जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसका 78 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस है. लेकिन किसी अन्य तत्व से मिलने पर यह हमारे लिए नुकसानदायी हो सकती है. एक नए शोध में पता चला है कि यह पृथ्वी को ठंडा रखने में भी मददगार हो सकती है.नाइट्रोजन आधारित उर्वरक और जीवाश्म ईंधनों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड्स पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. रासायनिक प्रतिक्रिया के लिहाज से बेहद संवेदनशील, नाइट्रिक एसिड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को मिलाकर नाइट्रोजन ऑक्साइड्स कहा जाता है. नाइट्रोजन ऑक्साइड्स हवा-पानी में मिलकर उन्हें दूषित करते हैं, जैव-विविधता घटाते हैं और ओजोन परत को पतला कर देते हैं. लेकिन जब बात जलवायु की हो तो इनका असर पृथ्वी के लिए अच्छा है. यह जलवायु को ठंडा बनाने में मददगार हैं. यह इंसानों के कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से होने वाले असर को करीब 12.5% प्रतिशत कम कर देते हैं.
जर्मनी के येना स्थित माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर बायो-जियोकैमिस्ट्री के वैज्ञानिकों के साइंस जर्नल 'नेचर' में प्रकाशित हुए शोध में यह खुलासा किया गया है. इस शोध में वैज्ञानिकों ने कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों में नाइट्रोजन कंपाउंड्स के जलवायु पर असर का अध्ययन किया.
नाइट्रोजन का 'कूलिंग इफेक्ट'
पर्यावरण में हम चारों ओर नाइट्रोजन से घिरे हैं. जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसका 78 प्रतिशत हिस्सा नाइट्रोजन तत्व ही है. लेकिन किसी दूसरे तत्व से मिलकर जब यह यौगिक पदार्थ यानी कंपाउंड बनाता है तो इसका असर जलवायु को ठंडा करने में मददगार होता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रतिक्रियात्मक नाइट्रोजन (रिएक्टिव नाइट्रोजन) वैश्विक औसत तापमान को घटाने और बढ़ाने, दोनों तरह से प्रभावित करती है. उदाहरण के लिए जो नाइट्रोजन ऑक्साइड्स जीवाश्म ईंधनों को जलाने से निकलते हैं, वे एयरोसोल कण छोड़ते हैं जो वातावरण में बने रहते हैं. ये सूर्य की किरणों के रास्ते में रुकावट पैदा करते हैं और इस तरह वातावरण को ठंडा रखने में मददगार होते हैं.
कुछ ऐसा ही अमोनियम के मामले में भी होता है जो तरल खाद और कृत्रिम उर्वरकों से निकलता है. इसके अलावा ज्यादा नाइट्रोजन मिलने पर पौधों में ज्यादा हरियाली रहती है. इस प्रक्रिया में वे पर्यावरण से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं और वातावरण को ठंडा रखते हैं. वातावरण में मौजूद मीथेन गैस को विघटित करने में भी नाइट्रोजन की भूमिका है, इससे भी वातावरण ठंडा होता है. लेकिन इससे उलट, यह ग्रीनहाउस गैस ओजोन बनाने में भी सहायक है जिसका असर वातावरण का तापमान बढ़ाने में है.
नाइट्रोजन का ग्लोबल वॉर्मिंग पर कितना असर
प्रोफेसर ज्योंके त्सेले और डॉ चेंग गोंग की अंतरराष्ट्रीय टीम ने शोध में पाया कि बिना नाइट्रोजन की मदद के जलवायु और ज्यादा गर्म हो चुकी होती. 'नेचर' में प्रकाशित शोध में वे बताते हैं कि जो नाइट्रोजन मानवीय गतिविधियों की वजह से पर्यावरण में जा रही है, उससे जलवायु के ठंडे होने की दर प्रति वर्ग मीटर -0.34 वॉट है. इसे पर्यवरण विज्ञान में 'नेगेटिव रेडिएटिव फोर्सिंग' कहा जाता है और इसका इस्तेमाल वातावरण में हो रहे 'कूलिंग इफेक्ट' को दर्शाने के लिए किया जाता है.
नाइट्रोजन के 'कूलिंग इफेक्ट' की तुलना ग्लोबल वॉर्मिंग से की जाए तो यह आंकड़ा बढ़ते तापमान को रोकने के लिए काफी नहीं. जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे अंतरराष्ट्रीष सहयोग संगठन 'इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी)' के आंकड़ों के मुताबिक, 2011 से 2020 के बीच मानव जनित उत्सर्जन से वातावरण प्रति वर्गमीटर 2.7 वॉट गर्म हुआ है. 1750 में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति के दौर की तुलना में आज पृथ्वी 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है.
माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर बायो-जियोकेमिस्ट्री के निदेशक प्रोफेसर ज्योंके त्सेले कहते हैं कि "नाइट्रोजन इनपुट से हुई नेगेटिव रेडिएटिव फोर्सिंग को सीधे तौर पर वैश्विक तापमान में आए बदलाव से नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि (वातावरण में) कई स्थानीय प्रभाव होते हैं और जलवायु प्रणाली रेडिएटिव फोर्सिंग के ऐसे बदलावों पर जटिल तरीके प्रतिक्रिया करती है."
नाइट्रोजन का वातावरण पर असर अच्छी खबर है?
यह कहा जा सकता है कि मानव जनित नाइट्रोजन के ना होने पर पृथ्वी और तेजी से गर्म होती. लेकिन प्रोफेसर ज्योंके त्सेले इसके हानिकारक प्रभावों के लेकर चेताते हैं. उनके मुताबिक, "यह सुनने में किसी अच्छी खबर जैसा लग सकता है लेकिन इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि नाइट्रोजन उत्सर्जन के हमारे स्वास्थ्य, जैव-विविधता और ओजोन परत पर कई हानिकारक असर हैं. ऐसे में नाइट्रोजन उत्सर्जन घटाना चाहिए."
खेती के सेस्टेनेबल तरीकों से नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों पर निर्भरता घटाई जा सकती है. प्रोफेसर त्सेले कहते हैं कि "मानव जनित नाइट्रोजन उत्सर्जन घटाना इंसानों और ईकोसिस्टम के लिए फायदेमंद है लेकिन इसका प्रभाव जलवायु पर भी है. ऐसे में रिएक्टिव नाइट्रोजन के साथ-साथ ग्रीनहाउस गैसों, खासकर कार्बन डाइऑक्साइड और जीवाश्म ईंधनों से निकलती मीथेन का उत्सर्जन कम करने करने की जरूरत है. तभी हम स्वास्थ्य और पर्यावरण को बचा पाएंगे और जलवायु परिवर्तन थम सकेगा."
(स्रोत: https://www.nature.com/articles/s41586-024-07714-4)