कोलकाता, तीन अक्टूबर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते चंद्र बोस ने सियालदह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखने का सुझाव देने के लिए भाजपा सांसद समिक भट्टाचार्य की आलोचना की।
चंद्र बोस ने कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की ‘‘सांप्रदायिक राजनीति’’ पश्चिम बंगाल के समावेशी और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के विपरीत है। बोस ने कहा कि मुखर्जी को शिक्षाविद के रूप में सम्मान दिया जाता है, लेकिन उन्हें ‘‘बंगाल के विभाजक’’ के रूप में भी जाना जाता है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष बोस की टिप्पणी से एक दिन पहले राज्यसभा सदस्य भट्टाचार्य ने केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से अपील की थी कि विभाजन के दौरान पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए शरणार्थियों की मदद करने में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के प्रयासों के सम्मान में सियालदह स्टेशन का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखा जाए।
बोस ने कहा, ‘‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी शिक्षाविद, विद्वान थे। लेकिन जहां तक उनकी राजनीति और विचारधारा का सवाल है, वह बहुत ही सांप्रदायिक नेता थे। उन्हें बंगाल के विभाजनकर्ता के रूप में जाना जाता है। इसलिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी को बंगाल में शिक्षाविद के रूप में सम्मान दिया जाता है, न कि समाज सुधारक के रूप में, न ही राजनेता के रूप में।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सियालदह स्टेशन का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर रखना बंगाल की समावेशी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के खिलाफ है।’’
वहीं, तृणमूल कांग्रेस नेता कुणाल घोष ने सुझाव दिया कि यदि सियालदह स्टेशन का नाम बदला जाना है तो यह स्वामी विवेकानंद के नाम पर होना चाहिए।
घोष ने कहा, ‘‘जब स्वामी विवेकानंद 1893 में शिकागो के विश्व धर्म संसद में अपना ऐतिहासिक भाषण देने के बाद अमेरिका से लौटे, तो वह सियालदह स्टेशन पहुंचे, जहां कोलकाता के लोगों ने उनका स्वागत किया और उनके सम्मान में एक जुलूस का आयोजन किया।’’
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