना को अन्य पीड़िताओं से जुड़े डिजिटल सबूत तक पहुंच प्रदान करने से इनकार कर दिया।

जनता दल (सेक्युलर) के निलंबित नेता प्रज्जवल ने अपने खिलाफ दर्ज मामलों में विशेष जांच दल (एसआईटी) की ओर से जुटाए गए सभी डिजिटल सबूतों तक पहुंच उपलब्ध कराने के अनुरोध के साथ उच्च न्यायालय का रुख किया था।

हालांकि, न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने उनकी अर्जी ठुकरा दी और कहा कि कानून उनके पक्ष में नहीं झुकेगा।

न्यायमूर्ति नगप्रसन्ना ने कहा, “यहां पेश तस्वीरें, यहां तक ​​कि पीड़िता की तस्वीरें भी, अश्लील हैं। सिर्फ इसलिए कि आप प्रज्जवल रेवन्ना हैं, कानून को आपके पक्ष में नहीं झुकाया जा सकता।”

बलात्कार, यौन उत्पीड़न और आपराधिक धमकी के कम से कम चार मामलों में आरोपी रेवन्ना ने दलील दी कि उन्होंने जो डिजिटल साक्ष्य उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है, वह जरूरी नहीं कि अश्लील हो।

हालांकि, अदालत ने अन्य पीड़िताओं की निजता की रक्षा के महत्व पर जोर देते हुए उनके दावे को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति नगप्रसन्ना ने कहा, “आप धारा-376 के तहत दर्ज मामले (घरेलू नौकरानी के साथ कथित बलात्कार) में साक्ष्य पाने के हकदार हैं, लेकिन अगर आप उन सभी महिलाओं से जुड़ी सामग्री हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके साथ आपने कथित अपराध किया है, तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है। जब उन्होंने आपके खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है, तो उनकी निजता में दखल क्यों दिया जाए?”

अतिरिक्त विशेष लोक अभियोजक बीएन जगदीश ने दलील दी कि रेवन्ना की याचिका मुकदमे की सुनवाई में देरी करने की रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने अदालत को सूचित किया कि बचाव पक्ष को चारों मामलों से जुड़ी तस्वीरों और वीडियो की प्रतियां पहले ही प्रदान की जा चुकी हैं, अब रेवन्ना उस सैमसंग फोन से बरामद 15,000 से अधिक तस्वीरों और 2,000 वीडियो तक पहुंच प्रदान करने का अनुरोध कर रहे हैं, जो कथित तौर पर उनके चालक का है।

जगदीश ने आगाह किया कि इनमें से कई सामग्री में अन्य पीड़िताओं के विवरण हैं और उनका खुलासा करने से न केवल सुनवाई में देरी होगी, बल्कि निचली अदालत के सामने उनकी पहचान उजागर होने का भी खतरा होगा।

उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि रेवन्ना दंड प्रक्रिया संहिता (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का हिस्सा) की धारा-207 और पी गोपालकृष्णन बनाम राज्य मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप, केवल मौजूदा मामले में डिजिटल साक्ष्य और बयानों तक पहुंच हासिल कर सकते हैं।

अदालत ने अभियोजन पक्ष को कानूनी प्रावधानों के मुताबिक साक्ष्य सहेजकर रखने की अनुमति भी दी। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया, “धारा-207 के तहत मांगना उसका अधिकार है, लेकिन वह जिस चीज का भी हकदार है, उसका निर्धारित गोपालकृष्णन मामले से जुड़े फैसले के आधार पर होगा।”

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