सिडनी, 23 अप्रैल (द कन्वरसेशन) जलवायु परिवर्तन को लेकर जारी बहस-मुबाहिसे के बीच अब यह बात अध्ययन से भी सामने आने लगी है कि यह वाकई ही अपना असर दिखाने लगा है।
जलवायु परिवर्तन के बारे में जांच करने के लिए शोधकर्ताओं ने व्यवस्थित रूप से उपलब्ध साक्ष्यों की समीक्षा की। सबसे पहले, उन्होंने दुनियाभर के 27 जनमत सर्वेक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण किया - जिसमें चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के आंकड़े भी शामिल हैं।
यह पता चला है कि ज्यादातर लोग जलवायु परिवर्तन के असर को देख रहे हैं। ऐसा हाल के आंकड़ों में ही सामने नहीं आया है। वर्ष 1997 तक के आंकड़ों से संकेत मिला था कि लगभग आधे अमेरिकी उत्तरदाताओं का मानना था कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही हो रहा था।
कुछ अध्ययनों में विपरीत बात देखने को मिली है। जिन लोगों ने जलवायु परिवर्तन को दूर के स्थानों में लोगों को प्रभावित करने के रूप में देखा, वे जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए आगे आये।
हालांकि इस विचार का प्रमाण मिश्रित है कि मनोवैज्ञानिक अंतर हमें जलवायु कार्रवाई से रोक रहा है।
तीस अध्ययनों की जांच करने के बाद, टीम को बहुत कम सबूत मिले कि जलवायु परिवर्तन को लेकर लोगों की धारणा को बदलने के उद्देश्य से किए गए प्रयोग वास्तव में उनकी जलवायु प्रतिक्रिया को बढ़ाते हैं।
हमें जलवायु के बारे में कैसे संवाद करना चाहिए?
विभिन्न संगठनों की जलवायु संचार रणनीतियों और दिशानिर्देशों ने इस विचार पर बल दिया है कि जलवायु परिवर्तन की घटना का असर मनोवैज्ञानिक रूप से नहीं पड़ रहा है।
हमारी अपनी ‘ऑस्ट्रेलियन साइकोलॉजिकल सोसाइटी’ जलवायु परिवर्तन के स्थानीय प्रभावों को अधिक प्रमुख मानकर मनोवैज्ञानिक असर को कम करने की सिफारिश करती है। उदाहरण के लिए, किसी के कस्बे या क्षेत्र में अत्यधिक गर्मी के दिनों की संख्या में वृद्धि को उजागर करना।
लेकिन यदि यहां का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई को बढ़ाना है, तो क्या यह अच्छी सलाह है।
मैंने अक्सर बातचीत में मनोवैज्ञानिक असर के विचार का मुद्दा उठाया है, और इसके बारे में पत्रकारों से बात की है, क्योंकि यह लोगों तक पहुंचने का बेहतर तरीका हो सकता है।
हमारे प्रयास जलवायु कार्यवाही को सुनिश्चित करने और लोगों में विश्वास को बढ़ाने के लिए हैं। इसका मतलब है कि वाहनों की संख्या कम करने या पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करने जैसी पर्यावरण-समर्थक कार्रवाई को आसान और सस्ता बनाने की आवश्यकता है।
लेकिन यह संरचनात्मक और सामाजिक परिवर्तनों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है जो व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों या नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना के लिए सब्सिडी देने से लेकर कार्बन उत्सर्जन पर अंतरराष्ट्रीय समझौते जैसे प्रयास किये जाने चाहिए।
लोगों को उनकी नैतिक अनिवार्यता के बारे में याद दिलाने की भी आवश्यकता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन अधिक ‘‘वास्तविक’’ होता जा रहा है और हम में से ज्यादातर लोगों के लिए यह अधिक चिंता का विषय है।
वर्ष 2018 से 2022 तक, जलवायु परिवर्तन के बारे में ‘‘बहुत चिंतित’’ ऑस्ट्रेलियाई लोगों की संख्या 24 प्रतिशत से 42 प्रतिशत तक बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई है। लेकिन क्या इस बदलाव को मनोवैज्ञानिक दूरी में कमी के रूप में समझाना हमारी वैज्ञानिक समझ में कुछ जोड़ता है?
हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन ध्रुवीय भालुओं को प्रभावित कर रहा है, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि यह अभी हमें प्रभावित कर रहा है। हमारे प्रयासों को अब सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर बदलते व्यवहार पर केंद्रित होना चाहिए।
(द कन्वरसेशन)
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