देश की खबरें | चांदनी चौक के पुनर्विकास से संबंधित 15 साल पुरानी याचिका वापस लेने की अनुमति

नयी दिल्ली, 13 जनवरी दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक गैर-सरकारी संगठन की ओर से 2007 में दायर याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए कहा कि चांदनी चौक इलाके के पुनर्विकास से जुड़ा 15 साल पुराना यह मामला अपनी प्रासंगिकता खो चुका है।

उच्च न्यायालय ने, हालांकि, यह स्पष्ट कर दिया कि मामले में जुड़े विभिन्न प्राधिकरण याचिका लंबित रहने के दौरान पारित उसके दिशानिर्देशों का पालन करना जारी रखेंगे।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भानी की पीठ ने कहा, ‘‘यह मामला 2007 का है और अब लंबा समय बीत चुका है। इसकी प्रासंगिकता समाप्त हो गयी है।’’

खंडपीठ चांदनी चौक का पुनर्विकास करने और गैर-मोटर चालित वाहनों के लिए अलग लेन बनाये जाने की मांग को लेकर एनजीओ ‘मानुषी संगठन’ की याचिका की सुनवाई कर रही थी।

एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता इंदिरा उन्नीनायर ने दलील दी कि मामला पिछले 15 वर्षों से चल रहा है और अवमानना के कई मामलों के साथ अधिकारियों या सरकारी एजेंसियों की सुस्ती, अनिच्छा और गैर-अनुपालन को दर्शाते हुए बार-बार आदेश पारित किए गए हैं।

उन्होंने दलील दी कि इस जनहित याचिका का व्यापक और समग्र उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सकी है और अब इस याचिका का निपटारा कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि अब इस याचिका ने अपनी उपयोगिता खो दी है।

अधिवक्ता ने यह कहते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति खंडपीठ से मांगी कि अब इस याचिका में कोई और दिशानिर्देश की जरूरत नहीं है। हालांकि चांदनी चौक सर्व व्यापार मंडल की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव रल्ली ने याचिकाकर्ता की अधिवक्ता की दलीलों का यह कहते हुए विरोध किया कि अदालत के पहले के दिशानिर्देशों का अनुपालन अधिकारियों ने पूरी तरह नहीं किया है और मुख्य नोडल अधिकारी से इस बारे में अंतिम रिपोर्ट मांगी जानी चाहिए।

खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में बहुत अधिक समय दिया जा चुका है और प्रतिवादी किसी याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने से नहीं रोक सकते। खंडपीठ ने पूछा कि आखिर बाजार संघ चाहते क्या हैं? रल्ली ने जवाब दिया कि वह अदालत के पहले के आदेशों का पूर्णतया अनुपालन चाहते हैं।

इस पर न्यायमूर्ति मृदुल ने टिप्पणी की, ‘‘यदि वे अनुपालन नहीं करते हैं तो याचिकाकर्ता अवमानना याचिका दायर कर सकते हैं।

अदालत शाहजहांबाद के पुनर्विकास से संबंधित एक अन्य याचिका की सुनवाई तीन मार्च को करेगी।

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