जरुरी जानकारी | श्रम मंत्रालय ने श्रम संहिताओं के बारे में व्यक्त आशंकाओं को निराधार बताया

नयी दिल्ली, 28 सितंबर श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सोमवार को संसद में पिछले सप्ताह पारित श्रम संहिताओं को लेकर व्यक्त की जा रही शंकाओं को दूर करते हुये इन संहिताओं को एतिहासिक और व्यापक बदलाव लाने वाला सुधारवादी कानून बताया। इसमें कहा गया है, ‘‘इनको लेकर जो आलोचनायें की जा रहीं हैं वह पूरी तरह से निराधार है।’’

कारखानों में काम बंद करने के मामले में इकाइयों में कर्मचारियों की न्‍यूनतम सीमा को 300 किए जाने के संबंध में स्‍पष्‍टीकरण देते हुए मंत्रालय ने कहा है विभाग से संबंधित संसदीय स्‍थायी समिति ने छंटनी, कामबंदी तथा बंदी के लिए सरकार की पूर्वानुमति लेने के मामले में कामगारों की तय सीमा को 100 से बढ़ाकर 300 करने की सिफारिश की थी।

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यह प्रावधान केवल सरकार से पूर्वानुमति लेने के मामले में एकमात्र पहलु है। इसमें अन्‍य लाभ तथा कामगारों के अधिकारों को संरक्षित किया गया है। कामगारों के अधिकार तथा छंटनी से पूर्व नोटिस, सेवा के प्रत्‍येक पूरे किए गए वर्ष के लिए 15 दिनों के वेतन की दर से प्रतिपूर्ति तथा नोटिस अवधि के बदले में वेतन देने के बारे में कोई समझौता नहीं किया गया है। इसके अलावा, औद्योगिक संबंध सं‎हिता में नवसृजित पुनर्कौशल निधि के अंतर्गत 15 दिनों के वेतन के समान अतिरिक्त आर्थिक लाभ की संकल्पना की गई है।

वक्तव्य में कहा गया है कि ऐसा कोई व्यावहारिक दृष्टांत नहीं है जिसमें यह पता चलता है कि कामबंदी के मामले में पूर्वानुमति लेने संबंधी प्रावधान में कर्मचारियों की सीमा बढ़ाये जाने से उद्योगों में ‘हायर एवं फायर’ को बढ़ावा मिलता है।

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​मंत्रालय ने यह भी कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण, 2019 में भारतीय कंपनियों की मौजूदा लघु संरचना (ड्वार्फिज्म) की पीड़ा का विश्लेषण किया गया है। लघु संरचना से आशय उन कंपनियों से है जो 10 वर्षों से अधिक समय से चल रही हैं लेकिन रोजगार में वृद्धि के रूप में उनमें कोई प्रगति नहीं हुई है।

औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत 100 कामगारों की तय सीमा को रोजगार सृजन के अवरोधकों में से एक पाया गया है। यह भी देखा गया है कि श्रम विधानों के अंतर्गत अवसीमा नकारात्मक प्रभाव डालती हैं जिससे कि कंपनियां आकार में छोटी रह जाती हैं।

राजस्थान में वर्ष 2014 के दौरान उन कंपनियों के मामले में जिनमें 300 से कम कामगार नियोजित हैं उनमें अवसीमा को 100 से बढ़ाकर 300 किया गया था तथा छंटनी इत्यादि से पहले पूर्वानुमति की अपेक्षा को समाप्त कर दिया गया था। सीमा में वृद्धि से राजस्थान में पड़ने वाले प्रभाव यह दर्शाते हैं कि राजस्थान में उन कंपनियों की औसत संख्या, देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी बढ़ी है जिनमें 100 से अधिक कामगार नियोजित हैं तथा उन कारखानों में उत्पादकता में भी काफी वृद्धि हुई है। 15 अन्य राज्यों में पहले ही अवसीमा को बढ़ाकर 300 कामगार तक कर दिया गया है।

मंत्रालय ने यह भी कहा कि औद्योगिक संबंध संहिता के पारित होने से पूर्व राजस्थान के उदाहरण का अनुसरण करते हुए राजस्थान सहित 16 राज्यों ने औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत पूर्वानुमति लेने के मामले में कर्मचारी सीमा 100 कामगार से 300 कामगारों कर दी है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, ओडिशा शामिल हैं।

मंत्रालय ने किसी तय अवधि के लिये काम पर रखने के साथ ‘हायर और फायर’ शुरू होने की अफवाहों को दरकिनार करते हुए कहा है कि निर्धारित अवधि का नियोजन केन्‍द्र सरकार तथा 14 अन्य राज्यों द्वारा पहले ही अधि‎सूचित किया जा चुका है। इन राज्यों में असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड (परिधान एवं मेड-अप), कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश (वस्त्र एवं ईओयू) तथा उत्तराखण्ड शामिल हैं।

​मंत्रालय ने जोर देकर कहा कि निर्धारित समयसीमा के लिये नियुक्ति कामगार-समर्थक है। इससे रोजगार के लिए ठेकेदार के माध्यम से जाने के बजाय कामगार या कर्मचारी के साथ सीधे तय समयसीमा के लिये नियुक्ति का ठेका करना संभव होगा। ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि ठेकेदार न्यूनतम मजदूरी और अन्य पात्र लाभों जैसे ईपीएफ, ईएसआईसी के संबंध में नियोक्ता से तो पूरी राशि वसूल करते हैं लेकिन इसे ठेका श्रमिकों को नहीं पहुँचाते हैं।

​अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार की परि के बारे में वक्तव्य में कहा गया है कि अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 को ओएसएच कोड में शामिल कर लिया गया है। पूर्ववर्ती अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को ओएसएच कोड में और अधिक सशक्त किया गया है।

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