नयी दिल्ली, 20 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि उसे वह याचिका प्रथम दृष्टया ‘प्रायोजित’ प्रतीत होती है जिसमें उत्तराखंड में राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के निकट अवैध निर्माण गतिविधियों और पेड़ों की कटाई का आरोप लगाया गया है।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन ने यह टिप्पणी तब की जब उत्तराखंड सरकार के वकील ने कहा कि निरीक्षण किया गया था और पाया गया कि संबंधित भूमि निजी संपत्ति है।
पीठ ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया यह एक प्रायोजित याचिका प्रतीत होती है।’’
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि आवेदक ने अवैध निर्माण का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी और प्राधिकारियों ने तथ्यों का पता लगाने के लिए निरीक्षण के वास्ते एक समिति गठित की थी।
उन्होंने कहा कि यह एक निजी भूमि पाई गई जहां एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र (नैचुरोपैथी सेंटर) का संचालन और ‘पोर्टा केबिन कॉटेज’ का निर्माण किया जा रहा था।
आवेदक के वकील ने हालांकि दावा किया कि राष्ट्रीय उद्यान के निकट कई पेड़ों की कटाई के अलावा बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण भी किया गया है।
राज्य सरकार के वकील ने दलील दी कि आवेदक ने याचिका में भूमि मालिक को पक्षकार प्रतिवादी के रूप में शामिल ही नहीं किया है।
मामले की पड़ताल करने पर सहमत हुई पीठ ने आवेदक से भूमि के मालिक को प्रतिवादी के रूप में शामिल करने को कहा।
अदालत ने उनसे आवेदन की एक प्रति इस मामले में न्यायमित्र के रूप में उच्चतम न्यायालय की सहायता कर रहे वकील को भी देने को कहा तथा सुनवाई तीन सप्ताह बाद निर्धारित की।
आवेदक के वकील ने जब आग्रह किया कि इस बीच यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया जाना चाहिए, तो पीठ ने कहा कि यदि ऐसा पाया गया कि निर्माण किसी कानून या उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का उल्लंघन करके किया गया है तो वह इसे ध्वस्त करने का आदेश दे सकती है।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि किसी तरह का उल्लंघन नहीं पाया जाता है तो हम 10 लाख रुपये के जुर्माने के साथ इसे (आवेदन को) खारिज कर सकते हैं।’’
इसने कहा कि किसी को भी शीर्ष अदालत के क्षेत्राधिकार का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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