औरंगाबाद, एक जुलाई मराठा आरक्षण मामले के एक याचिकाकर्ता ने बुधवार को आरोप लगाया कि शिवसेना नीत महाराष्ट्र विकास अघाडी सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है।
उच्चतम न्यायालय में सात जुलाई को होने वाली सुनवाई से पूर्व याचिकाकर्ता विनोद पाटिल ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार ही किसी भी अवांछनीय परिणाम के लिए जिम्मेदार होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘ राज्य सरकार मराठा आरक्षण के मुद्दे पर गंभीर नजर नहीं आती है। सात जुलाई को इस मामले पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होने जा रही है लेकिन राज्य सरकार ने आगे का रास्ता निकालने पर चर्चा के लिए नयी दिल्ली में किसी वरिष्ठ वकील से अब तक संपर्क नहीं किया है।’’
उन्होंने सरकार से इस मुद्दे पर अपना रूख स्पष्ट करने की मांग की और यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी रणनीति के बारे में बताने को कहा कि शिक्षा एवं नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण मिलता रहा।
पाटिल ने कहा, ‘‘ महाराष्ट्र में (शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की) त्रिदलीय सरकार है। सवाल है कि (तीनों में) कौन इसकी जिम्मेदारी ले।’’
पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए अर्जी दायर की गयी थी। बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर मुहर लगायी थी।
याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम शीर्ष अदालत द्वारा इंदिरा साहनी मामले में अपने ऐतिहासिक फैसले में तय की गयी 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करता है। इस अधिनियम में मराठा समुदाय के लोगों के लिए शिक्षा और नौकरियों में क्रमश: 12 और 13 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है।
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