देश की खबरें | मणिपुर: पारम्परिक ढोल ‘पुंग’ बनाने के लिए पुरस्कृत दस्तकार ने इस कला के संरक्षण की अपील की

इंफाल, 27 नवंबर पारम्परिक ढोल ‘पुंग’ बनाने को लेकर उस्ताद बिस्मिल्ला खां युवा पुरस्कार 2019 के लिए चुने गये मणिपुर के पहले दस्तकार शैखोम सुरचंद्र सिंह ने कहा कि अगर वाद्य यंत्र बनाने वालों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में इस कला की लोकप्रियता कम हो जाएगी।

शैखोम (41) को यह पुरस्कार ‘पुंग’ (पारम्परिक मणिपुरी ढोल) बनाने में उत्कृष्ट योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रदान किया जाएगा।

उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि ढोल निर्माण की यह कला अधिकारियों की उपेक्षा की शिकार हो गई है।

शैखोम ने कहा कि पुंग (ढोल) लगभग सभी पारम्परिक मणिपुरी कलाओं का हृदय और आत्मा है, विशेष रूप से 'नट संकीर्तन' का, लेकिन कई गुरुओं और संगीत वाद्य यंत्र बनाने वालों को "अवसर और सहायता की कमी" के कारण ज्यादा मान्यता नहीं मिली है।

उन्होंने कहा, ‘‘किसी ढोल निर्माता के लिए यह पुरस्कार और अन्य मान्यता प्राप्त करना बहुत दुर्लभ है क्योंकि क्षेत्र के कई लोगों को आमतौर पर अतीत में दरकिनार कर दिया गया। राज्य सरकार के कला और संस्कृति विभाग ने लगभग सभी पारंपरिक मणिपुरी कला रूपों में ढोल के महत्व को स्वीकार कर और पुरस्कार के लिए हमारे नामों की सिफारिश कर इसे एक अपवाद बना दिया है।’’

ढोल निर्माता ने कहा कि ताल संबंधी वाद्य यंत्र बनाने से जुड़ी दस्तकारी को अन्य प्रदर्शन कलाओं की तुलना में कम मान्यता मिली है, हालांकि यह नृत्य और संगीत को आवश्यक ध्वनि, लय और ताल प्रदान करती है।

उन्होंने कहा, "हम इस कला को संरक्षित करना चाहते हैं क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इस तरह, ढोल की दुकानें खोलने सहित सरकार से मान्यता और सहायता, और सामग्री की खरीद के लिए ऋण का प्रावधान, इसे संरक्षित करने में मदद करेगा।"

शैखोम ने पीटीआई- से कहा, ‘‘मैंने अपने बचपन के दिनों से ही पुंग बनाने की कला पर काम करना शुरू कर दिया था, क्योंकि मेरे दादा और बड़े भाई अपने पूर्वजों से विरासत में मिली जानकारी के चलते इस कार्य से जुड़े थे।’’

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