लखनऊ, आठ जनवरी बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लखनऊ की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए शुक्रवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ में एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की गई।
विशेष सीबीआई अदालत ने अपने फैसले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और साध्वी रितंभरा समेत 32 आरोपियों को मस्जिद के विध्वंस में शामिल होने के आरोपों से बरी कर दिया था।
बाबरी मस्जिद विध्ंवस मामले के दो गवाह अयोध्या निवासी हाजी महमूद अहमद (74) और हाजी सैय्यद अखलाक अहमद (81) ने यह याचिका दाखिल की है। याचिका शुक्रवार को दाखिल की गई है जो ‘रोटेशन’ के अनुसार सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएगी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने बताया कि 30 सितम्बर 2020 के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने आज तक कोई अपील दाखिल नहीं की है, लिहाजा याचिकाकर्ताओं को आगे आना पड़ रहा है क्योंकि फैसले में कई ख़ामियाँ हैं।
याचिका में दोनों ने कहा है कि वे इस मामले में आरोपियों के खिलाफ गवाह थे और मस्जिद विध्वंस के बाद वे पीड़ित भी हुए थे।
विशेष अदालत ने पिछले साल भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित सभी 32 आरोपियों को मस्जिद के विध्वंस में शामिल होने के आरोपों से बरी कर दिया था।
अदालत ने अपने फैसले में 32 आरोपियों के खिलाफ कोई सुबूत न होने का हवाला देते हुए उन्हें बरी किया था।
उल्लेखनीय है कि छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढांचे को ध्वंस कर दिया गया था जिसके बाद इस प्रकरण में कई प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। प्रकरण की जांच सीबीआई ने पूरी करके आरोप पत्र दाखिल किया था और सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस के यादव ने 30 सितंबर 2020 को सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था।
मामले की सुनवायी करने वाले न्यायाधीश ने अपने विस्तृत फैसले में उल्लेखित किया था कि रिकार्ड पर अखबार की कटिंग और आडियो-वीडियो क्लिप के अलावा सीबीआई ने कोई ठोस सबूत एकत्र नहीं किया था किंतु विचारण के दौरान सीबीआई इस दस्तावेजी साक्ष्यों को मूल अदालत में पेश करके साबित नहीं कर सकी। साथ ही अदालत ने सीबीआई के ढाई सौ से अधिक गवाहों की गवाही का सिलसिलेवार जिक्र करते हुए पाया था कि आरोपियों ने कारसेवकों को नहीं भड़काया था।
याचिका में कहा गया है कि मामले की सुनवायी करने वाली अदालत ने उसके सामने पेश सबूतों को ठीक से नहीं परखा और आरोपियों को बरी करने में गलती की। उन्होंने कहा कि मामले की सुनवायी करने वाली अदालत का फैसला तर्क संगत नहीं है और यहां तक कि उन्हें अपने वकील करने तक की अनुमति नहीं दी गई।
याचिका में मांग की गई है कि अदालत से मामले की पूरी पत्रावली मंगाकर 30 सितम्बर 2020 के फैसले को खारिज किया जाये और सभी आरोपियों को देाषी करार देकर उन्हें उचित सजा सुनायी जाये।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)