देश की खबरें | विधायिका से एंग्लो इंडियन प्रतिनिधित्व को हटाने के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर

नयी दिल्ली, 13 मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं से एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधियों के नामांकन की प्रक्रिया को खत्म किए जाने को चुनौती देने के लिए दायर याचिका पर शुक्रवार को केंद्र से अपना रुख बताने को कहा।

उच्च न्यायालय ने हालांकि टिप्पणी की कि 70 साल के बाद इस तरह के प्रतिनिधित्व का कोई उद्देश्य नहीं रह गया है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही अदालत ने मामले को 18 नवंबर को प्राथमिक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

यह याचिका ‘‘फेडरेशन ऑफ एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन इन इंडिया’’ ने दायर की और उसने एक सौ चौथा संविधान (एक सौ चौथा संशोधन) अधिनियम-2019 और संबंधित विधेयक को चुनौती दी है।

पीठ ने कहा, ‘‘इसका उद्देश्य क्या बचा है? ऐसा प्रतीत होता है कि (विधायिका में प्रतिनिधित्व का प्रावधान) यह सुनिश्चित करने के लिए था कि आपकी बात सुनी जाए। यह उद्देश्य अब पूरा हो चुका है। यह खत्म हो चुका है।’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति नवीन चावला भी शामिल हैं।

अदालत ने सवाल किया कि यह दिखाने के लिए क्या है कि समुदाय पिछड़ा हुआ है।

पीठ ने टिप्पणी की कि समुदाय स्वयं स्थानीय आबादी से जुड़ चुका है। अदालत ने रेखांकित किया कि एंग्लो इंडियन परिवारों की ‘‘गत 70 साल में तीन पीढ़ियां हो चुकी होंगी।’’

अतिरिक्त सालिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने याचिका पर नोटिस जारी करने का विरोध करते हुए कहा कि उक्त प्रावधान सीमित समय के लिए था और एंग्लो इंडियन की तुलना अनुसूचित जातियों के समुदाय से नहीं की जा सकती जिन्होंने पिछड़ेपन का सामना किया। उन्होंने कहा कि अब एंग्लो इंडियन समुदाय शहरों में रच-बस चुका है।

अदालत ने कहा, ‘‘हमे संवैधानिक भाषण मुहैया कराएं, शुरुआती विचार दिखाएं।’’

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस प्रावधान के पीछे सबसे कमजोर लोगों के हितों की रक्षा करना था और कानून को चुनौती दे कर समुदाय की ‘‘आवाज छीनने का प्रयास किया गया है।’’

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