नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि विधानसभा के एक सदस्य द्वारा सरकारी अधिकारियों के साथ किसी मुद्दे को सुलझाने के लिए अदालत का रुख करने से सरकार के बारे में अच्छी छवि नहीं बनती है।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने विधायक जितेंद्र महाजन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस याचिका में दिल्ली सरकार और उसके विभागों को राष्ट्रीय राजधानी में नाथू कॉलोनी चौक के निकट एक फ्लाईओवर की मरम्मत करने और उसे पुनः खोलने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया।
अदालत ने कहा, ‘‘अगर विधायक अदालत में आने लगेंगे, तो क्या होगा? उन्हें विधानसभा में मुद्दा उठाना चाहिए...उन्हें पता होना चाहिए कि मुद्दे कैसे उठाए जाते हैं। उन्हें सभी का काम करवाना है।’’
अदालत ने प्राधिकारों के वकील को याचिका पर निर्देश मांगने के लिए समय दिया, लेकिन टिप्पणी की कि विधायक को विधानसभा में मुद्दा उठाना चाहिए या अन्य विकल्प तलाशने चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘वह (विधायक) इतने असहाय नहीं हो सकते। लोग उनके पास बहुत सारी उम्मीदें लेकर आते हैं...आपके पास कई विकल्प हैं। इसे सदन में उठाएं। इससे व्यवस्था के बारे में अच्छी छवि नहीं बनती, अगर विधायक अदालत में आने लगें तो इससे राज्य सरकार की छवि पर भी असर पड़ता है।’’
रोहतास नगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कीर्ति उप्पल ने अदालत से उनकी ‘‘हताशा’’ को देखने का आग्रह किया और कहा कि अधिकारियों के समक्ष मुद्दा उठाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
पीठ ने कहा, ‘‘हम उनकी मदद नहीं कर सकते। वह सार्वजनिक रूप से यह मुद्दा उठा सकते हैं कि पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है...यह दर्शाता है कि सिस्टम काम नहीं कर रहा है।’’
अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि मामला मध्यस्थता कार्यवाही में लंबित है। हालांकि पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि अधिकारियों को पुल की मरम्मत करानी चाहिए। पीठ ने कहा, ‘‘आप पुल को ढहने नहीं दे सकते।’’
मामले में अगली सुनवाई नवंबर में होगी।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)